Book Title: Sirichandvejjhay Painnayam
Author(s): Purvacharya, Kalapurnasuri, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti
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किया जाय ? [मंद कपायों का भी विश्वास नहीं करना]. खीणेसु जाण खेमं जियं, जिएसु अभयं अभिहएसु । .. नठेसु याविणटुं सुक्खं च जओ कसायाणं ॥ १४६ ॥
जो कपायों का क्षय हुआ हो तो स्वयंका क्षेम-कुशल, जो जीत लिए हो तो वास्तविक जय, हत प्रहत हुए हो तो अभय और सर्वथा नाश हो गया हो तो अविनाशी सुख प्राप्त होनेवाला है ऐसा जानो । धन्ना निच्चमरागा, जिणवयणरया नियत्तियकसाया । निस्संगनिम्ममत्ता, विहरंति जहिच्छिया साहू ॥ १४७ ॥
धन्य है उन साधु भगवंतो को जो नित्य जिनवचन में मग्न है, कषाय पर जय प्राप्त करते हैं, बाह्य पदार्थों पर राग नहीं है और नि:संग निर्ममत्व होकर यथेच्छ रीति से संयम मार्ग में विचरण करते हैं । धन्ना अविरहियगुणा, विहरंती मुक्ख मग्ग मल्लीणा । इहय परत्थय लोए, जीवियमरणे अपडिबद्धा ॥ १४८ ॥
मोक्षमार्ग में तत्पर जो महामुनि अविरहित गुण युक्त (क्षमादि गुणोंका कभी अभाव न हो) होकर इस लोक और परलोक, जीवन या मरण में प्रतिबंध रहित संयम मार्ग में विचरते हैं, वे धन्य है । मिच्छतं वमिऊणं सम्मतंमि धणियं अहिगारो । कायव्वो बुद्धिमया, मरणसमुग्घायकालंमि ॥ १४९ ॥
बुद्धिमान पुरूष को मरण समुद्घातके समय में मिथ्यात्व दूर कर सम्यक्त्व प्राप्त करने के लिए [प्राप्त सम्यक्त्व को विशुद्ध करने के लिए) प्रबल पुरूपार्थ अवश्य करना चाहिए । [अंत समय में शंका कांक्षादि अतिचारों की निन्दा करनी ही चाहिए] हंत (?) बलियंमिधीरा, मरणे पच्छा उवट्ठिए संते । मरणसमुग्घाएणं, अवसा निज्जति मिच्छतं ॥ १५० ॥
दुःख की बात है कि महान धीर पुरूष भी शक्तिशाली मरण उपस्थित होने पर मरण समुद्घात की तीव्र वेदना से व्याकुल होकर मिथ्यात्व दशा को प्राप्त करते हैं।
पूर्वाचार्य रचित 'सिरिचंदावेज्झय पइण्णयं'