Book Title: Sirichandvejjhay Painnayam
Author(s): Purvacharya, Kalapurnasuri, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ न करे तो वह कभी भी दोषमुक्त और गुण युक्त नहीं हो सकता । असंजमेण बद्धं अन्नाणेण य भवेहि बहुएहि । कम्ममलं सुहमसुहं करणेण दृढो धुणइ नाणी ।। ७४ ॥ ___ असंयम और अज्ञान दोष से अनेक भवार्जित शुभाशुभ कर्ममल को ज्ञानी चारित्रपालन के द्वारा समूल नष्ट करता है ।। सत्येण विणा जोहो, जोहेण विणा य जारिसं सत्थं । नाणेण विणा करणं करणेण विणा तहा नाणं ॥ ७५ ॥ जैसे शस्त्र बिना अकेला योद्धा और योद्धा बिना के शस्त्र कार्य साधक नहीं होते वैसे ज्ञान रहित चारित्र और चारित्र रहित ज्ञान मोक्ष साधक नहीं होता। नादसणस्स नाणं, न विणा नाणस्स हुंति करण गुणा । अगुणस्स नत्थि मुक्खो, नत्थिअमुक्ख(त्तास्सनिव्वाणं ॥ ७६ ॥ मिथ्या दृष्टि को ज्ञान नही, ज्ञान बिना चारित्र गुण नहीं । गुण बिना मोक्ष नहीं मोक्ष बिना निर्वाण नहीं होता। जं नाणं तं करणं, जं करणं पवयणस्स सो सारो। जो पवयणस्ससारो, सो परमत्थति नायव्वो ॥ ७७ ॥ जो ज्ञान वह चारित्र, चारित्र प्रवचनका सार, प्रवचन का सार वही परमार्थ है । ऐसा जानना । परमत्थ गहियसारा, बंधं मुक्खं च ते वियाणंता। नाउण बंधमुक्खं, खविंति पोराणयं कम्मं ॥ ७ ॥ प्रवचन के परमार्थका ग्राहक बंध मोक्ष का ज्ञाता होता है और बंध मोक्ष का ज्ञाता पूर्व के कर्मोका क्षय करता है । नाणेण होइकरणं करणेण नाणं फासियं होइ । दण्हं पि समाओगे होइ विसोही चरित्तस्स ॥ ७९ ॥ ___ ज्ञान से सम्यक् क्रिया और क्रिया से ज्ञान आत्मसात् होता है इस प्रकार सद्ज्ञान और सत्क्रिया के योग से भाव चारित्र (स्वभाव रमणता) की विशुद्धि होती है। . पूर्वाचार्य रचित 'सिरिचंदावेज्मय पइण्पयं

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34