Book Title: Sindurprakar
Author(s): Somprabhacharya, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 381
________________ उद्बोधक कथाएं ३७१ उसे देखकर हलवाई विस्मय से भर गया। वह तत्काल समझ गया कि यह जलकान्तमणि है। उसने बालक को प्रतिदिन मिष्ठान्न देने का वचन दे दिया। उधर कृतपुण्य जब भोजन करने बैठा तो उसकी पत्नी जयश्री ने शेष बचे तीन मोदकों में से एक मोदक पति को भी परोस दिया। मोदक तोड़ने पर उसमें से रत्न निकला। जयश्री यह देखकर आश्चर्य से भर गई। उसने शेष दोनों मोदक भी तोड़ दिए। उनमें से भी एक-एक रन निकला। इस रहस्य को जानकर कृतपुण्य भी विस्मय से भर गया। जयश्री ने इस भेद को जानकर यही समझा कि पतिदेव परदेश से धन कमाकर लाए हैं, किन्तु रहस्यपूर्ण उपाय से छिपाकर लाए हैं। पुनः उसने मन ही मन तर्कणा की--यदि तीनों मोदकों में से एक-एक रत्न निकला है तो चौथे मोदक में भी अवश्य ही रत्न होना चाहिए, जो मैंने पुत्र विजय को खाने के लिए दिया था। __ सायं पुत्र पाठशाला से घर आया। उसकी मां ने उससे पूछा-बेटा! तूने जो मोदक खाया था, क्या उसमें से कोई रत्न निकला। पुत्र ने कहामां! उसमें से एक चमकीला-सा पत्थर अवश्य निकला था। मैं नहीं जानता कि वह रत्न था या चमकीला पत्थर। क्या तूने उसे फेंक दिया? ____ नहीं मां! मैंने मिठाई खाने के लोभ से उसे हलवाई को दे दिया है। वह उसके बदले मुझे प्रतिदिन मिठाई देता रहेगा। जयश्री ने यह बात अपने पति से कही। पिता-पुत्र दोनों उस मणि को लेने के लिए हलवाई की दुकान पर पहुंचे। हलवाई ने मणि देने से स्पष्ट इंकार कर दिया। इधर कृतपुण्य मणि को पाने के लिए राजदरबार में जाने वाला था तो उधर सारे नगर में महाराज श्रेणिक के द्वारा उद्घोषणा कराई जा रही थी कि जिस किसी व्यक्ति के पास जलकान्तमणि हो तो वह राजा को लाकर दे दे। राजा मणि देने वाले व्यक्ति को पुरस्कारस्वरूप सौ गांव देंगे और साथ में अपनी कन्या का विवाह भी उस व्यक्ति से करेंगे। ___उस उद्घोषणा का कारण था-महाराज श्रेणिक के प्रिय हाथी गन्धहस्ती सेचनक का एक ग्राह (जलजन्तु) के द्वारा पकड़ा जाना। उसको छुड़वाने के लिए अनेक उपाय किए गए, पर कोई भी उपाय सफल नहीं हो सका। राजा इस समस्या से खिन्न था। अन्ततः कुमार अभय ने कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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