Book Title: Sindurprakar
Author(s): Somprabhacharya, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 403
________________ 'सिन्दूरप्रकर' नीतिशास्त्र का अद्भुत ग्रंथ है। इसमें नैतिकता, सदाचार और अध्यात्म की अनेक शाखाओं का समन्वय है। तेरापंथ धर्मसंघ में इसके अध्ययन की प्राचीन परंपरा है। यह ग्रंथ पूज्य कालूगणी और आचार्य तुलसी के मन को आकृष्ट करता रहा। मेरे मन में भी इसकी उपयोगिता की छाप है। धर्मसंघ के अनेक साधु-साध्वियां इसे कंठस्थ करते रहे हैं। मुनि राजेन्द्रजी उद्यमी और संस्कृतप्रिय मुनि हैं। श्रम उनके जीवन का व्रत है। उन्होंने संस्कृत व्याकरण 'भिक्षुशब्दानुशासनम्' के क्षेत्र में अनेक कार्य किए हैं। उन्होंने 'सिन्दूरप्रकर' ग्रन्थ की सांगोपांग व्याख्या प्रस्तुत की है। इससे संस्कृतपाठी विद्यार्थी बहुत लाभान्वित होंगे। -आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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