Book Title: Sindurprakar
Author(s): Somprabhacharya, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 393
________________ उद्बोधक कथाएं ३८३ वर्षा अच्छी थी। जमाना अच्छा हुआ। दोनों किसानों ने जी-तोड़ कर परिश्रम किया। समय आने पर फसल लहलहा उठी। दोनों का मन खुशियों से झूम उठा। फसल पककर तैयार हो गई। उसे काटने की भी तैयारी होने लगी। इसी बीच दुर्भावना में पलने वाले किसान के खेत पर टिड्डियों के दल ने आक्रमण कर दिया । एक दिन में सारा खेत चौपट हो गया। अब केवल कड़वी ही उस किसान के हाथ लगी। वह उस कड़वी को काटकर अपने घर ले आया । दूसरे किसान ने भी फसल काटी। हजारों मन ज्वार उसके खेत में हुई । उसका कोठा ज्वार से भर गया। यह सत्य है कि अच्छी भावना के आधार पर क्रिया की निष्पत्ति अच्छी होती है और दुर्भावना के आधार पर उसकी निष्पत्ति बुरी होती है | इसलिए नीतिकार कहते है 'जिसकी जैसी भावना वैसा ही फल होय' । भावना के आधार पर ही व्यक्ति को अच्छा-बुरा फल प्राप्त होता है। हुआ वैराग्य गान्धार जनपद में पुण्ड्रवर्धन नाम का एक रमणीय नगर था। वह शक्तिशाली तथा सुखसमृद्धि से संपन्न था। वहां सिंहरथ नाम का राजा राज्य करता था। जैसा उसका नाम था वैसा ही प्रजा के साथ उसका व्यवहार था। एक बार राजा को उत्तरापथ से उपहारस्वरूप दो घोड़े प्राप्त हुए। उसने उनका परीक्षण करना चाहा। एक घोड़े पर राजकुमार सवार हुआ तो दूसरे घोड़े पर राजा । दोनों अलग-अलग दिशाओं में वनविहार के लिए निकल गए। राजा जिस घोड़े पर आरूढ था वह वक्रशिक्षित घोड़ा था। ज्यों-ज्यों राजा उसकी लगाम खींचता घोड़ा रुकने के बजाए तेजी से दौड़ता जाता । अश्व दौड़ता-दौड़ता सुदूर जंगल में पहुंच गया। अचानक राजा के हाथ से लगाम शिथिल हो गई तो घोड़ा भी वहीं रुक गया। राजा को अत्यधिक भूख लगी हुई थी। वह घोड़े से नीचे उतरा और उसने वन के कन्दमूल आदि खाकर अपनी क्षुधा को शान्त किया। सन्ध्या का समय । सूर्य का प्रकाश अन्धकार में विलीन हो रहा था । Jain Education International ३७. यों For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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