Book Title: Sindurprakar
Author(s): Somprabhacharya, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 400
________________ ३९० सिन्दूरप्रकर तथा राज्य के अधिकारीगण कुमार के पास आए और प्रार्थना के स्वरों में कहा-महाभाग! आज से आप हमारे राजा हैं, स्वामी हैं। आप राजभवन चलें। उन्होंने कुमार को घोड़े पर बिठाया और वे उसे राजमहल में ले गए। वहां उसका राज्याभिषेक हुआ। वह कांचनपुर का अनुशास्ताअधिशास्ता बन गया। ___ जब ब्राह्मण के पुत्र ने करकण्डु के राजा बनने का समाचार सुना तो वह एक गांव लेने की आशा से कांचनपुर चला आया। वह चाहता था कि उसे चम्पापुर नगर की सीमा में ही वह गांव मिल जाए। वह कुमार वहीं का रहने वाला था। महाराज दधिवाहन चम्पापुर के अधिशास्ता थे। वे नहीं चाहते थे कि कोई दूसरा राजा उसके राज्य के कार्य में हस्तक्षेप करे। करकण्डु ने दधिवाहन के नाम एक पत्र लिखा और अपने द्वारा दिए गए वचन का उल्लेख करते हुए ब्राह्मणपुत्र को एक गांव देने की बात कही। दधिवाहन ने इसे अपना अपमान समझा। दोनों में परस्पर युद्ध छिड़ गया। नरसंहार की संभावना को देखते हुए साध्वी पद्मावती चम्पापुर पहुंच गई। उसने दोनों पक्षों को समझाने का प्रयास किया और अतीत की परतों को खोलते हुए पिता-पुत्र का परिचय करा दिया। साथ में अपना परिचय भी प्रस्तुत कर दिया। युद्ध बंद हो गया। राजा दधिवाहन ने अपने पुत्र करकण्डु को छाती से लगा लिया। पुत्र ने भी पिता के चरणों में प्रणत होते हुए अपनी भूल के लिए क्षमायाचना की। दोनों ओर हर्ष के आंसू छलक पड़े। कालान्तर में राजा दधिवाहन अपने सारे राज्य का भार करकण्डु को सौंपकर प्रवजित हो गए। अब करकण्डु अंग और कलिंग दोनों राज्यों का कुशलता से संचालन करने लगा। वह प्रजावत्सल, न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ राजा था। उसमें प्राणिमात्र के प्रति प्रेमभाव और सहृदयता का भाव था। उसके अन्तःकरण में करुणा की धारा बहती थी। वह जितना मनुष्यों के प्रति करुणाशील था उससे अधिक वह पशु-पक्षियों के प्रति भी करुणार्द्र था। जब वह किसी के दुःख-दर्द को देखता तो उसकी अन्तरात्मा सहज ही उस अनुभूति से दया और द्रवित हो जाती थी। करकण्डु के राज्य में अनेक गोशालाएं थीं। वह स्वयं समय-समय पर वहां जाकर उनकी देख-रेख करता था। उसे गायों के प्रति अत्यधिक प्रेम था। जब वह गायों के श्वेत बच्छड़ों को देखता तो उसका मन पुलकित हो जाता। एक दिन राजा गोशाला में गया हुआ था। वहां उसने अनेक गाएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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