Book Title: Sindurprakar
Author(s): Somprabhacharya, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 397
________________ उद्बोधक कथाएं ३८७ संसार से विरक्ति हुई। वह मुनि बना और एक घटना के निमित्त से संबुद्ध होकर प्रतिबुद्ध कहलाया। ३८. वृद्धावस्था : वैराग्य का हेतु अंगदेश की राजधानी चम्पापुरी। वहां के अधिशास्ता महाराज दधिवाहन एक लोकप्रिय राजा थे। उनकी महारानी का नाम पद्मावती था। वह गणतन्त्र के अधिनेता महाराज चेटक की पुत्री थी। आज चम्पापुरी के राजपथ जनता की अपार भीड़ से संकुल हो रहे थे। सर्वत्र एक ही चर्चा जन-जन के मुख पर मुखर थी कि महारानी पद्मावती को विचित्र प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ है। वह राजा की वेशभूषा में हाथी पर सवार होकर वनक्रीड़ा के लिए जाएगी। महाराज दधिवाहन उसके मस्तक पर छत्र धारण किए उसके पीछे होंगे। ऐसे अभिनव और अपूर्व दृश्य को देखने के लिए दर्शकगण जिज्ञासा, कुतूहल और उत्सुकता लिए राजपथ के दोनों छोरों पर खड़े थे। ___ ठीक समय पर राजभवन से शोभायात्रा प्रारंभ हुई। महाराज दधिवाहन श्रीवत्स नाम के एक अतिबलवान्, तेजस्वी और महाकाय हाथी पर आरूढ थे। हाथी पर रत्नजटित हौदा था। उसमें महादेवी पद्मावती बैठी थी। उसका पुरुषवेश प्रेक्षकों को अतिसुन्दर और अत्याकर्षक लग रहा था। हौदे के पिछले भाग में महाराज दधिवाहन छत्र धारण किए हुए थे। उस समय दर्शकों को वह दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो दो राजकुमार किसी नवोढा से मिलने जा रहे हैं। हजारों नागरिक उत्सुकता और आश्चर्यभरी दृष्टि से शोभायात्रा को देख रहे थे। अनेक लोग पुष्पवृष्टि कर महाराज और महारानी का अभिनन्दन और वर्धापन कर रहे थे। शोभायात्रा अत्यन्त आनन्दमय वातावरण में नगरी के मुख्य बाजारों से होती हुई अपने गन्तव्य की ओर बढ़ रही थी। कुछ समय के पश्चात् अचानक मौसम का मिजाज कुछ बदलता-सा नजर आया। आकाश बादलों से भर गया। बिजली कौधने लगी और बून्दाबांदी प्रारम्भ हो गई। महाराज जहां जाने वाले थे वह ताल नाम का क्रीडावन वहां से काफी दूर था। फिर भी वे प्रकृति के उतार-चढ़ाव को देखते हुए प्रफुल्लता से आगे बढ़ रहे थे। सहसा मौसम में एक वेग आया और प्रकृति ने अपना तांडव दिखाना प्रारम्भ कर दिया। बून्दाबान्दी से वर्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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