Book Title: Sindurprakar
Author(s): Somprabhacharya, Rajendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 385
________________ उद्बोधक कथाएं ३७५ बर्तन को छूने लगा। ब्राह्मणी को उसका वह व्यवहार अखरा। उसने उसे फटकारते हुए कहा-अरे नादान! तेरे में इतनी तो सभ्यता होनी चाहिए। बिना बुलाए इस प्रकार आ धमकना और बर्तन को छना क्या तेरी शिष्टता है? ऐसी क्या उतावली है? जरा हमारी भी तो मान-मर्यादा का ध्यान रख। तेरे को भोजन ही करना था तो मेरे से पहले ही मांग लेता। इतना सुनते ही दृढप्रहारी की आंखों से खून बरसने लगा। उसकी भुजाएं फड़कने लगीं। वह कब किसकी सुनने वाला था और कब किसको सहन करने वाला था। तत्काल उसने म्यान से तलवार को खींचा और एक ही झटके में ब्राह्मणी का सिर धड़ से अलग कर दिया। ब्राह्मणी के मुख से जोर से एक करुणाभरी चीत्कार निकली और वह बाहर तक गुंजायमान हो गई। उस समय ब्राह्मण घर के प्रांगण में स्नान कर रहा था। चीत्कार सुनकर वह चौंका और अधूरा स्नान छोड़कर ही घर की ओर भागा। भयानक दृश्य देखकर उसके नेत्र विस्फारित के विस्फारित रह गए। चारों ओर खून बिखरा हुआ था और खून से सनी पत्नी की लाश क्रूरता की आह भर रही थी। ब्राह्मण उसका कुछ प्रतिकार करता उससे पूर्व ही उस क्रूर दृढप्रहारी ने उसे भी अपनी खून की प्यासी तलवार से यमलोक पहुंचा दिया। अब तो घर में चारों ओर हाहाकार मच गया। रोते-बिलखते बच्चे अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर दौड़ने लगे। चारों ओर घर में खून बह रहा था। एक नहीं दो-दो लाशें अकाल मृत्यु का शिकार होकर सिसक रही थीं। उस समय उस सिसकन को सुनने वाला घर में कोई प्राणी नहीं था। घर के प्रांगण में मात्र एक गाय बन्धी हई थी। वह भी गर्भवती थी। घर में इस प्रकार की भगदड़ और हलचल को देखकर वह भी अचानक चौंक उठी और मानो अपने मालिक की नृशंस हत्या को सहन न कर सकने के कारण वह दोनों सींगों को उठाकर उसे मारने दौड़ी। वह खूखार व्यक्ति उसे भी कब छोड़ने वाला था। अचानक उसकी तलवार उस निरीह पशु पर चली और गर्भस्थ शिशु का छेदन करती हुई आर-पार निकल गई। एक ओर ब्राह्मण-ब्राह्मणी का शव उसकी क्रूरता पर अट्टहास कर रहा था तो दूसरी ओर अपने स्वामी के प्रति गाय और उसके गर्भ का बलिदान बोल रहा था। दृढप्रहारी एक ओर खड़ा-खड़ा दोनों दृश्यों को देख रहा था। ऐसे हृदयद्रावक दृश्य को देखकर किस पाषाण का हृदय नहीं पिघलता? ऐसे बर्बरतापूर्वक कुकृत्य से किसकी आत्मा नहीं रोती? आवेश के क्षणों में व्यक्ति इस प्रकार के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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