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१० तथा लखवाथी विरोध वधे , संपतनो अनाव थाय जे अने निःकलंक चंड मंगलवत शीतल जिन धर्मनी निंदा थाय . वली श्री जिनमार्गनो ए मुख्य सिद्धांतज डे के, कोश्ने पण पूर्वोक्त वचन केहेवार्थी अथवा लखवाथी माटुं लगाम ते नारे दोष जे. एने लीधे था लेखमां श्रमे पूर्वोक्त वचन नथो सख्या. तथापि यदि को शब्द थापने असह्य लागे अथवा तीक्षण कटुक लागे तो अमेललामण करीए बीए के, असह्य वचनने तो जेम सम्यक्दी पुर्वोपार्जीत कर्मोदय कासमा समनावे सहे तद्वत् सेहेवां अने तीक्षण वचनने जेम वीचीक्षण वैद पोताना शास्त्रवमे सरुज (रोगी) ना गुममांने विदारे. अने ते तीक्षण शस्त्रनी धारनी मार श्रादर पूर्वक अंगीकार करे तेम करवां. हवे रह्यां कटुक वचन, ते जेम ज्वर ग्रसित कटुकने हित पथ्य जाणोने मधुरवत आचमन करे तेम करवां. यदि थापथी नपर लख्या मुजब न सह्या जाय अथवा न करयो जाय तो तेने माटे श्रमे क्षमा चाहीए बीए. __बीजुं श्री जैन धर्मनो मुख्य उद्देश ए के हरेकने तत्वार्थना श्रझानो उपदेश करवो. त्यारे बापतो अमारे परमप्रीय चैतन्य साधर्मसाथी अथवा लोकोक्तिना न्यायथी स्वधर्मी अथवा जैनी ना हो, माटे श्री परमागमजीनो सत्यार्थ प्रकाश करी बताववो, ए श्रमारों फरज जाणी अमे बजावी , ते आपनोक परूपात डोमी अवश्य ग्रहण करशो..
उहा.
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मुल कर्ता इन ग्रंथका, श्री सर्व ज्ञही जान; उत्तर कर्ता गणधरु, तासु वचन परमान; वर्तमान जे वर्तता, तिन भागम अनुसार; स्वामी श्री कनीरामजी, रच्यो सिद्धांतज सार; पिन बहु विस्तृतना, नया सो वीस्तारन हेत; गुर्जर नाषांतर कीयो, पूरव कृति संकेत;