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QU करता गया, तेम तेम बावीस समुदायस्थ गीतार्थ विद्वान महानुजाग्य माहामुनी तेरापंथी कृत कुतर्कोनुं समाधान अर्थात श्रीमत सत्य शास्त्रानुसार खंकन करता गया; परंतु ते खंगन मंगन प्रथक प्रथक होवाथी सामान्य प्रकीर्ण लोकोने जोइए तेवो लान न मली शके. ते लोको सलाइथी लान लइ शके ते माटे तथा पूर्वोक्त कुपंथने विषे फसायला लोकोने मुक्त करवा तथा वे पढी न फसाय एवा देतुथी श्रीमान कनीरामजी स्वामीए नवकोटीना शेठजी श्री फतेहमल जोनी प्रेरणाथी पोते सिद्धान्त, पद, बेद टीका चुरणी यदि श्रार्स अंधानुसारे पूर्वोक्त खं खं कथनने एकत्रीत करी सामाबार दजार श्लोकना विस्तारवालो ग्रंथ रची शुभ संवत १७०६ नी सालमां पूर्ण कर्यो. तेमां अनेक तरेहनी सरलता बतावी श्रीजंगी चोनंगी विगेरे सेहेली रीते वांचनार समजी शके तेवा टीका सहित इष्टान्तोथी जरपूर बनावेल बे. ते श्री ते इति सुधी वांचवाथी समजाशे.
प्रीतम ! सत्य धर्मने समजवो ए काम बुद्धिमान विवेकी पुरुषोनुं बे, घने दस प्रष्टान्ते दुर्लन, एवा मनुष्य जन्मनो सार पण मुख्य करीने धर्म पीढाणवो एज वे वास्ते श्रमे सर्व सनोने प्रार्थना करीए ale के, वो विचार जरापण न करवो जोइए के " मे अमुक पंथस्थ बीए ” ए रीते मतनो आग्रह छाणकर्ता निःकेवल स्यादवाद पदलान्डीत निथ प्रवचननोज श्राग्रह करवो उच्चीत बे; कारण के जे मारास मताग्रही, ढ्वी, दुरामही या ऊष्टीरागी होय बे तेने श्री निर्मथ प्रवचननुं यथार्थ बोधरूप फल वंध्या स्त्रीनी माफक प्राप्त नथी यह शकतं. एटला माटे सर्व श्रात्मार्थी नवनीरुर्जए या ग्रंथ समदर्शीपणे वांची भेद विज्ञान पूर्वक सत्यनो अंगीकार करी स्वयात्म हित साधन कर.
वली तेरापंथीने नमृता पुर्वक निवेदन करवामां आवे छे के, अमे या भाषान्तरमां उपयोग सहित असभ्य वचन अथवा तो कटु वचन विशेषतः नथी लख्युं; केमके पूर्वोक्त वचन के देवा तेमज लखवाए विवेकी पुरुषोनुं काम नयी. तेमज जप्त वचन के देवाथी