Book Title: Siddhachakra Mandal Vidhan Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 7
________________ ..... सद्धचक्र मडलावधान - • - - - -- - की विरलता के कारण मूगर्भ से बाहर दृश्य जगत् में आना भी असभव नहीं तो असमव सरीखा अवश्य दिखाई दे रहा है। फिर भी जो कुछ दिखाई में आ चुका है या आ रहा है उससे यह स्पष्ट हुए बिना नहीं रहता कि जिन भक्ति और पूजा का मार्ग सदा चला जाय इसके लिये अनेका श्रीमानों और भूपतियाने प्राचीन समय मे अपरिमित व्यय करके उसके आयतनों-मूर्तियो और मन्दिरा का निर्माण किया था। 47992 a वास्तव में जिनेन्द्र भगवान की पूजा, भाक्त, आराधना या उपासना ऐसी ही वस्तु है जो कि परिणामा मे वीतरागता के साथ २ परम शान्ति का प्रदान तो करती ही है साथ ही विशिष्ट पुण्यबन्ध के द्वारा इस भव तथा पर भव में महान् कल्याणों एव अभ्युदयों का भी प्रसव किया करती है। ___ शास्त्रा मे पूजन के पाच भेद बताये गये है:-नित्य, आष्टाहिक, चतुर्मुख, कल्पद्रुम, और इन्द्रध्वज । प्रस्तुत “ सिद्ध चक्र मडल विधान " नित्य पूजा के ही एक प्रकार से सम्बन्ध रखता है। ___ यद्यपि यह विधान प्राय: आष्टाहिक पर्व के दिनों में ही किया जाता है किन्तु इसका विषयसम्बन्ध आष्टाह्निक पूजा के विषय भूत नन्दीश्वर द्वीप सम्बन्धी ५२ चैत्यालयों से सर्वथा भिन्न सिद्ध भगवान् के गुणों से है जो कि नित्य पूजा से सम्बन्धित है। आष्टाह्निक पर्व के दिनो मे कालकृत पवित्रता के सिवाय इसके किये जाने का सभवतः कारण यह भी है कि मैनासुन्दरी ने इन्ही दिनो मे इस विधान को करके महान् फल प्राप्त किया था । P > 9Page Navigation
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