Book Title: Siddhachakra Mandal Vidhan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 6
________________ - (सिद्ध व्यक्त ही दुल्ल विशाल) . भावार्थ:-- जो गृहस्थ होकर बिना देवपूजा किये और मुनियों को दान दिये बिना ही यदि भोजन करले तो वह घोर गन्धकार का भागी होता है। भगवान् जिनमेन स्वामीने भी देवपूजा को आर्यपट्क मे गिनाकर वह आर्योंका मुख्य एवं श्रावश्यक कार्य बताया है। H ASCOREDIT - प्रसन्नता की बात है कि स्व एव परका यह परम मगलकारक कार्य सदा से अब तक बराबर चला आ रहा है । यद्यपि यह सत्य है कि ज्या ज्या समाज का वास होता गया है और उसके वैभव मे अन्तर पड़ना गया है त्या त्या उसके अन्य धार्मिक कार्यों के साथ २ इस विषय में भी पर्याप्त न्यूनता आगई है, फिर भी दि. जैन समाज में यह अभी तक चला आरहा है और प्रायः सर्वत्र ही न्यूनाधिक रूप में पाया जाता है यह अत्यन्त हर्ष का विषय है। । प्रायः भारत के सभी भागों में बिखरी पड़ी या पाई जाने वालो मूर्तियों आदि ऐतिहासिक एव पुरातत्त्व सम्बन्धी सामग्री का सूक्ष्मेक्षिका के द्वारा पर्याप्त पर्यवेक्षण करने पर यह विदित हुए बिना नहीं रह सकता कि दि. जैन धर्म का यह देव पूजन से सम्बन्ध रखने वाला विषय प्राचीनतम होने के सिवाय भारत में नहुत कालतक व्यापक रूप से सम्मान्य रह चुका है जिसकी कि तथ्यता को अच्छी तरह सिद्ध कर सकने वाले प्रमाणो का देव दुर्वेपाक अथवा तद्विषयक रुचिमान् श्रीमानो और धीमानों

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