Book Title: Shrutsagar Ank 2012 09 020 Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सितम्बर २०१२ [अनघढ पत्थर को कुशल शिल्पी ने घढा!!) वि. सं. २०२३ की बात है, जब पूज्यश्री का चातुर्मास साणंद नगर में था। चातुर्मास की भव्य आराधना चल रही । नगर का वातावरण धर्ममय था। महापर्व की आराधना का अवसर आया! तपस्याओं की झडी के साथ क्रिया का भी उतना ही भव्य माहौल था। करीबन छोटे-बड़े सभी मिलके पचास-साठ आराधकों ने चौषट पहोरी पौषध की आराधना प्रारंभ की। बड़ों के लिये कल्पसूत्रजी श्रवण का अवसर और हम बच्चों के लिये धमाल-मस्ती के वातावरण में महान दिन संवत्सरी का पर्व आया। प्रतिक्रमण अच्छे से संपन्न हुआ और हम सभी बच्चे पूज्य श्री के चारो और बैठ गये। सहज में ही सभी बच्चों को पूछते गये कि क्या दीक्षा लेनी है? सभी ने सहज में ही ना भर दी। मैं वहीं था मन में तो था ही कि दीक्षा कहाँ लेनी है? मगर हाँ भरने में क्या है? और मैंने उंगली ऊपर कर ली। बस वही पल पूज्यश्री कि निगाह में आ गई और वि. सं. २०२४ को महुडी तीर्थ में अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव में हम सभी साणंद के युवामंडल सेवा-भक्ति के लिए गये हुए थे। हमारे पूज्य पिताश्री भी वहीं थे। न जाने उन दोनों में क्या बात हुई मेरे को प्रतिष्ठा के बाद पिताजी ने कहा कि तुमको यहीं रुकना है। मैं दो-चार दिन में आता हूँ। पूज्यश्री को सौंपकर पिताजी तो चले गये, और मैं विहार में साथ में रहा। दो महिना विहार किया तुरंत बाद चातुर्मास पालडी-अहमदाबाद, अरुण सोसायटी में तय हुआ। मेरे भ्राता श्री वर्धमानसागरजी, मैं और महेन्द्र (पप्पु) हम सभी वहीं चातुर्मास में थे। सामान्य रूप से पढ़ाई प्रारंभ हुई, और कार्तिक मास में अनायास दीक्षा का मुहुर्त निकला। दीक्षा माघ शुक्ल ४ को तय हुई। बड़े आचार्यश्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में दीक्षा हुई. और हमारा विहार मुंबई की ओर प्रारंभ हुआ। ज्ञान-ध्यान और स्वाध्याय में एवं स्वजन मित्र के साथ-सहकार से साधु जीवन यात्रा प्रारंभ हुई। कई उतार-चढ़ाव होते रहे। गुरु कृपा एवं गुरु निश्रा ने शक्ति व आत्मविश्वास इतना दिया कि परम कृपालु श्री नवकार मंत्र के स्मरण-जापध्यान एवं गुरुकृपा ने ऐसा वरदान दिया की आज मैं पंचपरमेष्ठि के तृतीय पद पर हूँ। बिना गुरु कृपा एवं आशीर्वाद यह संभव नहीं था। साणंद का वह उंगली उठाने वाला बालक और कोई नहीं मैं ही आचार्य अमृतसागरसूरि एवं गुरुकृपा महान शिल्पी और कोई नहीं बल्कि आज जिनका जन्मदिन मनाया जा रहा है, वह पुण्य के निधान शासन प्रभावक आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा एक कुशल शिल्पी। अंत में पूज्यश्री को अपना जीवन समर्पित करते हुए आपश्री के हाथों खूब ही शासन की सेवाभक्ति व प्रभावना हो यही मंगल शुभ कामना। लिखने में जिनाज्ञा विरुद्ध लिखा गया हो तो मिच्छा मि दुक्कडं आचार्य अमृतसागरसूरि ( गुरु समर्पण का चमत्कार ) बादल से निकली हुई बूंद को झरना मिला, झरने को नदी मिली, नदी को सागर मिला, वैसे मेरे और गुरुवर का मिलन हुआ, जो पद्म भी हैं और सागर भी हैं। चोपाटी-मुंबई की घटना वही सागर की सुंदरता और गंभीरता में सुंदरता लहरों में देखी आँखों को आनंदित किया। सोचा लहरों में जा मिलूं जरा भीगकर तो देखू, इच्छा हुई और मैं सागर में जा मिला। और चमत्कार यह हुआ कि गोडी पार्श्वनाथ भगवान के रंग मंडप में दीक्षा का प्रसंग मेरे मन को प्रभावित कर रहा था। मनो-मन सोच रहा था, इतने में वचन सिद्ध गुरुवर का शब्द मेरे कानों में पड़ा सुनाई दिया, वही शब्द आज मेरे जीवन में मंत्र बन गया है। दुनिया में साथ देने की दिलासा देने वाले बहुत मिलेंगे पर जब साथ निभाने का समय आता है तब मुकर जाते हैं। संसार में कोई अपना नहीं होता है मजबूरी में, दुःख में अपनी छाया भी मददगार नहीं होती है। दीक्षा लोगे? संयम स्वीकार करोगे? करुणा के उद्गार रस रूपी शब्दों ने मेरी सोई हुई आत्मा को जगा दिया, सागर में सभी का समावेश हो सकता है तो मेरा क्यूँ नहीं? नदी सागर में मिलने पर सागर कहलाती है, दूध में पानी For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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