Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५ सितम्बर, २०१२ वि. सं. २०६८ द्वि. भाद्रपद, कृष्ण-१४
श्रुतसागर
अंक २०
आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा ७८वें जन्मदिन (३० सितम्बर, २०१२, रविवार)
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र पाल 'आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
विनम्र भावांजलि।
प्रकाशक
आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर ३८२००७ फोन नं. (०७९) २३२७६२०४, २०५, २५२, फेक्स (०७९) २३२७६२४९ । Website : www.kobatirth.org, email: gyanmandir@kobatirth.org
For Private and Personal Use Only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प. पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के गृहस्थ व श्रमण जीवन के विभिन्न
स्मरणीय चित्र
पूज्यश्री अपने दादा गुरूदेव के साथ
ક્રેશ સંઘ
पूज्यश्री अपने गुरूदेव के साथ
For Private and Personal Use Only
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र
अंक : २०
* आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
संपादक मंडल
मुकेशभाई एन. शाह बी. विजय जैन
कनुभाई एल. शाह डॉ. हेमन्त कुमार
केतन डी. शाह सहायक विनय महेता
हिरेन दोशी
* प्रकाशक
आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (०७९) २३२७६२०४, २०५, २५२ फेक्स : (०७९) २३२७६२४९ website : www.kobatirth.org • email : gyanmandir@kobatirth.org
१७ सितम्बर, २०११, वि. सं. २०६८, दि.भाद्रपद, कृष्ण-१४
* अंक-प्रकाशन सौजन्य *
संघवी श्री प्रकाशभाई मिश्रीमलजी नथमलजी परिवार
___ (नैनावा निवासी) रत्नमणी मेटल्स एन्ड ट्युब्स लि. - अहमदाबाद
-
-
For Private and Personal Use Only
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सितम्बर २०१२
(संपादकीय पर्वाधिराज पर्युषण जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व है। सम्पूर्ण भारत व विदेशों के सभी जैनसंघों में आठ दिन तक इस पर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है। इन आठ दिनों में जैनधर्मावलम्बी छट्ठ, अट्टम, अट्ठाई, सोलह उपवास एवं मासक्षमणादि तपश्चर्या करते हैं। जैनधर्म के गुरु चतुर्विध श्रीसंघ के समक्ष परम पवित्र अष्टाह्निका तथा कल्पसूत्र ग्रन्थ का वाचन करते हैं। इस पर्व के पाँचवें दिन भगवान महावीर के जन्म प्रसंग का विशेषरूप से वर्णन किया जाता है। कल्पसूत्र परम पवित्र ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ का वांचन पूर्व में केवल साधु भगवन्त ही करते थे। भगवान महावीर के निर्वाण के ९८० वर्ष के बाद (मतान्तर ९९३ वर्ष) आनन्दपुर (वडनगर) के महाराजा ध्रुवसेन के पुत्र की मृत्यु से लगे आघात को दूर करने के लिये इस पवित्र ग्रन्थ का वाँचन श्रीसंघ के समक्ष सर्वप्रथम किया गया था, तब से यह परम्परा आज तक निर्बाध रूप से चली आ रही है।
आत्मा को पवित्र और पूर्ण बनाने का अवसर इस पर्व में प्राप्त होता है। हमारी आत्मा सांसारिक सुखसुविधाओं में लिप्त रहती है, उससे विरक्ति दिलाने में यह पर्व सहयोगी सिद्ध होता है। हम सम्पूर्ण संसार की जानकारी रखते हैं, किन्तु अपने स्वयं की आत्मा के स्वरूप की ही जानकारी का अभाव होता है। पर्युषण पर्व में हम अपनी आत्मा के सम्बन्ध में भलीभाँति जानकारी प्राप्त करते हैं। चार गतियों एवं चौरासी लाख योनियों में भटकते हुए हम मानव जीवन को प्राप्त कर विश्व के सर्वोत्तम धर्म जैनधर्म के अनुयायी बने हैं, यह भी हमारे पूर्व जन्म के पुण्योदय का ही परिणाम है। जैनधर्म में जन्म लेने मात्र से हम मुक्त नहीं हो सकते हैं। मुक्ति प्राप्त करने हेतु जैनधर्म के मौलिक सिद्धांतों के अनुरूप अपना आचरण व व्यवहार बनाना होगा। जैनधर्म का मूल समता का भाव है। अपने जीवन में समता भाव को प्राप्त करने एवं समस्त जीवों के प्रति दया-मैत्री का भाव धारण करने के प्रयास में यह महापर्व हमें सही दिशा प्रदान करता है।
पर्वाधिराज पर्युषण में तपश्चर्या व आराधना करते हुए गुरुभगवन्तों के सदुपदेश सुनकर मन निर्मल एवं शुद्ध बन जाता है और संसार के समस्त जीवों के प्रति हृदय में क्षमा का भाव उत्पन्न हो जाता है। महापर्व की समाप्ति के दिन अर्थात् संवत्सरी के दिन शुद्ध व निर्मल मन से संसार के समस्त जीवों से अपने द्वारा जाने अनजाने समस्त अपराधों भूलों के लिये क्षमायाचना करते हैं। . महान जैनाचार्यों की गौरवशाली परम्परा में देदीप्यमान नक्षत्र समान लाखों हृदय के स्वामी, ओजस्वी प्रवचनकार, दूरदृष्टिभरा नेतृत्व, शासन-तीर्थ व श्रुत की रक्षा आदि अनेक सुगंधित गुणों के लिये आश्रयस्थान स्वरूप परम पूज्य आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब इस कलिकाल में जिन शासन के गौरव हैं, मानव समाज के लिये वरदान हैं एवम् साधुता के लिये आदर्श श्रुतोद्धार, तीर्थोद्धार, समाज उत्कर्ष, जैन एकता आदि अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों में नेतृत्व और मार्गदर्शन प्रदान कर जिनशासन के उन्नयन में प्रभावक कार्य कर रहे हैं।
हमारे सौभाग्य से ऐसे महान राष्ट्रसन्त आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब की निश्रा में महापर्व पर्युषण में तपश्चर्चा एवं आराधना करने एवं परम पूज्य राष्ट्रसन्त का ७८वाँ जन्म वर्धापन महोत्सव मनाने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है। आईए हम सभी इस पर्वराज पर्युषण एवं महान जैनाचार्य परम पूज्य राष्ट्रसन्त का जन्म वर्धापन महोत्सव मनाएँ और इन दोनों महामहोत्सवों में अपनी आत्मा की शुद्धि करें, मानव जीवन को सफल बनाएँ एवं आने वाला भव सुखद हो ऐसा प्रयास करें।
लेखक
अनुक्रम लेख १. गुरु भगवंत संदेश २. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरिजी का संक्षिप्त परिचय ३. पू. साधु भगवंतों के उद्गार ४. रविवारीय सुमधुर प्रवचन श्रेणी ६ से १० ૫. પર્યુષણ મહાપર્વ વ્યાખ્યાન ૬. ક્ષમાપના ७. पर्युषण संबंधी ग्रन्थों की सूचि ૮. ધર્મની રક્ષા કાજે ८. समाधि-शत (ग्रंथ सभीक्षा) ૧૦. જ્ઞાનમંદિર સંક્ષિપ્ત અહેવાલ ११. समाचार सार
डॉ. हेमंतकुमार ભદ્રબાહુવિજય કનુભાઈ શાહ बी. विजय जैन સ્વ. રતિલાલ મફાભાઈ શાહ હીરેન દોશી
Roman
डॉ. हेमंतकुमार
For Private and Personal Use Only
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
वि.सं. २०६८-द्वि. भाद्रपद
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्हम्नमः
छनमा मोक्ष का प्रवेशद्वार है.
जैन दर्शन में धर्मका प्राणतत्त्व क्षमा है। मैत्रीभावनाकरुणा- दयालुता-उदारता- परोपकारीयवृत्ति आदि क्षमाके पारिवारिक सदस्य हैं।
अपने अपराधों को स्वीकार करना, भविष्य में अपराध न हो ऐसी भावना रखना, पापमय प्रवृत्तियों का प्रतिकार करना क्षमाशील व्यक्तियों के लक्षण हैं।
"मिच्छामि दुिक्कड़े यह महामंत्र अनादि कालीन कर्म के बन्धनों से आत्माको मुक्त होने में शक्ति प्रदान करती है। क्षमा यह मानसिक आरोग्य को प्राप्त करने की दिव्यऔषधी है। चित्त की शांति- समाधि प्राप्त करने का एक सरल उपाय है।
-
यदि भन्न भ्रमण से आत्मा को मुक्त करना हो तो उनमात्री भारना को अपने व्यवहार में - आचरण में उसे मक्रिय बनाने का प्रयास करें यही श्री पर्युषण महापर्व दिव्य संदेश है।
का
पद्मसागर सूरि
रस-ए-पर कोना (गांधीनगर)
For Private and Personal Use Only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सितम्बर २०१२
राष्ट्रसंत आचार्य श्री पझसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब के ७८वें
जन्म वर्धापन दिन पर विशेष संक्षिप्त परिचय
डॉ. हेमन्त कुमार
सांसारिक जीवन : ० जन्म : विक्रम संवत १९९१ भाद्रपद कृष्णपक्ष एकादशी मंगलवार, तदनुसार १० सितम्बर १९३५. ० जन्म स्थान : अजीमगंज, पश्चिम बंगाल ०पिता का नाम : श्री रामस्वरूपसिंहजी उर्फ श्री जगन्नाथसिंहजी. ० माता का नाम : श्रीमती भवानीदेवी ० बचपन का नाम : प्रेमचन्द/लब्धिचन्द्र ० शिक्षा : माध्यमिक स्तर तक
० भाषा ज्ञान : संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, बंगाली, गुजराती, राजस्थानी
व अंग्रेजी. साधुजीवन का प्रारम्भ : ० दीक्षा ग्रहण : वि. सं. २०११ कार्तिक (मार्गशीर्ष) कृष्णपक्ष ३ रविवार, १३ नवम्बर १९५४ ०दीक्षा स्थल : साणंद० दीक्षा प्रदाता : आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. ० दीक्षा गुरु : आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म. सा. ०दीक्षा नाम : मुनि श्री पद्मसागरजी म. सा. ० गणिपद से विभूषित : वि. सं. २०३० माघ शुक्ल पक्ष पंचमी. सोमवार, २८ जनवरी, १९७४, अहमदाबाद ० पंन्यासपद से विभूषित : वि. सं. २०३२ फाल्गुन शुक्ल पक्ष सप्तमी, सोमवार, ८ मार्च, १९७६, जामनगर o आचार्यपद से विभूषित : वि. सं. २०३३ मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष तृतीया, शुक्रवार, ९ दिसम्बर, १९७६, महेसाणा जिनशासन के समर्थ उन्नायक : ०जैन श्रमण संस्कृति की गरिमापूर्ण परंपरा में जिनका एक यशस्वी नाम है. ०व्यवहार-कुशलता, वाक्पटुता, कर्तव्य-परायणता आदि गुणों से जो विभूषित हैं. ० मानवमात्र के लिये जिनका देदीप्यमान जीवन प्रेरणास्पद एवं वरदान है. ०जिनशासन के उन्नयन हेतु समर्पित जिनका संपूर्ण जीवन है. ० अपनी मधुर वाणी से लाखों श्रोताओं को जिन्होंने धर्माभिमुख किया है. ०जिनशासन के गौरव में जिन्होंने चार-चाँद लगा दिये हैं. ० मानव मात्र के उपकार हेतु जो सतत प्रयासरत हैं. ० जैन-दर्शन व प्राच्य विद्या के क्षेत्र में अवगाहन करने वालों के लिए जो रत्नाकर तुल्य हैं. ० श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा की स्थापना जिनकी सत्प्रेरणा से हुई है. ० आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा जिनकी अमरकृति है. ० विश्वमैत्रीधाम बोरीजतीर्थ के ऐतिहासिक जिनमंदिर निर्माण के जो प्रेरक हैं. ० श्री सीमंधर जिन मंदिर, महेसाणा के निर्माण में जिनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है. ० भारतीय प्राचीन सांस्कृतिक-ऐतिहासिक-पुरातात्त्विक धरोहर के जो संरक्षक हैं. ० जिनभक्ति व शासनप्रभावना के प्रति जो पूर्ण समर्पित हैं. ० वात्सल्य, करुणा, दया और प्रेम की जो प्रतिमूर्ति हैं. ० जिनकी भाषा की सरलता, स्पष्ट वक्तृत्व, अभिप्राय की गंभीरता व प्रस्तुति की मौलिकता है, ०जिनके ओजस्वी प्रवचनों से व्यक्ति और समाज में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है. यशस्वी ऐतिहासिक कार्य : ० बाल-दीक्षा-प्रतिबन्ध प्रस्ताव को निरस्त कराकर पुनः बाल-दीक्षा का प्रारम्भ कराया. ० शत्रुजय महातीर्थ के बाँध में होनेवाली मछलियों की जीव-हिंसा पर रोक लगवाई. ० मुम्बई महानगरपालिका के द्वारा विद्यालय के बच्चों को अल्पाहार में फूड-टॉनिक के रूप में अण्डा दिए जाने के
For Private and Personal Use Only
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
वि.सं. २०६८-द्वि. भाद्रपद
निंदनीय प्रस्ताव को खारिज करवाया.
o राजस्थान सरकार द्वारा ट्रस्टों में अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने के अध्यादेश को राज्यपाल को कुशल युक्तियों के
द्वारा समझा कर वापस कराया.
● राणकपुर तीर्थ में फाईव स्टार होटल के निर्माण पर रोक लगवा कर तीर्थ की पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखा. ० इमरजेंसी के दौरान भारत के प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी को राष्ट्रहित में मार्गदर्शन.
० नेपाल में पाद विहार करके सैकड़ों वर्षों के बाद प्रथम बार जैनाचार्य के रूप में पदार्पण किया,
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
o काठमाण्डु (कमल पोखरी) में आपकी निश्रा में श्री महावीरस्वामी जिनमन्दिर की भव्यातिभव्य प्रतिष्ठा हुई. आपकी निश्रा में विश्व हिन्दू महासभा का अधिवेशन काठमाण्डू में सम्पन्न हुआ, जिसमें विश्व के १४ देशों से अग्रणी हिन्दू प्रतिनिधियों ने भाग लिया था.
० जैन एकता, संगठन व जैन कॉन्वेन्ट स्कूलों के आप सफल प्रेरणादाता रहे हैं.
० आपके पदार्पण से बरसों बाद दक्षिण भारत में धर्म आराधना व ज्ञान की मंद धारा तेजी से बहने लगी.
o गोवा प्रदेश में सैकड़ों वर्ष बाद जिनालय की भव्य अंजनशलाका-प्रतिष्ठा आपकी पावन निश्रा में सम्पन्न हुई. • वालकेश्वर (मुम्बई) श्रीसंघ को देवद्रव्य संबंधी जैन परंपरा और सिद्धान्त का मार्गदर्शन किया.
० राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्माजी ने राष्ट्रपति भवन में आपके पावन पदार्पण करा के आशीर्वाद ग्रहण किया. ० भारतवर्ष की पवित्र भूमि हरिद्वार में प्रथम जिनमन्दिर रूप श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ की भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा कराई. ० पूज्यश्री की प्रेरणा से जोधपुर नरेश श्री गजसिंहजी ने महल में पिछले ४०० सालों से चली आ रही दशहरा के दिन भैंसे की बलि की प्रथा बंद करवाई.
० जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक युवक महासंघ, जैन डॉक्टर्स फेडरेशन एवं जैन चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट विंग की स्थापना आपकी प्रेरणा से हुई, जो पूरे भारत के जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघों को अपनी विशिष्ट सेवाएं प्रदान कर रही है.
प्रभु महावीर की निर्वाणभूमि पावापुरी में मछली पकड़ने पर पाबन्दी एवं सरोवर की पवित्रता का शुभ संकल्प करवाया.
Q गीतमस्वामी की जन्मस्थली कुण्डलपुर (नालन्दा) तीर्थ भूमि के मंदिर की महोत्सव पूर्वक प्रतिष्ठा हुई.
० हरिद्वार में सर्वधर्म के धर्मगुरुओं द्वारा सार्वजनिक अभिनंदन का सन्मान प्राप्त किया.
० श्री शान्तिनाथ जैन तीर्थ, वटवा का निर्माण करवाया.
O श्री नेमिनाथ जैन बावन जिनालय प्राचीन तीर्थ रांतेज का पुनर्निर्माण कार्य करवाया.
० श्री संभवनाथ जैन आराधना केन्द्र, तारंगाजी आदि जैन तीर्थों के उद्धारक व मार्गदर्शन प्रदाता रहे हैं. विविध उपाधियाँ :
० भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री नीलम संजीव रेड्डी द्वारा राष्ट्रसन्त की उपाधि से विभूषित.
• वालकेश्वर (मुम्बई) श्रीसंघ द्वारा सम्मेतशिखर तीर्थोद्धार के बिरुद से सम्मानित.
● राणकपुर- सादडी श्रीसंघ द्वारा श्रुतोद्धारक पददी से सम्मानित.
शासन प्रभावना :
० तीर्थयात्रा - विहार भारत के लगभग सभी छोटे-बड़े तीर्थ व एक लाख किलोमीटर से अधिक पदयात्रा
o प्रतिष्ठाएँ :
१२
● यात्रासंघ :
० शिष्य प्रशिष्य
● उपधान तप :
७५ ११
● दीक्षाएँ :
७०
४२ (आचार्य ४ पंन्यास ५, गणिवर्य २)
-
-
० साहित्य प्रकाशन लगभग २८ प्रकाशन हिन्दी, गुजराती व अंग्रेजी में.
५
7
आपकी अमृतमयी वाणी :
मैं सभी का हूँ, सभी मेरे हैं, प्राणी मात्र का कल्याण मेरी हार्दिक भावना है में किसी वर्ग, वर्ण, समाज या जाति के लिए नहीं, अपितु सबके लिए हूँ। व्यक्ति राग में मेरा विश्वास नहीं है। लोग वीतराग परमात्मा के बतलाये पथ पर चलकर अपना और दूसरों का भला करें, यही मेरी हार्दिक शुभेच्छा है।
जैन श्रमण संस्कृति के गौरव रूप आचार्य श्री पद्मसागरसूरिजी के चरणों में उनके ७८ वें पावन जन्मदिवस प्रसंग पर हमारी आपकी, सबकी नतमस्तक कोटिशः वंदना ।
For Private and Personal Use Only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सितम्बर २०१२
[अनघढ पत्थर को कुशल शिल्पी ने घढा!!)
वि. सं. २०२३ की बात है, जब पूज्यश्री का चातुर्मास साणंद नगर में था। चातुर्मास की भव्य आराधना चल रही । नगर का वातावरण धर्ममय था। महापर्व की आराधना का अवसर आया! तपस्याओं की झडी के साथ क्रिया का भी उतना ही भव्य माहौल था। करीबन छोटे-बड़े सभी मिलके पचास-साठ आराधकों ने चौषट पहोरी पौषध की आराधना प्रारंभ की। बड़ों के लिये कल्पसूत्रजी श्रवण का अवसर और हम बच्चों के लिये धमाल-मस्ती के वातावरण में महान दिन संवत्सरी का पर्व आया। प्रतिक्रमण अच्छे से संपन्न हुआ और हम सभी बच्चे पूज्य श्री के चारो और बैठ गये। सहज में ही सभी बच्चों को पूछते गये कि क्या दीक्षा लेनी है? सभी ने सहज में ही ना भर दी। मैं वहीं था मन में तो था ही कि दीक्षा कहाँ लेनी है? मगर हाँ भरने में क्या है? और मैंने उंगली ऊपर कर ली। बस वही पल पूज्यश्री कि निगाह में आ गई और वि. सं. २०२४ को महुडी तीर्थ में अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव में हम सभी साणंद के युवामंडल सेवा-भक्ति के लिए गये हुए थे। हमारे पूज्य पिताश्री भी वहीं थे। न जाने उन दोनों में क्या बात हुई मेरे को प्रतिष्ठा के बाद पिताजी ने कहा कि तुमको यहीं रुकना है। मैं दो-चार दिन में आता हूँ। पूज्यश्री को सौंपकर पिताजी तो चले गये, और मैं विहार में साथ में रहा। दो महिना विहार किया तुरंत बाद चातुर्मास पालडी-अहमदाबाद, अरुण सोसायटी में तय हुआ। मेरे भ्राता श्री वर्धमानसागरजी, मैं और महेन्द्र (पप्पु) हम सभी वहीं चातुर्मास में थे। सामान्य रूप से पढ़ाई प्रारंभ हुई, और कार्तिक मास में अनायास दीक्षा का मुहुर्त निकला। दीक्षा माघ शुक्ल ४ को तय हुई। बड़े आचार्यश्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में दीक्षा हुई. और हमारा विहार मुंबई की ओर प्रारंभ हुआ। ज्ञान-ध्यान और स्वाध्याय में एवं स्वजन मित्र के साथ-सहकार से साधु जीवन यात्रा प्रारंभ हुई। कई उतार-चढ़ाव होते रहे। गुरु कृपा एवं गुरु निश्रा ने शक्ति व आत्मविश्वास इतना दिया कि परम कृपालु श्री नवकार मंत्र के स्मरण-जापध्यान एवं गुरुकृपा ने ऐसा वरदान दिया की आज मैं पंचपरमेष्ठि के तृतीय पद पर हूँ। बिना गुरु कृपा एवं आशीर्वाद यह संभव नहीं था। साणंद का वह उंगली उठाने वाला बालक और कोई नहीं मैं ही आचार्य अमृतसागरसूरि एवं गुरुकृपा महान शिल्पी और कोई नहीं बल्कि आज जिनका जन्मदिन मनाया जा रहा है, वह पुण्य के निधान शासन प्रभावक आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा एक कुशल शिल्पी। अंत में पूज्यश्री को अपना जीवन समर्पित करते हुए आपश्री के हाथों खूब ही शासन की सेवाभक्ति व प्रभावना हो यही मंगल शुभ कामना। लिखने में जिनाज्ञा विरुद्ध लिखा गया हो तो मिच्छा मि दुक्कडं
आचार्य अमृतसागरसूरि
( गुरु समर्पण का चमत्कार )
बादल से निकली हुई बूंद को झरना मिला, झरने को नदी मिली, नदी को सागर मिला, वैसे मेरे और गुरुवर का मिलन हुआ, जो पद्म भी हैं और सागर भी हैं।
चोपाटी-मुंबई की घटना वही सागर की सुंदरता और गंभीरता में सुंदरता लहरों में देखी आँखों को आनंदित किया। सोचा लहरों में जा मिलूं जरा भीगकर तो देखू, इच्छा हुई और मैं सागर में जा मिला।
और चमत्कार यह हुआ कि गोडी पार्श्वनाथ भगवान के रंग मंडप में दीक्षा का प्रसंग मेरे मन को प्रभावित कर रहा था। मनो-मन सोच रहा था, इतने में वचन सिद्ध गुरुवर का शब्द मेरे कानों में पड़ा सुनाई दिया, वही शब्द आज मेरे जीवन में मंत्र बन गया है।
दुनिया में साथ देने की दिलासा देने वाले बहुत मिलेंगे पर जब साथ निभाने का समय आता है तब मुकर जाते हैं। संसार में कोई अपना नहीं होता है मजबूरी में, दुःख में अपनी छाया भी मददगार नहीं होती है।
दीक्षा लोगे? संयम स्वीकार करोगे? करुणा के उद्गार रस रूपी शब्दों ने मेरी सोई हुई आत्मा को जगा दिया, सागर में सभी का समावेश हो सकता है तो मेरा क्यूँ नहीं? नदी सागर में मिलने पर सागर कहलाती है, दूध में पानी
For Private and Personal Use Only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वि.सं.२०६८-द्वि. भाद्रपद
मिलने पर पानी भी दूध कहलाता है, समर्पण में ही सार मिलता है। निःसार रूपी संसार में सार ग्रहण करने की कला आपने मुझे दी है, आपको मैं क्या दूँ? संयम जीवन की धर्म-आराधना के द्वारा जो भी फल मिला है वहीं आपको समर्पित करता हूँ। परमात्मा से, शासन देव से प्रार्थना करता हूँ, आप दीर्घायु हों, वर्षों-वर्ष शासन सेवा, अनेक आत्माओं को आत्म-शुद्धि का मार्ग बताते रहें।
आप सदा सरिता की तरह बहते रहें, जन-जीवन का जीवन नंदन वन बनाते रहें, परमात्मा-शासन देव आपको शक्ति दें।
पंन्यास विवेकसागर
दिल की खुशी को व्यक्त किया नहीं जाता मीठे एहसास को दिखलाया नहीं जाता।
हर कोई सागर को पहचान नहीं पाता
इस सागर के गुणों को गाया नहीं जाता। राह पर चलते अनायास झील में खिले कमल के फूलों पर नजर गई, फिर मेरी भागती हुई नजर झील में भागतीदौड़ती उन लहरों के ऊपर खिले कमल के फूल पर जा लगी। मन चिंतन की लहरों पर सरकने लगा, कि ये कमल चाहे जितना कीचड़ से उठा हो लेकिन इसमें कीचड़ जरा भी नहीं है। ये जलज है, इसलिए इसमें ऐसा होना नामुमकिन है, बतौर हमारे हृदयस्थ परमोपकारी, श्रद्धेय गुरुदेव नाम मात्र से ही नहीं कार्य और शान से भी कमल हैं। गुरुदेव यानि सागर समुदाय के युगनायक । ज्ञानतीर्थ स्थापक का जन्मदिन | मन ही मन खुशिय है खुशी से पूरित मन का हर कोना होता है। मन में एक अजीब सा अहसास होता है, ऐसे गुरुवर को हासिल करके। गुरुदेव तो हकीकत में झील में खिले पद्म की तरह हैं, उनकी करुणा यूं ही हम पर सदैव बरसती रहे और हम उसमें भीगते रहें, यही प्रार्थना परम पावन चरण कमलों में ।
पंन्यास महेन्द्रसागर
सद्गुरु रुपी माईल स्टोन
किसी गाँव या शहर में जाना हो तो हम साधन द्वारा मुसाफरी करते हैं, उस रोड पर हर कि.मी. पर माईल स्टोन सरकार की ओर से लगाया हुआ दिखता है, उस पर गाँव-शहर का नाम एवं कि. मी. लिखा हुआ पढ़ने को मिलता है, और वह पढ़ते-पढ़ते हम अपने लक्ष की प्राप्ति कर लेते हैं। यदि वह न हो तो हम रास्ता भटक जाते हैं
और हमारा लक्ष हमें प्राप्त नहीं होता है। वहाँ तो हम भटक जाएं तो कहीं न कहीं से रास्ता मिल जाता है। साथ में साधन है, इसलिये थकान नहीं लगेगी. जैसे रास्ते में मुसाफरी के लिए माईल स्टोन आवश्यक है, वैसे ही इस संसार को पार करने के लिए इस संसार के मार्ग पर गुरु भी माईलस्टोन जैसे हैं। हम संसार में भटक न जाएँ और परमात्मा के द्वार पर हम सुरक्षित पहुँच जाएँ, इसलिए गुरु का अपने जीवन पर महान उपकार है। संसार सागर है, सागर को पार करने के लिए गुरु सेतु (पुल-ब्रीज) के समान हैं। गुरु के बिना भवसागर से पार उतरना बहुत ही कठिन है। परमात्मा को पावर हाउस की उपमा दी गई है और सद्गुरु को बिजली के खंभे की तरह माना गया है। कनेक्शन जोड़ दिया जाए तो जीवन में ऐसा प्रकाश फैलेगा कि पाप, ताप, संताप का अंधकार दूर हो जाएगा।
मुझे भी मेरे जीवन में माईल स्टोन रूपी गुरु मिले हैं, जो मेरे जीवन को सही दिशा में ले जा रहे हैं।
मेरे जीवन में पू. गच्छाधिपति आचार्य देव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. जिन्होंने मुझे मौत के मुख में जाने से बचा लिया।
बचपन में एसी बीमारी में थी कि मौत मेरा शिकार करने के लिए ही खड़ी थी, लेकिन जो व्यक्ति के जीवन में गुरु की कृपा है, आशीर्वाद है, उसके पास मृत्यु भी आने के लिए सोच में पड़ जाती है, ऐसा ही मेरे जीवन में भी हुआ।
For Private and Personal Use Only
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
सितम्बर २०१२
८
मस्तक में पानी भर जाता था, हर १५ दिन में अहमदाबाद डॉक्टर के पास आना पड़ता था। सभी ने आशा छोड़ दी थी। उस वक्त प. पू. आचार्यश्री का आगमन कड़ी (गुजरात) में हुआ था । उस समय महोत्सव का आयोजन था । मेरे भाई मुकेश से बात हुई, उसने मेरी बीमारी की बात आचार्यश्री को बतलाई उसी समय मेरे घर पर आचार्यश्री का आगमन हुआ । मेरी परिस्थिति को देखा और मंत्रित करके वासक्षेप मस्तक पर डाला। उसी समय अंतर हृदय से उनके उद्गार निकले और कहा कि हसुमतीबहन, सुरेन्द्रभाई आप चिन्ता न करें। उसी दिन से आरोग्य प्राप्ति होने लगी। थोड़े दिनों तक डॉक्टर के पास नहीं गये, तो डॉ. ने सोचा बालक की मृत्यु हो गई होगी। डॉक्टर के पास मिलने गए तो डॉक्टर ने प्रश्न किया, क्या बालक जिंदा है? तब माता-पिता ने कहा हमारे गुरु के आशीर्वाद से ही नया जीवन मिला है।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
डॉक्टर ने कहा जो काम दवा न कर सकी वो दुआ ने किया।
आज जो कुछ भी हूँ, वह मेरे जीवनदाता गच्छाधिपति और मेरे जीवन के पथदर्शक आचार्यश्री हैं। जिसके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन अंधकारमय है।
गुरु लेता कुछ नहीं है, देता है सबकुछ। शिष्य देता कुछ नहीं है, लेता है सबकुछ ।।
गणिवर्य प्रशांतसागर
मेरे गुरुदेव में सब कुछ है
आपने सुना होगा कि सोने में सुगंध नहीं होता है, सोना तो सोना होता है, सोना में मूल्य है, सौंदर्य है, चमक है, आकर्षण है, शक्ति है, उसमें और भी बहुत कुछ है, लेकिन सबकुछ नहीं, क्योंकि सोने में सुगंध नहीं है, और अगर सोने में सुगंध होता तो सोने में सुहागा का मुहावरा न बनता 1 अब समुद्र को लें, समुद्र अथाह है, गहरा है, अपने गर्भ में बहुमूल्य रत्न-संपदा को छुपाये हुए है, जलराशि का अक्षय भंडार है, उसमें और भी बहुत कुछ है, मगर उसमें भी सबकुछ नहीं है, क्योंकि समुद्र का जल खारा है, मिठास नहीं है। अब हिमालय है, यह पर्वतों में राजा है एवरेस्ट की चोटी दुनिया भर में मशहूर है, उन्नत है, गगनचुम्बी है, दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भंडार है, गंगा जैसी पवित्र नदी का उद्गमस्थल है, उसमें और भी बहुत कुछ है, लेकिन उसमें भी सब कुछ नहीं है, क्योंकि हिमालय में सीढ़ियों नहीं हैं अब आकाश है, वह स्वच्छ है, असीम है, उसमें सूर्य, चाँद, नक्षत्र, तारे हैं, और भी बहुत कुछ है, लेकिन सबकुछ नहीं, क्योंकि आकाश में फूल नहीं होते, आकाश में खंभे नहीं हैं, चाँद है तो उसमें दाग है, और सूर्य है तो उसे भी ग्रहण लगता है, अब और क्या बचा जिसमें आप कहेंगे कि उसमें सबकुछ है। मैं कहता हूँ कि एक हैं. जिसमें सबकुछ है, वो हैं मेरे गुरुदेव आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी, जिनमें मैंने सबकुछ देखा है । जब मुझे माँ की याद आई, तब गुरु ने माँ बनकर प्यार किया, जब मैंने कुछ गलत किया, तो बाप की तरह डाँटा, एक अच्छे दोस्त की तरह समझाया, मैं जब किसी मुश्किल में होता हूँ, या किसी उलझन में होता हूँ, तो मुझे Backbone की तरह साथ दिया, एक Teacher की तरह हरदम मुझे सिखाया है, एक कुम्भकार की तरह अंदर से बल देकर ऊपर से थपथपाया है, एक जौहरी की तरह हम जैसे काँच के टुकड़ों को घिस घिस कर हीरा बनाया, एक गुरु की तरह मैं मोक्षमार्ग में कैसे आगे जाऊँ उसका लक्ष्य रखा, इसलिये मेरे गुरुदेव सब में बेस्ट हैं, उनमें सबकुछ है ।
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागुं पांय ।
बलिहारी गुरुदेव की, जिसने गोविंद दियो बताय ॥
For Private and Personal Use Only
ये तन विष की वेली, गुरु अमृत की खाण । शीश दीये जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ॥
मुनि भुवनपद्मसागर
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वि.सं.२०६८-द्वि. भाद्रपद
कर्म शत्रु पर विजय पाने का उपाय - प्रवचन सारांश)
परम पूज्य आचार्य भगवंत ने कर्म शत्रु पर विजय पाने का उपाय के संबंध में कहा कि किसी भी क्रिया का मूल भावना है और भावना का आधार सम्यक् श्रद्धा है, जहाँ भावना है वहीं भक्ति है, जहाँ भक्ति है वहीं भावना है. निर्मल, निर्दोष भावना के द्वारा अपने कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं. अनेक महापुरुषों का उदाहरण देते हुए पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि किस प्रकार उन लोगों ने कर्म के अधीन होकर अनेक कष्टों का सहन किया.
पूज्य राष्ट्रसंत ने अनेक धर्ममय भावना वाले व्यक्तियों के उदाहरण दे कर भक्ति और भावना को बहुत सुंदर ढंग से समझाया. उन्होंने कहा संसार का सुख क्षणिक सुख है, मोक्ष का सुख अनन्त सुख है. सांसारिक सुख के लिये अर्जित धन में सभी का भाग होता है किन्तु आध्यात्मिक सुख के लिये अर्जित धन स्वयं के लिये होता है, इसमें किसी का भी भाग या हिस्सा नहीं होता है, सांसारिक सुख की पूर्ति में विश्वास करते हैं, डॉक्टर, वकील, व्यापार आदि में विश्वास करके जो सुख पाते हैं, उससे अधिक सुख परमात्मा की वाणी में विश्वास करने से मिलेगा, एक बार विश्वास करके देखिये.
पूज्यश्री ने कहा कि जब हमने निगोद से बाहर निकलने के बाद ज्ञानी पुरुषों की वाणी का पालन नहीं किया और यहाँ कर्म शत्रुओं के घेरे में घिरते चले गये, यही सबसे बड़ी भूल हुई. प्रभु महावीर ने कहा कि आत्मा स्वयं कर्ता और भोक्ता दोनों है. कर्म के आठ प्रकार हैं, सभी कर्म एक साथ नहीं बन्धते हैं, जिस समय जैसी भावना रहती है उस समय वैसे कर्मों का बन्धन होता है. कर्मों के बन्धन में विचारों का बहुत बड़ा योगदान है. जितनी प्रबल सम्यक् भावना होगी उसी अनुरूप कर्मों की स्थिति का बन्धन होगा, कषायों के माध्यम से कर्मों का बन्धन होता है. कषाय चार प्रकार के हैं क्रोध, लोभ, मान और माया इनका त्याग करना होगा, किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार का कष्ट न हो इसका ध्यान रखना होगा. यह सब सामायिक, स्वाध्याय, चिंतन आदि से प्राप्त हो सकता है. सामायिक से प्राप्त आध्यात्मिक शक्ति के सहारे हम अपनी भावना को निर्मल, शुद्ध बना सकते हैं. अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखें और पूर्ण संकल्प के साथ साधना करें कर्मों का नाश स्वतः होता जाएगा. सांसारिक धन दौलत कुछ भी साथ नहीं जाने वाला है, जो साथ जाने वाला है वह मात्र आपके सुकृत ही हैं. प्रभु से यदि कुछ मांगना हो तो केवल यह मांगें कि हे प्रभु! आपने जो पाया है वही मुझे चाहिए और आपने जो छोड़ा है वह सब मुझसे भी छूट जाए ऐसी शक्ति प्रदान करो, तीर्थंकर की वाणी के अतिरिक्त दूसरा कोई भी मुक्त नहीं करा सकता है. जो मुक्त हैं वही दूसरों को मुक्त करा सकते हैं. शुद्ध भावना से हम अपने कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं. एक बार हमने अपने कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त करली तो जीवन के अनादि अनन्त जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाएगा. मन में सदैव शुद्ध भावना रखें आने वाला भव सुधर जाएगा. मात्र सम्यक् दर्शन आदि के सहारे अनन्त आत्मा मुक्त हो गये हैं. आप भी मुक्त हो जाएंगे. आप समाधि मरण प्राप्त करें यही मेरी भावना और मंगल कामना है.
(अनादिकालीन जीवनयात्रा का इतिहास - प्रवचन सारांश)
परम पूज्य राष्ट्रसंत ने अनादिकालीन जीवनयात्रा का इतिहास के सम्बन्ध में कहा कि आज का मानव संसार के अनेक इतिहास को जानता है किन्तु अपने अनादिकालीन जीवनयात्रा का इतिहास नहीं जानता है. अनन्त काल से जीव अनन्त बार इस संसार की यात्रा कर चुका है किन्तु इस यात्रा को रोकने का कोई भी उपाय नहीं करने के कारण हम संसार में बार-बार आते-जाते रहते हैं. यह मानव जीवन मिला है तो इस जीवन का पूरा-पूरा लाभ लेकर इस जीवन यात्रा को रोकने का उपाय अवश्य करें.
पूज्य आचार्य भगवन्त ने कहा कि हम दिन-रात अपने आस-पास यह देख रहे हैं कि संसार में आने वाला प्रत्येक जीव कितना कष्ट सहन कर रहा है. कोई प्राणी सुखी नजर नहीं आता है. हम भी अपने पूर्व के भवों में इन सभी योनियों में उत्पन्न हये हैं, न जाने कितनी भयंकर यातनाओं को सहन किया है और बार-बार दुःख सहन करते हुए संसार में आते-जाते रहे हैं. अब इस मानव जीवन में आकर भी हमने संसार के मायाजाल में फँसकर यदि अपनी आत्मा के शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करने का उपाय नहीं किया तो यह जीवनचक्र निरन्तर चलता रहेगा और संसार में आने-जाने का सिलसिला जारी रहेगा.
For Private and Personal Use Only
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०
सितम्बर २०१२ पूज्यश्री ने आगे कहा कि हमने आज तक विभिन्न योनियों में जन्म-मरण पाकर इस संसार का भ्रमण किया है, अनेक कष्ट एवं यातनाएँ सहन की हैं और अब भी यदि इस मानव जीवन का सदुपयोग नहीं किया तो और भी अनन्तानन्त जीवन धारण कर कष्ट एवं यातनाएँ सहन करनी पड़ेंगी. जन्म-मरण के इस चक्र को रोकने के लिये हमें अपने इन्द्रियों के विषयों पर नियंत्रण प्राप्त करना होगा, विषय-वासनाओं से मन को विरक्त करना होगा. इन्द्रियों के विषयों की लालसा और कषाय संसारचक्र को बढ़ाता है. मन में जैसे विचार उठेंगे वैसा ही परिणाम मिलेगा. मन ही संसार की वृद्धि करता है और मन ही संसार से मुक्ति दिलाता है. मन में सदैव शुद्ध भावों को धारण करने से आत्मा शुद्ध और निर्मल हो जाती है. प्रायश्चित्त और पश्चात्ताप से मन को शुद्ध करें. सामायिक, प्रतिक्रमण और स्वाध्याय मन को पावन बना देते हैं.
आत्मा को मानव जीवन मिलना बहुत बड़े पुण्योदय का परिणाम होता है, हमें अपने पुण्योदय से मानव जीवन ॥ है तो इस जीवन को धन्य बना लें. संसार में बार-बार जन्म और मरण जैसे भयंकर कष्ट को सहन करने की परम्परा को रोकने का प्रयत्न करें, अगला जन्म ही लेना न पड़े ऐसी भावना मन में दृढ़ करें. हमें यह संकल्प होगा कि अब तक सहा है अब और न सहेंगे, इस संसार से इसी जीवन में मुक्ति लेकर रहेंगे'. आप सभी की मनोकामना केवल मोक्ष को प्राप्त करने की हो, यही शुभकामना है.
। धर्म क्रियाओं का अनूठा रहस्य - प्रवचन सारांश
परम पूज्य आचार्य भगवंत ने धार्मिक क्रियाओं का अनूठा रहस्य के संबन्ध में कहा कि हम वर्षों से धार्मिक क्रियाएँ करते आ रहे हैं किन्तु हमें आज तक उन धार्मिक क्रियाओं का जो सच्चा आनन्द है वह प्राप्त नहीं हो सका है. इसका कारण क्या है? इसकी खोज हमने कभी नहीं की है. किसी भी धार्मिक क्रिया का मूल भावना होती है और भावना का आधार सम्यक श्रद्धा है. जब तक शुद्ध भावना नहीं होगी, हम किसी भी क्रिया का सच्चा आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते हैं.
पूज्य राष्ट्रसंत ने नमस्कार महामंत्र का रहस्य बतलाते हुए कहा कि 'नमो' शब्द ही संसार से छुटकारा दिलाने में समर्थ है. किसी भी मंत्र में 'नमः' शब्द नाम के बाद आता है किन्तु पंच परमेष्ठी नमस्कार मंत्र में नाम के पूर्व नमो शब्द आता है, यहाँ नमो शब्द महत्त्वपूर्ण हो जाता है, और यही इसका मूल रहस्य है. नमो अरिहंताणं में अरिहंत से पूर्व नमो शब्द आता है, इसलिये यहाँ यह बतलाया गया है कि अरिहंत मोक्ष नहीं दिलाते हैं, बल्कि अरिहंत को किया गया नमस्कार ही मोक्ष दायक है. नमस्कार शब्द किसी भी धार्मिक क्रिया का प्रवेशद्वार है. शुद्ध भावना पूर्वक की गई धार्मिक क्रियाएँ हमें वांछित फल प्रदान करती हैं.
पूज्यश्री ने कहा कि सामायिक, तपाराधना, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण, आलोचना, क्षमायाचना आदि क्रियाएँ पूर्ण रूपेण वैज्ञानिक क्रिया हैं. आत्मा का शुद्ध भाव सामायिक, स्वाध्याय, चिन्तन आदि से प्राप्त होता है. सामायिक से प्राप्त आध्यात्मिक शक्ति के सहारे हम अपनी भावना को निर्मल, शुद्ध बना सकते हैं. हम चाहे जितनी भी बाह्य क्रियाएँ करते रहेंगे, किन्तु कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है. शुद्ध भाव पूर्वक किया गया 'मिच्छामि दुक्कडं' भी संसार से मुक्त करा देने में समर्थ है. आप अपने जीवन को संयमित बनाएँ, सभी जीवों के प्रति क्षमा, करुणा, दया, समता का भाव धारण करें, प्रभु महावीर की वाणी में श्रद्धा रखते हुए कोई भी धार्मिक क्रिया करें, तो अवश्य ही आप सच्चा आनन्द प्राप्त करेंगे. आप अपने मन में हमेशा शुद्ध विचार रखते हुए अपनी दैनिक क्रियाएँ करेंगे तो निश्चित ही मानव जीवन को सफल बना सकेंगे.
पूज्य आचार्य भगवन्त ने कहा कि हमारी प्रत्येक क्रिया प्रतिक्रमणमय होनी चाहिए, हम जो भी क्रिया करें उसमें प्रतिक्रमण का भाव दिखना चाहिए. ऐसा नहीं कि धार्मिक क्रियाएँ तो खूब करते रहें किन्तु हमारा आचरण, व्यवहार ठीक इसके विपरीत हो. जब तक हमारा आचरण, व्यवहार आदि शुद्ध नहीं होगा तब तक हम चाहे जितनी भी धार्मिक क्रियाएँ करते रहें, कोई लाभ नहीं होने वाला है. हमारा आचरण, व्यवहार शुद्ध और सम्यक्त्व का भाव लिये होना चाहिए.
अन्त में पूज्यश्री ने कहा कि विचार की शुद्धता और समता भाव आपकी धार्मिक क्रियाओं को सफल बना देंगी. आप अपने मानव जीवन का आने वाले भव को सुंदर बनाने में सदुपयोग करें, आप समाधि मरण प्राप्त करें यही मेरी भावना और मंगल कामना है.
For Private and Personal Use Only
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वि.सं.२०६८-द्वि. भाद्रपद
सांसारिक समस्याओं का आध्यात्मिक समाधान - प्रवचन सारांश
परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने संसार की समस्याओं का आध्यात्मिक समाधान विषय पर भगवान महावीर की वाणी को स्मरण करते हुए कहा कि प्रभु ने सांसारिक सभी समस्याओं के निदान हेतु खूब सुन्दर मार्गदर्शन देते हुए संसार को जड़ एवं चेतन का विज्ञान बताया है। प्रकृति की एक बहुत सुन्दर व्यवस्था है कि समस्या जहाँ से उत्पन्न होती है, समाधान भी वहीं होता है। हमारी समस्त समस्याएँ मन से ही उत्पन्न होती हैं इसलिये इन समस्याओं का समाधान भी मन से ही करना होगा। इसके लिये सामायिक, प्रतिक्रमण आदि के द्वारा अपने मन को निर्मल एवं शुद्ध करके समस्त जीवों के प्रति दया, करुणा, क्षमा आदि का भाव धारण करेंगे तो पाएंगे कि आपके पास कोई भी सांसारिक समस्या है ही नहीं। ___पूज्यश्री ने आगे कहा कि समस्याएँ हमारे अन्दर से उत्पन्न होती हैं किन्तु समाधान हम बाहर खोजते हैं, जबकि ऐसा देखा जाता है कि सभी समस्याओं का समाधान अन्ततः हम स्वयं ही करते हैं। हम सम्पूर्ण संसार का मुल्यांकन तो करते हैं किन्तु अपने स्वयं का मूल्यांकन नहीं कर पाते हैं, जबकि सम्यग्दृष्टि आत्मा सदा स्वयं का ही मूल्यांकन करते हैं और सदा स्वयं में ही लीन रहते हैं। जहाँ आध्यात्मिक भावनायुक्त दृष्टिकोण होगा वहाँ सभी समस्याओं का समाधान स्वतः होता रहेगा। सम्यग्दृष्टि आत्मा तो रहती है संसार में किन्तु वह जल में कमल के समान सदैव अलिप्त रहती है।
पूज्य आचार्य भगवन्त ने वर्तमान परिस्थिति का वर्णन करते हुए कहा कि आज सर्वत्र प्रदर्शन हो रहा है, जहाँ प्रदर्शन है वहाँ स्वदर्शन का अभाव होता है। जबतक प्रदर्शन रहेगा तबतक चारों ओर समस्याएँ रहेंगी और जब स्वदर्शन होने लगेगा तब कोई भी समस्या नहीं रहेगी। इसलिए हमें स्वदर्शन, स्वमूल्यांकन करते हुए स्वयं में लीन होना होगा, तभी हम समस्याओं का समाधान कर पायेंगे। आप यह अच्छी तरह से जान लें कि मन की भूख कभी मिटने वाली नहीं है, लालसाएँ बढ़ती रहती हैं, हम सांसारिक वस्तुओं में सुख खोजते हैं, जबकि ऐसा नहीं होता है। मन को पवित्र बनाएँ, पवित्र मन में पात्रता आती है और तब मन की दरिद्रता दूर होती है। मन की दरिद्रता दूर होते ही आत्मा सुख-शांति का अनुभव करने लगती है। उसके पास कोई समस्या नहीं रह जाती है।
पूज्य राष्ट्रसन्त ने भगवान महावीरस्वामी के बताए मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करते हुए कहा कि आप प्रभु के द्वारा प्रतिपादित मार्ग पर चलने लगेंगे तो आपकी सभी समस्याएँ स्वतः आप से कोसों दूर होती जाएंगी। आपको यह संकल्प लेना होगा कि अब तक सहा है, अब और न सहेंगे, इन सांसारिक समस्याओं का समाधान करके रहेंगे. आप सभी केवल अपने मन को शुद्ध एवं निर्मल बनाएँ, आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी, यही शुभकामना है.
आलोचना आत्मा के आईने पर जमी हुई पाप कर्मों की धूल को पश्चाताप एवं प्रायश्चित के पावन नीर से धोकर आत्मा को उजला बनाना यही सच्ची आलोचना है। भूलों की भूल-भूलैया में भटकते, भटकते अपन कभी अपने आराध्य-उपास्य गुरुजनों के चरणों में बैठकर खुले मन एवं भरी आंखों के साथ अपने दिल के गुनाहों को यथावत् व्यक्त करें-उनसे प्रायश्चित मांगे-फिर से गुनाह-अपराध नहीं करने का दृढ़ संकल्प करें, दिये गये प्रायश्चित को पूरा करें। वैसे तो जब भी पाप लगे, दोष लगे, गल्ती हो तब तुरंत पश्चाताप भरे दिल से प्रायश्चित ले लेना चाहिए। लेकिन जिन्दगी में एकाध बार तो पूरे जीवन में किये हुए पापों की आलोचना करनी ही चाहिए। जिसे अपनी शास्त्रीय परिभाषा में 'भव आलोचना' कहते है। पापों का प्रायश्चित करने से मन हलका रहता है।
___- भद्रबाहुविजय
For Private and Personal Use Only
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१२
www.kobatirth.org
परिवार को प्रेम का मन्दिर बनाएँ
प्रवचन सारांश
परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब ने चातुर्मास अवधि में आयोजित रविवारीय प्रवचन श्रेणी की दसवीं शृंखला में 'परिवार को प्रेम का मन्दिर बनाएँ विषय पर अनन्त उपकारी, अनन्त ज्ञानी परमात्मा महावीर की गाणी का उल्लेख करते हुए कहा कि परमात्मा महावीर प्रभु ने अपने प्रवचन में मैत्री, दया, करुणा, सौहार्द्र आदि का उपदेश देकर हमें अपने जीवन को संयमित बनाने का उपदेश दिया है। हम उनके बताए मार्ग पर चलेंगे तो हमारा परिवार स्वयं प्रेम का मन्दिर बन जाएगा।
दशमी प्रवचन शिविर
-
पूज्यश्री ने परिवार को प्रेम का मन्दिर बनाने के लिये आवश्यक बातें बताते हुए कहा कि प्रेम और मैत्री इतना बलवान है कि इसके सहारे मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। अब यह देखना है कि जिस वस्तु के सहारे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, तो क्या उसके सहारे हम अपने परिवार को प्रेम का मन्दिर नहीं बना सकते ? अवश्य ही बना सकते हैं। जहाँ प्रेम है, वहाँ परमात्मा का वास होता है। भगवान महावीर ने भी संसार के समस्त जीवों के प्रति प्रेम करने को कहा है। आपका प्रेम पूर्ण व्यवहार सामने वाले व्यक्ति का हृदय परिवर्तन कर देता है।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पूज्य आचार्य भगवन्त ने आगे कहा कि भगवान महावीर ने अपने गर्भावस्था में ही माता के कष्टों को देखकर अपना हलन चलन बन्द कर दिया था। उन्होंने अपने इस कार्य से संसार को यह संदेश दिया कि हमारा कोई भी कार्य ऐसा नहीं होना चाहिए जिससे हमारे माता-पिता को किसी भी प्रकार का कष्ट हो । श्रीराम ने अपने आचरण के द्वारा यह संदेश दिया कि मात-पिता की आज्ञा का पालन हमें हर कीमत पर करना चाहिए चाहे वह बन गमन के आदेश को पालन करने जैसा ही क्यों न हो पूज्यश्री ने अनेक ऐतिहासिक उदाहरणों के द्वारा यह बताया कि किस प्रकार पूर्वकाल में महापुरुषों ने अपने माता-पिता के प्रति आदर का भाव प्रदर्शित किया है। आज आवश्यकता है कि हम उनके आचरणों को अपने जीवन में उतारें।
सितम्बर २०१२
पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि आप अपने माता-पिता के प्रति आदर का भाव रखें, बड़ों के प्रति विनय का भाव एवं छोटों के प्रति वात्सल्य का भाव धारण करें, आप पाएंगे कि आप का परिवार एक मन्दिर ही है। आप अपने माता-पिता के प्रति जैसा व्यवहार करेंगे वैसा ही व्यवहार आपकी संतान आपके साथ करेगी यदि आप अपने संतान से योग्य व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं तो आपको भी अपने माता-पिता के प्रति योग्य व्यवहार करना ही होगा। आज पाश्चात्त्य संस्कृति के अनुकरण करने के कारण हमारे संस्कार विकृत हो गये हैं संयुक्त परिवार का लोप हो रहा है और एकल परिवार की वृद्धि होती जा रही है, जो क्लेश का कारण है। पति-पत्नी आपस में बातें करें तो पड़ोसी के कान में वह बात नहीं जानी चाहिए। यदि पड़ोसी के कान में बात गई तो समझ लीजिए की घर में शान्ति नहीं रहेगी। सहनशीलता, धैर्य, समता आदि के द्वारा आप अपने परिवार को शान्ति प्रदान करें और मानव जीवन सफल करें, यही मेरी मंगल कामना है।
हे प्रवचन पुरुष, परिवार हमारे तूट चूके है द्वेष भाव से उब चुके है, दिल के मोती फूट चूके है
विषय: परिवार को प्रेम का मंदिर बनाये
कैसे पाऊं घर में मंदिर, सारी दूनिया को ढूँढ चूके है प्रवचन पथ पर तेरा प्रेम और तेरी बानी लूट चूके है
For Private and Personal Use Only
कैसे पाएँ घर में चैन, एक दूजे से रूठ चूके है गुरुदर, हम कैसे बताए, हम अपने से ही लूट चूके है घर से बेघर हो चुके है, मंदिर की राहे ढूँढ चूके है
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वि.सं.२०६८-द्वि. भाद्रपद
रविवारीय शिक्षाप्रद मधुर प्रवचन शृंखला (शिबिर) के अंतर्गत प. पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की प्रवचन प्रसादी पर कवि हृदय की विनयांजलि
प्रस्तुति : मुकेशभाई एन. शाह, मुंबई छठी प्रवचन शिबिर
विषय : कर्मशत्रु पर विजय का उपाय हे अजात शत्रु, निज कर्म के शत्रु को कैसे मार हटाऊँ? सारे जगत से लडते आया, अपने आप से कैसे बचाऊँ? कैसे रोकू त्रिविधे मनको, दुश्मन घरमें है कैसे समझाऊँ ? रूकते नहीं है मिथ्या अविरत, प्रमाद कषाय को कैसे मिटाऊँ? आत्मा शुद्ध है और चेतन है, जड़कर्मों से भरपुर कैसे पाऊँ? अंतर क्षीर है, बाहर नीर है, घाती-अघाती से कैसे बच पाऊँ? प्रवचन तेरा औषध अक़सीर है, कर्म से जल्दी छुटकारा पाऊँ! सातवी प्रवचन शिबिर
विषय : अनादिकालीन जीवन यात्रा का इतिहास हे परमपुरुष, अनादिकाल से हम भटक रहे है निगोद से निकले फिर भी, चतुर्गतिमें ही अटक रहे है अनंतकाल से घूम रहे है, चरमावर्तमें कभी आयेंगे? पुदगल परावर्त करते करते, लोकांते कभी जायेंगे? सब कुछ देखा, सब कुछ भोगा, आज तक एहसास न हुआ! पांचों इंद्रिय तीनो योगने रोका, चेतन का विश्वास न हुआ!
प्रवचन आपका सुनते सुनते, पंचम गति कभी पायेंगे! आठवीं प्रवचन शिविर
विषय : धर्मक्रियाओं का अनूठा रहस्य हे धर्मधुरंधर, अमृत क्रिया कब कर पायेंगे? बाह्य क्रियाएँ भरपुर की है, भावक्रिया कब कर पायेंगे? शल्य भरे हैं बड़े अंतर में, बाहर सरल दिखाते है, मैत्री भावसे दिलको भर दे, प्रसन्नचित्त कब पायेंगे? धर्मक्रिया को कैसे सज दे, आनन्द से भर पायेंगे? ज्ञानक्रिया का मूल बड़ा है, अमृत-फल कब पायेंगे? प्रवचन पथ पर चलते चलते, क्रिया का अमृत छलकाएंगे!
नवमी प्रवचन शिविर विषय : संसार की समस्याओं का आध्यात्मिक समाधान
हे प्रशम गुरु, आधि-व्याधि और उपाधि सब से ग्रस्त हूँ ढूँढ रहा हूँ बाहर सबसे, समाधान, फिर भी त्रस्त हूँ पहेली कैसे बढ़ती जाये, पहेली बुझाने में ही व्यस्त हूँ अंतर से कभी ना बात करूं मैं, अहंकार में ही सदा मस्त हूँ छल कपट से आज तक जिया. अपने आपमें ही भ्रष्ट हूँ हर समस्या का मूल अंदर है, आज तक ना ही स्पष्ट हूँ प्रवचन पथ पर हमें समझाओं, अपने आपमें मैं ही कष्ट हूँ
For Private and Personal Use Only
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४
सितम्बर २०१२
પર્યુષણ મહાપર્વ...(પ્રથમ દિવષ)
- ભદ્રબાહુવિજય પ્રાણીમાત્રને પ્રેમનો પયગામ આપતું પર્વ! વેર - વિખવાદનાં ઝેરી બંધન કાપતું પર્વ!
જીવનની સરગમ પર સ્નેહના સૂર છેડતું પર્વ!
હૈયામાં હાશ-હળવાશની તાજગી રેડતું પર્વ! જાતમાં જીવવાની રીત બતાડતું પર્વ સહુના પ્રત્યે આંતર પ્રીત જગાડતું પર્વ
અહિંસાની આલબેલ પોકારતું પવી
હિંસાની આગને ઠારતું પર્વ! પર્વોની દુનિયામાં સોહામણું પર્વ!
પર્વોના મેળામાં લોભામણું પવી આવો, આપણે હેતપ્રીતના તોરણ બાંધતા અને તૂટેલાં દિલોના તારોને સાંધતા આ પર્વને વધાવીએ, આ મહાપર્વની પાવન પળોને ત્યાગ, તપ અને પ્રભુભક્તિની ભીનાશથી ભરી ભરી બનાવીએ.
પર્યુષણ મહાપર્વ.. (બીજો દિવા)
પર્યુષણ શબ્દનો અર્થ જાણો છો? Come on... હું તમને ઓળખાણ કરાવું આ પર્વની! પર્યુષણમાં ઘર + ૩૬ આમ બે શબ્દોનું સુંવાળું સંયોજન છે : રિ એટલે ચારે બાજુથી.. ૩૬ એટલે રહેવું.... વસવું... બેસવું.. ચારે બાજુથી આત્મામાં રહેવું, સમગ્રતાથી સ્વમાં જીવવું એનું જ નામ પર્યુષણ! જે અર્થ ઉપવાસનો છે. આત્માની નિકટમાં રહેવું, તે જ અર્થ પર્યુષણનો છે. દુનિયાની ભીડમાં ભલે ખંડ - ખંડ બનીને આપણે જીવીએ... પણ ધર્મના જગતમાં તો અખંડ બનીને સમગ્રતાથી જ કદમ ભરી શકાય! Live with your totality in the present moment. એટલે પર્યુષણની પ્રાણભરી ઉપાસના!
પર્યુષણ શીખવે છે જાતમાં જવાની રીત! પર્યુષણ આપે છે જાતમાં જીવવાની શીખ!
જગતની આળપંપાળમાં રહીને પણ જો જાતમાં જીવતાં નહીં આવડે તો જીવન ઝંખવાઈ જશે! પર્યુષણની પળોમાં કરો જાત સાથે વાત!
જાત સાથે મુલાકાત! My friend! Live with yourself.
પર્યુષણ મહાપર્વ... (બીજો દિવસ)
જીવનના સરોવરમાં પ્રેમનાં પોયણાં ખીલવવાની પ્રેરણા આપનાર પર્યુષણનો એક સંદેશ છે અહિંસાનો! સામાન્ય રીતે અહિંસાનો અર્થ કોઈને મારવા નહીં એવો કરવામાં આવે છે. પણ ના... આ અર્થ તમે તો જાણો છો
For Private and Personal Use Only
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
વિ.સં.ર૦૮-હિ. મારા
૧૬ કે કોઈનો જીવ ઝૂંટવવો એ જેમ હિંસા છે તેમ કોઈના દિલને દુભવવું એ પણ હિંસા છે. બીજાના દેહને જેમ પીડા નથી આપવાની તેમ અન્યના દિલને પણ ઠેસ નથી પહોંચાડવાની! શરીરના ઘા સમયની પાટાપિંડીથી રૂઝાઈ જાય છે. મનને લાગેલા ઘા જલદી નથી રૂઝાતા! ભૂલેચૂકેય કોઈના પ્રાણને પીડા ના આપશો... પંપાળી ના શકો તો કંઈ નહીં! જીવનમાં ડગલે ને પગલે આપણે અહિંસાની આલબેલ પોકારવાની છે! હિંસાની હાયવોય હવે ઠારીએ.. જીવનને અહિંસાથી શણગારીએ!
My friend
लगा सको तो बाग लगाना, आग लगाना मत सीखो। जला सको तो दीप जलाना, दिल जलाना मत सीखो। बिछा सको तो फूल बिछाना, शूल बिछाना मत सीखो। पिला सको तो प्यार पिलाना, जहर पिलाना मत सीखो।
Forget, forgive & be friend!
પર્યુષણ મહાપd...(થોથો દિવસ)
આવો દોસ્ત! પર્યુષણની ચાંદની જેવી શીળી ચોથા દિવસની ઊજળી ઊજળી ઉષાનો સ્પર્શ તમને હળવેથી ભેટે છે! આજનો દિવસ કલ્પસૂત્રની વાચનાનો પ્રથમ દિવસ! તમે કલ્પસત્ર અંગે જાણો છો ખરા? આવો.. ત્યારે એની જ વાતો આજે કરીએ!
શોક અને મોહની જાળને જલાવી દેનારા આ કલ્પસૂત્રને યુગપ્રધાન-ચૌદ પૂર્વધર ભગવાન ભદ્રબાહુ સ્વામીએ ‘દષ્ટિવાદ' નામના ૧૨ મા અંગના નવમા પ્રત્યાખ્યાન પૂર્વમાંથી અલગ તારવીને ‘દશાશ્રુતસ્કંધ' ના આઠમા અધ્યયન તરીકે સુગ્રથિત બનાવ્યું. ગુરુશિષ્ય પરંપરાથી મુખપાઠ થતા આ કલ્પસૂત્રને વિ. સં. ૫૧૦ માં લિપિબદ્ધ (ગ્રંથરૂપે) કરવાનું શ્રેય છે મહાન શ્રતધર શ્રીદેવધિંગણી ક્ષમાશ્રમણને! એ ધરતી હતી વલ્લભીપુર સૌરાષ્ટ્ર) ની! આ ગ્રંથનું સર્વ પ્રથમ સંઘ સમક્ષ વાંચન વિ. સં. ૫૨૩ માં થયું છે. ગુજરાતના ત્યારના પાટનગર આનંદપુર (વડનગર) ખાતે રાજા ધ્રુવસેનના રાજ્ય પરિવારના શોકને દૂર કરવા માટે આચાર્ય શ્રી. કાલિકસૂરીશ્વરજીના શ્રીમુખે! આ ગ્રંથ પર “સુબોધિકા' નામની સંસ્કૃતમાં રસમય ટીકા (Commentary) લખવાનો જશ જીતે છે વિ. સં. ૧૬૯૬ના જેઠ સુદ ૨ ના દિવસે ઉપાધ્યાય શ્રી વિનયવિજયજી! ગુજરાતી ભાષામાં એના પર ખીમશાહી ટીકા લખવાનું કાર્ય વિ. સં. ૧૭૦૭ ના વૈશાખ સુદ ૧૦ ના દિવસે અમદાવાદ ખાતે મુનિશ્રી ખીમાવિજયજીએ પૂર્ણ કર્યું. તત્કાલીન નગરશેઠ શ્રી હેમાભાઈ પ્રેમાભાઈની હાજરીમાં અમદાવાદમાં સકળ સંઘ સમક્ષ એ જ વરસે એના વાંચનનો પ્રારંભ થયો.
જર્મન સ્કૉલર રીયુ જે. સ્ટીવન્સન ઈ. સ. ૧૮૪૯ માં પ્રથમ વાર વર્તમાનમાં કલ્પસૂત્રને વિદ્વતાપૂર્ણ સંપાદનથી સાંકળીને પ્રગટ કરવાનું શ્રેય મેળવે છે!
આ છે કલ્પસૂત્ર અંગે આછીપાતળી જાણકારીની ઝલક! કલ્પ એટલે આચાર!
શ્રમજીવનની આચાર વ્યવસ્થાની વિસ્તૃત વિવેચના ને વિચારણા કરતા કલ્પસૂત્રને સાંભળતાં ભાવવિભોર બની જજો!
For Private and Personal Use Only
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सितम्बर २०१२ પર્યુષણ મહાપર્વ...(પાંચમો દિવસ) સોણલાંની પણ એક સોહામણી દુનિયા છે... ભાવિના અનેક સંકેતો શમણાંની સોડમાં ઇશારા કરે છે. ભગવાન મહાવીરની માતા ત્રિશલાએ જોયેલાં ૧૪ નમણાં શમણાં કેવાં સવાળાં ને પ્યારાં પ્યારાં છે? એક એક
હાવીરના મોહક વ્યક્તિત્વને કળીમાંથી ઊઘડતા ફૂલની જેમ ઉઘાડ કરે છે. સપના એ વ્યક્તિના ભીતરી અસ્તિત્વની પ્યાસને પ્રગટ કરે છે! સુંદર સોણલાંની છાબ પણ એના જ નસીબમાં હોય છે કે જે અંતરથી સુંદર હોય! અત્યારે તો વૈજ્ઞાનિકો આધુનિક Micro electrionic instruments દ્વારા સપનાંઓના અજાણ્યા પ્રદેશની સફર ખેડે છે.
આપણાં શાસ્ત્રો તો સદીઓથી આ વાતને વિવેચી રહ્યાં છે! જરી પલકોનો પડદો પાડીને પહોંચી જજો ક્ષત્રિયકુંડના રાજપ્રસાદમાં પોઢેલાં દેવી ત્રિશલાની પાસે...એમના અસ્તિત્વમાંથી નીતરતી લાગણીઓની ભીનાશને જોજો!
એક વાત ના ભૂલશો... આજનો દિવસ મહાવીર જન્મ વાંચનનો છે, મહાવીરનો જન્મદિવસ નથી! આજનો દિવસ દેવી ત્રિશલાને આવેલાં શમણાંઓના નમણા ગામમાં ગરબે ઘૂમવાનો દિવસ છે.
પર્યુષણ મહાપર્વ...(છઠ્ઠો દિવસ)
પરમાત્મા મહાવીર દેવના રોમાંચક જીવનપ્રસંગોની પાવન પ્રેરણાના અમીઘૂંટ પાતી આજની અલબેલી ઉષા
છઠ્ઠો દિવસ લઈ આવી છે. વર્ધમાન રમે છે મિત્રોની મહેફિલમાં પણ એના અંતરના આંગણે તો ઉદાસીનતા જ રહે છે. માની ઇચ્છા સંતોષવા યશોદા સાથે લગ્નજીવન પણ જીવે છે, છતાંયે એનો આત્મા આ બધાં બંધનોથી અળગો છે! સર્વ ત્યાગની કેડીએ ચાલ્યા જતા વર્ધમાનને વિદાય આપતી યશોદાની જરા કલ્પના તો કરો, પોતાના પતિને ત્રિભુવન પતિ બનાવવાના કોડ ખાતર એ નમણી નારીએ પોતાના સુખની જરાયે પરવા ન કરી. એણે હસતા મોઢે વિદાય આપી પોતાના કંથને મહાન સંત થવા માટે! અરે એટલું જ નહીં, પ્રાણપ્યારી પુત્રી પ્રિયદર્શનાને પણ ત્યાગના પંથે વાળી. મહાવીરની મહાન ઇમારતમાં આ યશોદાએ પોતાના ધબકતા પ્રાણોની કાંઈક કાંઈક ઈંટો મૂકી હશે. એ મહાન નારીએ પોતાના સર્વસ્વને દૂર દૂર જતા જોઈ બોર બોર જેવડાં આંસુ પાડ્યાં હશે! છતાં પણ કોઈ ફરિયાદ વિના પોતાના જીવન-ધનને જગતધન બનાવનાર એ યશોદાને ઓળખ્યા વિના મહાવીરની ઓળખાણ અધૂરી રહેશે.
પર્યુષણ મહાપર્વ...(સાતમો દિવસ) ઊગતા સૂરજની સાખે લહેરાતી, પ્રસન્નતાનાં ફૂલો વિખેરતી સોહામણી પળો પર્યુષણનો સાતમો દિવસ લઈ આવી છે.
સંસ્કૃતિના આદ્ય પુરસ્કર્તા પરમાત્મા આદિનાથ તથા કાશીના કોડામણા રાજકુમાર પાર્શ્વનાથના જીવનની ઘણી ઘણી વાતો આજે સાંભળવાનો દિવસ છે. તેમ ઇતિહાસનાં પાનાંઓ પર સોનેરી અક્ષરે કંડારાયેલી પ્રેમની સર્વોચ્ચ કહાણી પણ આજે સાંભળજો નેમ અને રાજુલ! આઠ..આઠ ભવની પ્રીતના જેણે ચોક પુરાવ્યા છે એવી રાજુલને તરછોડીને ગિરનારની વાટે ચાલ્યા જતા નેમ! યુગયુગની પિછાણ જાણે કે પળભરમાં કોઈ કોઈને જાણતું નથી એ હકીકતની પથરદીવાલ બની જાય છે.
નેમ વિના નહીં ભજું નાથ અનેરો'ની ધૂણી ધખાવી બેઠેલી રાજુલ પ્રિયતમને પામવા, સદા માટે એનામાં લીન બની જવા સંયમન કાંટાળા રાહે કમળ- કોમળ કદમ માંડે છે. દેહ - પ્રેમને સ્વાર્થ સંબંધોની ભુલભુલામણીમાં ભૂલા પડેલા આપણે જરા એક નજર આ પ્રેમનાં પ્રતીકો તરફ નાંખીએ કે જેથી આપણા અણુએ અણુએ દિવ્ય પ્રેમની સરવાણી વહે, જેમાં પરમ શાંતિનાં નીર લહેરાતાં હોય!
For Private and Personal Use Only
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
વિ.સં.ર૦૮-દિ. માદ્રપદ
૧૭
પર્યુષણ મહાપર્વ...(આઠમો દિવસ)
વજ હૃદયના બોલ
ક્ષમાપના મીઠા મનના કોલ
ક્ષમાપના આજે દિવસ છે સંવત્સરીનો! ક્ષમાપનાનો! ક્ષમાપના...જીવનની પાયાની જરૂરિયાત છે ક્ષમા.. ક્ષમાવિહોણું જીવન તો રણ જેટલુંય રળિયામણું નથી લાગતું! રણમાંય રાત પડ્યે રેતીનો સુંવાળો ને શીળો...શીળો સ્પર્શ સાંપડે છે. જ્યારે ક્ષમા વગરના જીવનમાં તો નર્યા વેરની આગ ધગધગે છે. દાઝવા સિવાય કશું બીજું નથી એ જીવનમાં! દોસ્ત... આ જિંદગી મિત્રોની મહેફિલ બનાવવા માટે છે..શત્રુઓનું સ્મશાન ઊભું કરવા માટે નથી...! આ જીવન છે દોસ્તોની દોલત વધારવા માટે, નહીં કે દુશ્મનોની દયનીયતા પેદા કરવા! ભૂલ થઈ નથી થઈ, માફી માંગી લેવામાં નાનમ નથી! ઝૂકવામાં જરાય ઝાંખપ નહીં લાગે! ઊલટું સામી વ્યક્તિનું દિલ તમે જીતી લેશો! હું ઇચ્છું છું.
આજે તમારી આંખોમાં કરુણાનું કાજળ અંજાય! તમારા દિલના દરવાજે મૈત્રીનાં લીલાંછમ તોરણ બંધાય.
તમારા હોઠોની પાંદડીઓ વચ્ચે હેત પ્રીતનાં ફૂલો ખીલે! તમારા ચહેરા પર સ્મિતની ૨મ્ય ચાંદનીનાં નીર ઝીલે!
મૈત્રીનું મોધું મોતી દોસ્તીના દાબડામાં સચવાશે! ક્ષમાનું રતન
મૈત્રીના જતન વગર ઝંખવાશે? સૃષ્ટિના તમામ જીવાત્મા સાથે મૈત્રીનો નાતો બાંધવા માટે આપણાં ધર્મશાસ્ત્રો આપણને ઉપદેશે છે. આદેશ છે ત્યારે કમ સે કમ જેની સાથે જીવીએ છીએ જેની સાથે રહીએ છીએ, એ બધાંની સાથે તો મૈત્રી રચીએ/રાખીએ!
મૈત્રીનો પ્રારંભ નિજથી કરો! મૈત્રીની શરૂઆત નિજીથી કરો!
(વિચારપંખી' પુસ્તકમાંથી)
સ્વયે માફી માંગી લ્યો અને કરી તો સહુને માફ, મનના ખૂણે ખૂણાને કરી દો
ક્ષમાભાવથી સાફા
- ભદ્રબાહવિજય
For Private and Personal Use Only
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૧૮
सितम्बर २०१२
afમાપના
- - કનુભાઈ શાહ खंती सुहाण मूलं, धम्मस्स उत्तमा खंती।
हरइ महाविज्जा इव, खंती दुरियाई सव्वाइ ।। ७०।। (संबोधसित्तरी) શ્લોકાર્થઃ સુખનું મૂળ ક્ષમા છે; ધર્મનું મૂળ પણ ઉત્તમ ક્ષમા છે, મહાવિદ્યાની જેમ ક્ષમા સર્વ દુરિતોને હરે છે.
જૈન ધાર્મિક પર્વોમાં સહુથી મહત્ત્વનું પર્વ છે પર્યુષણ પર્વ. વર્ષમાં એક વખત આવે છે અને તેને ભાવોત્કર્ષપૂર્ણ મનાવે છે. પર્યુષણ પર્વ સૌના મનના મેલને ધોવા માટે છે. મનુષ્ય પોતાનું શરીર દરરોજ સુગંધીદાર સાબુથી સાફ કરે છે. પરંતુ મનના મેલને ધોવા માટે કોઈ વ્યવસ્થિત ધ્યાન આપતું નથી અથવા બહુ ઓછું ધ્યાન આપે છે. મનની નિયમિતતા વિના શરીરની સજાવટનું મૂલ્ય કેટલું? પરિવાર અને સમાજનો સંબંધ દરેકના મનના વિચારો સાથે હોય છે. જો દરેકનું મન નિર્મળ ન હોય તો દરેકના વિચારો નિર્મળ કેવી રીતે હોય ? તો મનને નિર્મળ અને કોમળ કેવી રીતે બનાવી શકાય ? જૈન આગમ મનુષ્યના મનને પર્યુષણ પર્વ દ્વારા સ્વચ્છ કરવાનો અવસર અને પ્રેરણા પ્રદાન કરે છે. તેમજ કલુષિત મનને સ્વચ્છ કરવા, નિર્મળ કરવા પૌષધ, સવાર-સાંજ પ્રતિક્રમણ, તપશ્ચર્યા, ખમત-ખામણા જેવી મહત્ત્વની ક્રિયાઓ કરવાનું સૂચવે છે. પર્યુષણ પર્વનો મહત્ત્વનો સંદેશ છે ક્ષમાપના, મિચ્છામિ દુક્કડમ્.
શરીર સ્વચ્છ કરવાનો નિત્યક્રમ ચાલતો હોય છે પરંતુ મનને સ્વચ્છ કરવા/નિર્મળ કરવાનો અવસર તો વર્ષમાં ફક્ત એક જ વખત સંવત્સરીના પાવન દિવસે આવે છે. આ દિવસે હૃદયની ક્ષમાપના આપવાનો દઢ સંલ્પ કરવો જોઈએ. વર્ષ દરમિયાન મન લુષિત થયું હોય, મનમાં તનાવ ઉત્પન્ન થયો હોય, દુઃખ થયું હોય, કોઈને દુઃખી કર્યો હોય, કોઈ પણ ક્રોધ કર્યા હોય, કોઈનું અનિષ્ટ કર્યું હોય, ગુસ્સામાં ને ગુસ્સામાં અશોભનીય વર્તન કર્યું હોય-આ બધાં કારણોસર મનમાં દુર્ભાવ પેદા થયો હોય તેના માટે “
મિચ્છામિ દુક્કડમ્ પાઠવવાનો આ પાવન પ્રસંગ આવ્યો છે તેને હાથથી જવા દેવો ન જોઈએ. મનમાં પશ્ચાતાપની લાગણીથી સામાના દિલમાં જે ઠેસ પહોંચાડેલી હોય તેની ખરા ભાવથી માફી માગવી જોઈએ. આવું ફરીથી ન બને તેની ખાત્રી આપવી જોઈએ. પર્યુષણ પર્વમાં થયેલી ભૂલો સુધારવાનો મોકો વધાવી લેવો જોઈએ. આપણે કરેલા અત્યાચાર કે દુર્વ્યવહારો થયા હોય તેવી વ્યક્તિઓ પાસે જઈને ખરા ભાવથી, સાચા મનથી ક્ષમા માગવી જોઈએ અને હૃદયને હળવું બનાવવું જોઈએ. અતિક્રમ-વ્યતિક્રમ, અતિચાર-અનાચાર થયા હોય તો ક્ષમા માગવી જ જોઈએ પરંતુ અજાણતાં પણ જેમની સાથે મનદુખ થયું હોય તે માટે પણ ક્ષમા માગવી જોઈએ. અહંકારને ગાળી નાખીને સરળ હૃદયથી ક્ષમા માગવી તે ઘણું મુશ્કેલ કામ છે. એટલે જ કહેવાયું છે કે ક્ષમા તો વીર-મહાવીર જેવા જ માગી શકે. ક્ષમા વીરસ્ય ભૂષણમ્'
હસતાં હસતાં, સરળતાપૂર્વક, અહંકારનું વિસર્જન કરીને ક્ષમા પ્રાર્થવાનું કાર્ય તો ઉત્તમ આત્માઓ જ કરી શકે. મનમાં ગાંઠો બાંધી રાખનાર વ્યક્તિ ક્ષમાયાચના કરી શકતી નથી. ક્ષમા-દાન અને ક્ષમા યાચના બંને પવિત્ર કાર્યો છે. આ દિવ્ય કૃત્યથી મન વિશુદ્ધ બનીને હર્ષમય લાગણીની ભીનાશથી હૃદય હળવું ફુલ જેવું બની જાય છે. સમાજમાં માનવ-માનવ વચ્ચે થતી ક્ષમાપનાની આ ક્રિયા વડે માનવ સમાજનાં શાંતિ, સદૂભાવ અને પ્રેમની લાગણી ઉદ્ભવે છે.
- પર્યુષણ પર્વનો આઠમો દિવસ એટલે સંવત્સરીનો દિન! સંવત્સરી મહાપર્વ મનમાં બંધાયેલી ગાંઠોને છોડવામાં મદદ કરે છે. વર્ષભર જાણે-અજાણ કરેલી ભૂલોને યાદ કરીને ક્ષમાના આદાન-પ્રદાન દ્વારા મનની કટુતા દૂર થાય છે. તપની આરાધના કરવી સરળ છે, પરંતુ ક્રોધ પર વિજય મેળવવો દુષ્કર છે. તેવી જ રીતે ક્ષમા આપવી અને લેવી અને મનમાં રહેલી ગાંઠો છોડવી એ પણ એટલું જ દુષ્કર છે, ક્ષમા મહાન તપ છે. જે ક્ષમાની સાધના કરે છે તેનું જીવન અમૃતમય બને છે. દુ:ખને સુખમાં બદલવા માટે ક્ષમાશીલ બનવું જરૂરી છે. ક્ષમામાં જીવનનો સાર ભર્યો છે. જે વ્યક્તિ ક્ષમાભર્યું જીવન જીવે છે તે જીવનમાં પ્રસન્નતા પ્રાપ્ત કરે છે. ધર્મનું મૂળ સમ્યક દર્શન છે. સમ્યક્દર્શનનું મૂળ ક્ષમા છે. મનની ગાંઠો ખોલી નાખીએ તો આધ્યાત્મિક પ્રસન્નતા પ્રાપ્ત થાય છે. જો કોઈ પણ વ્યક્તિ પ્રત્યે અસહિષ્ણુતા કે કલુષિતતાનો ભાવ આવી જાય તો તે વ્યક્તિને ખબર હોય કે ન હોય પરંતુ તેની ક્ષમા માગી લઈએ તો તે આપણો કલ્યાણ મિત્ર બની જશે.
(શ્રીમદ્ બુદ્ધિસાગરસૂરીશ્વરજી કૃત સાંવત્સરિક ક્ષમાપના, પૃ-૨માંથી) ‘હે જગતના જીવો!
તમે મારા આત્મા સરખા છો. તેમ છતાં ભૂલથી મેં તમને અનેક પ્રકારે દુ:ખ આપ્યું હોય તેની ક્ષમાપના પ્રેમભાવથી યાચું છું. એકેંદ્રિય, દ્વિન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય અને પંચેન્દ્રિય જીવબંધો!
મેં તમારી સાથે હિંસક વર્તન ચલાવ્યું, તેમાં વાસ્તવિકરીત્યા મારો વાંક નથી કિંતુ કર્મની પ્રેરણાથી કર્મનો વાંક છે. તેથી પરાધીન અજ્ઞાની મેં જે જે અપરાધો કર્યા હોય, તેને મન વચન કાયાથી ખમાવું છું.”
For Private and Personal Use Only
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
NOM
वि.सं. २०१८-द्वि.भाद्रपद
पर्युषण महापर्व एवं परम पवित्र श्री कल्पसूत्र से संबन्धित ग्रन्थों की सूचि
(यह तमाम ग्रन्थ कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में उपलब्ध है) अनु. प्रकाशन नाम विद्वान | भाषा| वर्ष
प्रकाशक
पृष्ठ सं. पर्युपणना चोथाथी सातमा । अजितशेखरविजय गु. वि. 2063 दिव्य दर्शन ट्रस्ट, धोळका
16+367 दिवसना व्याख्यानो पर्युपणपर्व प्रश्नोत्तरी अज्ञात जैन
मधु प्रिन्टर्स, सिरोही
24 पर्युपणा महापर्व के
अज्ञात
हिं. वि. 2056 | दिव्य दर्शन ट्रस्ट, धोळका 4+186 अष्टाह्निका प्रवचन पर्युपणा अट्ठाईनां गुजराती अज्ञात गु. वि. 2028 मोतीशा लालबाग जैन
2+416 त्रण व्याख्यानो
चेरीटीझ, बंबई | पर्युपणाप्टाह्निका व्याख्यान अज्ञात
वि. 2018 जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार, बंबई | 4+127 पर्युपण अष्टान्हिका अज्ञात
ई. 2002 | दिपक ज्योति जैन संघ, मुंबई 50 पर्युषणा अट्ठाईना गुजराती | अज्ञात*
वि. 2028 कांतिलाल मणीलाल झवेरी, | 150 त्रण व्याख्यानो
बंबई पर्युपणपर्वकल्पलता अज्ञात वि. 1999 | जैन ग्रंथ प्रकाशक सभा,
38
अहमदाबाद 8 पर्यपणापानी कथाओनो | अज्ञात'
बि. 1988 भीमसिंह माणेक श्रावक, 180 संग्रह
मुंबई 10 पर्युषणपर्वकल्पलता
अज्ञात
वि. 1991 जैन ग्रंथ प्रकाशक समिति, | 38
अहमदाबाद 11 पर्युषणाप्ताहिनकाव्याख्यान | अज्ञात*
अज्ञात* अज्ञात
48 12 | पर्युषणाप्ताहिनका व्याख्यान अज्ञात
गु. वि. 2041 जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार, बंबई | 4+263 13 पर्युपण आराधना
अज्ञात' गु. ई. 1978
विश्व अभ्युदय आध्यात्मिक
ग्रंथमाला, बंबई 14 | पर्युपणपर्व व्याख्यानमाला अज्ञात
मुंबई जैन युवक संघ, मुंबई 175 15 | पर्युषण पर्वनी कथा
अज्ञात
वि. 1959 ज्ञानप्रकाश प्रेस, अहमदाबाद 45 16 पर्युपण महापर्व माहात्म्य अज्ञात
वि. 1970 जैन श्रेयस्कर मंडल, महेसाणा 54+414 पर्युषणमहापर्व प्रथोत्तरी अज्ञात
अज्ञात अज्ञात
24 18 पर्वाधिराज पर्युपणा पर्वनो अज्ञात*
| वि. 2040 शैलेषकुमार शांतिलाल 16 महिमा
महेता, अहमदाबाद 119 पर्युषण पर्वनां व्याख्यानो अज्ञात
कैलास कंचन भावसागर
124+6
श्रमण संघ सेवा ट्रस्ट, बंबई 20 पर्युषणा पर्व महात्म्य अज्ञात*
गु. वि. 1982 | उमेदचंद रायचंद मास्तर, | 8+160
अहमदाबाद 21 पर्युषणाद्यष्टाह्निका अध्यात्मजित्
अज्ञात* अज्ञात व्याख्यान पर्युषण अनवर आगेवान
ई. 1990 प्रेमायन प्रकाशन, मुंबई 8+15 23 पर्युषण प्रवचन अमरमुनि | हिं. ई. 1994
सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा 8+184 पर्युपणापर्वादिक पर्वोनी अमृतकुशल | गु. वि. 2056 | जिनशासन आराधना ट्रस्ट, 14+194 कथाओ
मुंबई 25 | पर्युपणापर्वनु उत्तम ध्येय आनंदसागर
वि. 2030 जैन आनंद पुस्तकालय, सूरत | 16+100+1
48
24
ग.
For Private and Personal Use Only
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
२०
अनु.
26
27
28
29
30
31
32
33
34
35
36
37
38
39
40
41
42
43
44
45
46
47
प्रकाशन नाम
पर्युषण अष्टानिका व्याख्यानानि
विद्वान आनंदसागरसूरिजी हिं.
पर्युषणाष्टानिकाव्याख्यान आनंदसागरसूरिजी गु.
पर्युषणा अष्टानिका
आनंदसागरसूरिजी गु.
व्याख्यान
पर्वाधिराज पर्युषणा पर्व का इंद्रचंद्र नाहटा
उद्देश्य
पर्युषण माहात्म्य
पर्युषण पर्वाष्टानिका
व्याख्यानम्
पर्युषणाष्टानि काव्याख्यान
भाषांतर
पर्युषणापर्वाष्टान्हिकाव्या
पर्युषणापर्याष्टानिकाव्या
उदयसोमसूरि
उदयसोमसूरि
उदयसोमसूरि
पर्युषणाष्टानिका व्याख्यान उदयसोमसूरि
पर्युषण पर्वना प्रेरक प्रवचनो कनकचंद्रसूरि
कनकचंद्रसूरि
कनकविजय
काशीनाथ जैन
ख्यानम्
ख्यान
पर्युपणपर्वना अष्टानिका व्याख्यानो
पर्युपणपर्व के प्रेरक प्रवचन
पपणपर्व माहात्म्य और गजसिंहकुमार
उदयरत्नसागर
उदयसोमसूरि
पर्युषण पत्रमाळा
पर्युषण प्रमादी
पर्वाधिराज पर्युषण
पर्युषणानो पावन संदेश
पर्युपण प्रवचन
पर्युषण प्रवचन धारा
पर्युपणना व्याख्यानी अने
सांवत्सरिक क्षमापना पर्युपण स्वाध्याय अने कथाओ
www.kobatirth.org
सा.
गुणरत्नसूरीश्वरजी
म. सा.
गुणसागरसूरि
भाषा
गु.
तে
3.
सं.
सं.
सं.
सं.
सं.
गु.
गु.
हिं.
ग
कीर्तिचंद्रविजय
कीर्तिचंद्रविजय
कीर्तियशसूरि
कीर्तिसेन सूरीश्वरजी गु.
म. सा.
केवलमुनि
गु.
गिरीशचंद्रजी म.
हिं.
गु.
गु.
गु.
गु.
गु.
गु.
वर्ष
fa. 2042
वि. 2035
fa. 2013
fa. 2022
वि. 1938
वि. 2001
वि. 2001
fa. 1987
fa. 1970
fa. 2055
fa. 2043
वि. 2025
ई. 1943
fa. 2039
ft. 2038
वि. 2063
ई. 2001
ई. 1989
For Private and Personal Use Only
.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वि.सं. २०६८-द्वि. भाद्रपद
पृष्ठ सं. 4+192
प्रकाशक
नेमचंद मेलापचंद जैन उपाश्रय ट्रस्ट, सूरत
विनोदकुमार बाबूलाल शाह, सूरत
धनजी देवचंद्र झवेरी, बंबई
जैन श्वेतांबर महासभा, उत्तरप्रदेश
सूरत
अज्ञात अज्ञात
दानसूरीश्वर जैन ग्रंथमाला, सुरत
जैन विद्याशाला, अहमदाबाद
विजयदानसूरि जैन ग्रंथमाला, | 20
परशोत्तमलालजी तंबोली, जामनगर
हीराचंद हरगोवन कापडिया,
भावनगर
विश्वमंगल प्रकाशन मंदिर पाटण
विश्व मंगल प्रकाशन मंदिर पाटण
विश्व मंगल प्रकाशन मंदिर
पाटण
आदिनाथ हिंदी जैनसाहित्य
माला
बंबोरा
प्रेरणा प्रकाशन ट्रस्ट
तीथल
प्रेरणा प्रकाशन
मोरबी
सन्मार्ग प्रकाशन
अमदावाद
जय शत्रुंजय आराधना भवन पालीताना
केवळ जिन दर्शन ट्रस्ट
160
2+63
आर्य जय कल्याण केंद्र ट्रस्ट, बंबई
2+2+12
2+220
34
19
43
2+68
8+148
8+148
18+167
2+8+10
3
6+59+2
56
8+98+6
96
80
अहमदावाद
प्राण परिमल प्रकाशन ट्रस्ट बंबई
जिनगुण आराधक ट्रस्ट, मुंबई 2+81
28+210
24
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
वि.सं. २०६८-हि. भाद्रपद
अनु.
48
49
50
51
52
53
54
55
56
57
58
59
60
61
62
63
64
65
66
67
68
69
70
प्रकाशन नाम
पर्युषण प्रवचन
पर्युषण पर्व प्राचीन स्तवनावली
पर्युषण पर्वतो प्राण
क्षमापना
पर्युषणअडाईव्याख्यान हिंद्यनुवाद पर्युषण महापर्वना गुजराती व्याख्यानी
पर्युषण माहात्म्य
पर्युषण और दसलक्षण धर्म
पर्युषण पर्वल्पप्रभा
पर्याधिराज पर्युषण
पर्युपणादशशतक
पर्युपण जिनशासननो ज्योतिकश पर्युपणातिथिविनिश्चय सानुवाद ग्रंथ
पर्युषण पर्वनी प्रभावकता
पर्वाधिराजे क के
पर्युषण पर्व व्याख्यान माला
पर्युषण प्रनादी
पर्युपणपर्वादिना राज्यायादिसंग्रह
पर्युपणपर्व स्तवनादि संग्रह
पर्वाधिराज पर्युपणादिपर्व काव्य मंदोह
पर्युपण पर्युपणादिपरामर्श
पर्युषण महापर्वनां व्याख्यामी
विद्वान चंद्रप्रभसागर*
चिदानंद
जिनचंद्रविजय
जीतमुनि
ज्ञानविमल
ज्ञानविमलसूरि*
तेजकरण इंडिया
दर्शनमूरि
धनवंत ओझा
धर्मसागरगणि
म.
प्रभा मरचन्ट प्रमोदसागर
प्रमोदसायर
प्रमोदसागर
प्रेमप्रभसागरजी
बुद्धिसागर
भईकरमूरि
www.kobatirth.org
पपणा अट्ठाईना गुजराती भदंकरसूरि त्रण व्याख्यानो
भाषा हिं.
मा.सु. पी. 2406
धीरेंद्र रेलिया
नरेंद्रसागरसूरिजी गु.
पूर्णचंद्रविजयजी म. गु.
पूर्णानंदविजय
प्यारचंदजी
गु.
ई. 1985
हिं.
वि. 1978
मा.गु. वि. 2053
मा.गु. वि. 1954
हिं.
ई. 1988
वि. 1999
सं.
गु.
प्रा.
गु.
गु.
हिं.
वर्ष
ई. 2002
गु.
मा.गु.
ग.
सं.
गु.
म.
€. 1961
वि. 1992
वि. 2058
fa. 2060
बि. 2034
त्रि.
1994
मा.गु. वि. 2041
मा.गु. वि. 2038
ई. 1994
ई. 1981
वि. 1999
वि. 2058
वि. 2045
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रकाशक
जितयशा श्री फाउन्डेशन,
कलकत्ता
रतिलाल बादरचंद शाह, अमदावाद
प्रेरणा प्रकाशन ट्रस्ट, तीथल
अमथालाल सवाईचंद आदि
मुक्तिचंद्र श्रमण आराधना ट्रस्ट, पालिताणा
जैन विद्याशाला, अहमदाबाद
सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल, जयपुर
जैन ग्रंथ प्रकाशक सभा,
अहमदाबाद
रवाणी प्रकाशन गृह,
अहमदाबाद
ऋषभदेवजी केशरीमल जैन श्वेतांबर संघ, रतलाम
अज्ञात, LONDON
शासन कंटकोद्धारकसूरि जैन ज्ञानमंदिर, ठळीया उमेद बी. महेता, मुंबई
अज्ञात अज्ञात
चुन्नीलालजी जवाहरलालजी गुना
विमल प्रकाशन, अहमदाबाद मूळजीभाई झवेरचंद संघवी, पालिताना
पृष्ठ सं. 4+103+
5
8+216
44
48
217
4+44
18+389
|
34
47
37
16
6+334
78
16 21+19+
21
72
4+127
जैन पाठशाला, चाणस्मा पर्वाधिराज काव्य प्रकाशन समिती, अहमदाबाद
लाठीया चेरीटेबल ट्रस्ट, मुंबई 8+34
1
10+160
48+368
जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार, बंबई 15
अनेकांत प्रकाशन जैन रिलीजियस ट्रस्ट, अहमदाबाद सतीशभाई बाबुलाल शाह, अहमदाबाद
4+415
२१
1+416+
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२
अनु.
भाषा गु.
वि.सं. २०६८-द्वि.भाद्रपद वर्ष
प्रकाशक ____ पृष्ठ सं. वि. 2054 | दिव्य दर्शन ट्रस्ट, अहमदाबाद | 6+146
72
वि. 2059
दिव्य दर्शन ट्रस्ट, अहमदाबाद | 128
प्रकाशन नाम
विद्वान 71 - पर्युषणा महापर्वना भुवनभानुसूरि
व्याख्यान पर्युपणानुं आलंबन दूर करे - भुवनभानुसूरि
भवना बंधन 73 पर्युषणाष्टान्हिकाव्याख्यान | मणिविजय
पर्युपणाप्टाह्निकाव्याख्यान- मणिविजय भापांतर पर्युपणाष्टान्हिकाव्याख्यान । मणिविजय
1+33
जैन संघ, बोरु वि. 1970 | अज्ञात अज्ञात
74
68
75
76 | पर्युपणाष्टाह्निकाव्याख्यान | मणिविजय
31
मु.
77 वृहत्पर्युपणा निर्णय मणिसागरजी म. 78 | लघुपर्युपणानिर्णय मणिसागरजी म. 79 पर्युपण अठ्ठाइ व्याख्यान मफतलाल
झवेरचंद पंडित 80 पर्युषण पराग
महावलविजय 81 पर्युषणा अष्टाह्निका मानतुंगमूरि
प्रवचनो 82 पर्युपणापर्वना अट्ठाई मानतुंगसूरि
व्याख्यानो- विवेचन 83 पर्युषणाष्ट्राह्निकाव्याख्यान | मानसागर
वि. 1971 जैन आत्मवीर सभा,
भावनगर नर्मदाबेन रतनशी शाह. 68
भावनगर | वि. 1978 जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार, सूरत 16+112 वि. 1974 हीरालालजी जैनी, बंबई वि. 2010 नागरदास प्रागजीभाई महेता, 3+27
अमदावाद वि. 2038 दर्भावती प्रकाशन, डभोई 6+50
पार्धाभ्युदय प्रकाशन, 17+145
अहमदाबाद वि. 2021 भवानीपुर जैन श्वेतांबर 132
सोसायटी ट्रस्ट, कलकत्ता | वि. 1993 वलजी लालजी वोरा, 49
जामनगर वि. 2056 अक्षय प्रकाशन, मुंबई
4+140
गु.
| गु.
मुक्तिरत्नसागर
84 पर्युषणा अष्टाह्निका
व्याख्यान 85 | पर्युपणा कल्पमाहात्म्य
मुक्तिविमल
सं.
वि. 1975
86 पर्वाधिराजनो मंदेश 87 पर्युषण चिंतनिका
रत्नसुंदरसूरि राजयशविजयजी | गु.
ई. 1986 वि. 2039
88 पर्युषणानी पावन प्रेरणा
राजरत्न विजय
गु.
वि. 2047
केशवलाल प्रेमचंद वकील,
78 अहमदाबाद रत्नत्रयी ट्रस्ट, अमदावाद 2+30 लब्धि विक्रमसूरि स्मारक 35 संस्कृति केन्द्र, अहमदाबाद जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ, 72 बडौदा आदर्श साहित्य संघ, चूरू 16+460 थराद जैन युवक मंडळ, थराद | 4+72 अज्ञात अज्ञात
145+19
89 पर्युपण माधना 90 पर्युपणपर्व महिमादर्श
पर्युपणा पर्वादि अट्ठाइ व्याख्यान
राजीमती आ. भूपेन्द्रमूरि रामचंद्रसूरि
ई.1999 वि. 1994
01
पर्युपणाप्टान्हिका व्याख्यानो रामचंद्रसूरि
गु.
वि. 2055
4+174
रामचंद्रमूरि
गु.
वि. 2058
| पदार्थ दर्शन ट्रस्ट, अहमदाबाद अनेकांत प्रकाशन जैन रिलीजियस ट्रस्ट, अहमदाबाद जैन प्रवचन कार्यालय, अहमदाबाद
93 | पर्युपणमहापर्वनां पांच
प्रवचनो 94 पर्युपण संदेश लेखमाळा
2+225
रामचंद्रसूरि
गु.
वि. 2008
4+167
For Private and Personal Use Only
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
वि.सं. २०६८- द्वि. भाद्रपद
अनु.
95
96
97
88888
98
प्रकाशन नाम
पर्युषणपर्वमहावीरभजन
माला
पर्युषण पर्वअष्टान्हिका
_व्याख्यानम्
पर्वाधिराज पर्युषणापर्वनुं
व्याख्यान
पर्युषणा विचार
99 पर्युषण पर्व माहात्म्य
100 पर्युपणपर्वमाहात्म्य तथा चैत्यवंदनादिसंग्रह 101 पर्युषण पर्व माहात्म्य
102 पर्युषण पर्व निर्णय
103 | पर्युषण पर्वनां व्याख्यानो
104 मिश्रामि दुक
105 मिष्ठामि क
विद्वान रूपविजय
लक्ष्मीसूरि
म.
विद्याविजय
विनीतविजय
www.kobatirth.org
विबुधविमल
वीरविजय
शांतिविजय
सुखलालजी संघवी
आ. भद्रगुप्तसूरि
भद्रवाहविजय
भाषा
हिं.
fa. 2005
वाचस्पतिविजयजी गु.
वि. 2030
हिं.
वी. 2435
मा.गु.
वि. 1982
मा.गु. वि. 2039
मा. गु. वि. 2017
हिं.
fa. 1974
सं.
वर्ष
fa. 2000
ग.
नु.
हि.
1985
પોતાની જાતને સંતુલિત રાખો....
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रकाशक खेमचंद्र ज्ञानचंद्र बाबु,
लखनऊ
वर्धमान सत्य नीति- हर्ष सूरि जैन ग्रंथमाला
मुक्ति कमल जैन मोहनमाला, वडोदरा
उदयराज कोचर, फलोधी
उमेदचंद रायचंद मास्तर, अहमदाबाद
नयन प्रिन्टींग प्रेस,
अहमदाबाद
जैन सुशील मंडल, हिंगणघाट
जगद् हितेच्छु छापाखाना, पुणे
जैन साहित्य संशोधक समिति, अहमदाबाद
For Private and Personal Use Only
—
पृष्ठ सं.
સંબંધોને,.. આપસી રિશ્તાને માધુર્ય અને મૃદુતાથી શણગારવા હોય તો સાવધાન રહેવું પડશે! કોઈ તમારાથી ડરી ડરીને ના જીવૈઃ તમારો ભય કોઇને તમારાથી દૂર રહેવા વિવશ ના કરે!
56
fa. 1987
वि.सं. 2036 विश्वकल्याण प्रकाशन ट्रस्ट, महेसाणा विश्वकल्याण प्रकाशन ट्रस्ट, महेसाणा
(संकलन : बी. विजय जैन : सहयोग दिलावरसिंह विहोल)
28
36
10
160
307
6+18+8
24
13+170
36
ભદ્રબાહુવિજય
સંબંધોમાં જ્યાં સુધી નિર્ભયતા છે ત્યાં સુધી જ સંબંધોનું સૌન્દર્ય અકબંધ છે. સંબંધોને જો ડર કે ભયની ઉધઈ લાગી ગઈ તો સમજી લેવાનું કે બહારથી સાજા સરવા, સાલા... રૂપાળા દેખાતા સંબંધો ભીતરથી તકલાદી બની रह्या छे!
48
२३
ક્યારે સંબંધોને વધારે પડતા તાણવાથી... સંબંધોના સતરંગી ફૂલો ઉપર કડવાશનો કાળો રંગ છાંટવાથી... ડરનો દૈત્ય જન્મે છે. ભયની ભૂતાવળ પેદા થાય છે.
સંબંધોને ડરની નજર ના લાગે. એ માટે પ્રેમ સ્નેહ અને લાગણીનો દોરો બાંધી રાખો, સ્નેહની ગાંઠને વધુને વધુ મજબૂત બનાવી રાખો.
સંબંધોમાં ક્યારેય એકસરખી સ્થિરતા તો રહેતી નથી. સંભવ છે.. આપણી પોતાની વ્યક્તિ ક્યારેક આપણી સાથે સહમત ના પણ થાય! એ વખતે જોર-જુલમ કરીને આપણી વાત મનાવવા માટે મથ્યા કરવું કે આપણી માન્યતા એના ઉપર લાદવા માટે મચી પડવું એ વ્યર્થ છે. એના કરતા આપણે આપણા સંબંધોના ઊંડાણને સમૃદ્ધ બનાવવું જોઈએ, એકબીજા દરમ્યાનના અપનત્વને સમજદારીનું વૃંદાવન સાંપડી જશે અલગ અલગ માન્યતા અને ભિન્નભન્ન ભાવો વચ્ચે પણ ઐક્યનું કદંબવન રચી શકાય છે.... જો આપસના સદ્ભાવને સહજ બનાવી રાખ્યું તી! નહીતર સંબંધોનું સુંદર કદંબવન જખ્મોનું કંટકવન બની જશે
ક્ષમાપનામાંથી સાભાર
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२४
सितम्बर २०१२
| ઘર્મની રક્ષા કાજે |
- સ્વ. રતિલાલ મફાભાઈ શાહ
(ગતાંકથી આગળ) સૂરિજી એકાંતમાંથી બહાર આવ્યા. હજી તો રાત્રિનો ત્રીજો પહોર ઊતરી રહ્યો હતો, છતાં એમણે તરત જ સંઘનાયકોને બોલાવ્યા, મુનિઓને પણ એકત્ર કર્યા અને પોતે પ્રભાત થતાં જ વિજયનગર ભણી કૂચ કરી જશે એની સૌને જાણ કરી. ફક્ત અઢી મહિના જેટલો ટૂંકો સમય, છસો સાતસો ગાઉ જેટલો લાંબો પ્રવાસ અને અજાણ્યો, વિકટ અને અનેક મુશ્કેલીઓથી ભરેલો માર્ગ : સંધ તો સૂરિજીની આ વાત સાંભળી અવાક જ બની ગયો. મુનિઓ પણ વિચારમાં પડ્યા. પણ કોઈ પ્રત્યુત્તર વાળે તે પહેલાં તો ગુરુએ એકલા વિહાર કરી જવાનો પોતાનો દૃઢ સંકલ્પ જાહેર કરી શિષ્યોને પોતાના વિહાર માટેની તૈયારી કરવાની આજ્ઞા ફરમાવી દીધી.
શાસનની રક્ષા કાજે આવો ભગીરથ પ્રવાસ ખેડવાની સૂરિજીની તૈયારી જોઈ સંઘ તથા મુનિઓની આંખો લાગણીનાં આંસુથી ઊભરાઇ ગઈ. બધા ગદ્ગદ્ર બની ગયા. સૂરિજીના અનેક શિષ્યોએ ધર્મરક્ષાની આ વીરત્વભરી કચમાં પોતાને સાથે લેવા આગ્રહભરી વિનંતી કરી. પરિણામે એમના પ્રીતિપાત્ર એક યુવાન વયના શિષ્ય સહિત સત્તર વીર મુનિઓને વિહારમાં સાથે રહેવાની સંમતિ મળી ગઈ.
અને બાલસુર્યનાં તેજસ્વી કિરણોથી પુર્વાકાશમાં લાલિમા પથરાય એ પહેલાં તો અયોધ્યાના એ સંત-ભાનું ઉપાશ્રયમાંથી બહાર આવ્યા; સાથે પ્રભાવશાળી સત્તર મુનિઓ પણ સજ્જ થઈને બહાર નીકળ્યા. જૈન શાસનની જયના બુલંદ ઘોષ સાથે વિહાર શરૂ કરી દીધો.
વિધૂતવેગે ફરી વળેલા આ સમાચાર જ્યારે અયોધ્યાની પ્રજાએ જાણ્યા ત્યારે ભાવનાના પ્રેરાયેલાં નાનામોટાં, બાળક-વૃદ્ધ સૌ રાજમાર્ગની બન્ને બાજુએ ઊભરાવા લાગ્યાં. હજારો વર્ષ પૂર્વે દક્ષિણ પુનિત સ્મૃતિ જગાવનારા અને એજ પ્રમાણે દક્ષિણ ભારતમાં ધર્મવિજય માટે પ્રસ્થાન કરનારા ધર્મસિંહ આચાર્યમાં અયોધ્યાની જનતાને આજે એ ભૂતકાળનાં દર્શન થતાં હતાં. રામચંદ્રજીને પિતૃઆદેશથી અણચિંતવ્યા સવાર થતાં અયોધ્યા ત્યાગવું પડ્યું હતું, તેમ આ આચાર્યને પણ અંતરના આદેશથી અણચિંતવ્યા જ અયોધ્યા છોડવું પડે છે, એ વિચારથી અયોધ્યાની ભાવિક જનતાની ઊર્મિઓ અશ્રરૂપે વહેવા લાગી, આગળ આચાર્ય અને મુનિર્વાદ હતું. પાછળ અયોધ્યાની જનતા હતી.
ધર્મવિજયની ભાવનાથી નીકળેલા એ શ્રમણોનો સમૂહ જ્યારે નગરને દરવાજામાંથી બહાર આવ્યો, ત્યારે જનતાએ જયજયકારની બુલંદ ઘોષણાથી આકાશ ગજાવી મૂક્યું. આચાર્યશ્રીનો વિજય વાંછતી ઉષા જાણે ગગણાંગણમાં ત્યારે રંગોળી પૂરી રહી હતી. મંદ મંદ વાયુ એમની ચરણવંદના કરવા લહેરાઈ રહ્યો હતો. રંગબેરંગી પુષ્પો પણ જાણે હસતાં ન હોય તેમ ધીરે ધીરે ડોલતાં ડોલતાં વાતાવરણને મઘમઘાવી રહ્યાં હતાં. અરે, સકલ સૃષ્ટિ જ ત્યારે કોઈ અનેરો આનંદથી ખીલી રહી હતી. આવા ભવ્ય પ્રસંગોનું દર્શન કરવા જાણે સહસ્રરશ્મિ-ભાનું પણ ધીમે ધીમે ક્ષિતિજથી ઊંચે આવી રહ્યો હતો,
આવા પ્રેમ અને ઉલ્લાસભર્યા વાતાવરણમાં જનતાનાં પ્રેમથી ગળગળા બની, સંઘને માંગલિક સંભળાવી, ધર્મલાભના આશિષ આપી સૂરિજીએ સૌને પાછા ફરવા જણાવ્યું. રડતી આંખે સંઘ પાછો ફર્યો; પણ જ્યાં સુધી મુનિઓનું મંગલદર્શન થતું રહ્યું ત્યાં સુધી સૌની આંખો તો એમના પર જ મંડાયેલી હતી.
કેવું ભવ્ય એ હૃદયદ્રાવક હતું એ દૃશ્ય! સમયની અને માર્ગની જાણે હોડ જામી હતી. મર્યાદિત સમયમાં ધારેલ સ્થળે પહોંચવું જ હતું.
એટલે શ્રમણસંઘનો પ્રાવસ વણથંભ્યો ચાલુ જ રહેતો. સમય કપાતો જાય તેમ મજલ કાપવી પણ અનિવાર્ય હતી. વિહાર બહુ આકરો છે, પણ વાત્સલ્યભર્યા સૂરિજી એને અનેક જાતની શાસ્ત્રવાતો કહીને સરળ બનાવી દે
For Private and Personal Use Only
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
વિ.સં.૨૦૬૮-ફિ. મકર છે. એ પોતાની જાતની કશી ખેવના રાખતા નથી, પણ મુનિસંઘની સતત ચિંતા સેવ્યા કરે છે.
એકવાર એક મુનિએ સૂરિજીને પૂછયું : “પ્રભો! અહીંના વૈષ્ણવો તો જૈનો કરતાંય વિશેષ ભાવનાશીલ દેખાયાં. ને વળી કેટલા બધા પ્રેમાળ જણાયા! ધર્મદ્વેષનો તો એમનામાં છાંટો પણ દેખાતો નથી. ત્યારે વિજયનગરના વૈષ્ણવો જૈનોના વિરોધી કેમ બન્યા હશે?' ' સૂરિજીએ કહ્યું: “વત્સ! એ બધો દોષ પંથધેલા ધર્મગુરુઓનો જ છે. પ્રજા તો ભોળી, નિષ્પાપ અને સાફ દિલની છે. જેવું એનામાં અમૃત કે ઝેર ભરવામાં આવે છે, એવી એ બને છે. એથી જે કાંઇ દોષ એનામાં દેખાય છે એનો નથી, પણ એવા ધર્મગુરુઓનો જ છે.'
જેમ જેમ ધર્મરક્ષાને માટે બહાર પડેલા એ શ્રમણસંઘનો પ્રાવસ આગળ વધતો હતો, તેમ તેમ એ ધર્મવીરની વાત વિધુતવેગે ચારે બાજુ પ્રસરવા લાગી હતી. એથી રસ્તામાં આવતા ગામેગામના સંઘો એના દર્શન માટે ગામને દ્વારે રાહ જોતા બેસી રહેતા અને આહારપાણીની વ્યવસ્થા કરી એ મુનિઓની સેવાથી ધન્યતા અનુભવતા.
શરૂમાં તો એ પ્રવાસ ઝડપી અને સરલ હતો. સરલ સપાટ ભૂમિ પરથી એમને વિહરવાનું હતું. પણ જેમ જેમ એ આગળ વધતા ગયા તેમ તેમ, એમની આકરી કસોટી કરવા ન હોય તેમ વિપત્તિઓનાં વાદળ ઘેરાવાં લાગ્યાં. પણ જેમનો સંકલ્પ દઢ હતો એમને કોણ રોકી શકે તેમ હતું? ઊલટું, જેમ જેમ આપત્તિઓ આવી તેમ તેમ એમનામાં ઉત્સાહનું પૂર ચડતું. પગમાં જાણે આખી દુનિયાને ખૂંદી વળવાનું બળ ઊભરાતું. આંખમાં કોઈ નવી ચમક પેદા થતી અને પ્રમુખ પર કોઈ દૈવી આભા ઝળકી ઊઠતી. એમના હોઠ ઉપર અને એમની ચાલમાં દઢતાંના દર્શન થતાં હતાં.
એ મુનિઓના ધર્મ તેજથી સકલ સૃષ્ટિના પરમાણુઓમાં પણ જાણે પ્રસન્નતા પ્રસરતી જતી હતી. છતાં બીજી બાજુ એમના ધર્મશીયન કસોટીએ ચડાવવા કદરત પણ જાણે તૈયાર થઈ રહી હતી.
ઝડપી પ્રવાસમાં ગંગા-યમુના જેવી નદીઓ એ પસાર કરી ગયા હતા. પણ ગંગાએ એક આકરો ભોગ લીધો હતો. જ્યારે જીવન અને મૃત્યુ વચ્ચે એક જ હાથનું છેટું હતું, એવી આકરી કસોટીમાંથી બાકીના પસાર થયા હતા. વાત આમ બની હતી.
મુનિઓ જ્યારે હોડી દ્વારા ગંગા ઓળંગી રહ્યા હતા, ત્યારે હિમાલય પર વૈશાખ માસની ગરમીને લીધે ઓગળેલા બરફથી ગંગામાં નવાંનીર ઊભરાવા લાગ્યાં ને તેથી હોડી ઓચિંતી હાલકડોલક થવા લાગી. એટલામાં એકવાર હોડીએ સમતુલા ગુમાવી ને બધા જ મુનિઓને પાણીમાં પછાડી એ પણ તળિયે જઈ બેઠી. ગંગા પાર કરવાને ફક્ત બસો વારનો પટ જ બાકી હતો. મળેલા સમાચારો મુજબ મુનિસઘનું સ્વાગત કરવા કાંઠાના ગામનો સંઘ પણ કિનારે એકત્ર થયો હતો. એણે મુનિઓ જેમાં બેઠા હતા એ હોડીને ઊંધી વળતી નિહાળી અને તરત જ એણે મદદ માટે બે-ત્રણ હોડીઓની વ્યવસ્થા કરી; તરત જ એ હોડીઓને પાણીમાં વહેતી કરવામાં આવી. હવે એક ક્ષણનો પણ વિલંબ જીવનને મૃત્યુમાં, આનંદને શોકમાં, આશાને નિરાશામાં ફેરવી નાખે એમ હતો. આથી જે જે તારાઓ ત્યાં હતા એમને પણ તરત જ મોં માગ્યા દામ આપીને નદીમાં ઉતારવામાં આવ્યા. બને તેટલી માટીની ખાલી ગોળીઓ પણ વહેતી મૂકવામાં આવી.
પણ એ બધા સાધનો ઘણાં દૂર હતાં. અધૂરામાં પૂરું સુરિજીને તરતાં આવડતું નહોતું. પણ એમના બે ક્ષત્રિય શિષ્યો યુવાવસ્થામાં ઘોડેસવારી, પટાબાજી, નદીઓ તરી જવી વગેરે વિદ્યાઓમાં પ્રવીણ હતા; એટલે એમણે તરત જ ગુરુને ઉપાડી લીધા અને એક એક હાથે તરતવા લાગ્યા. સાધુજીવનને કારણે ઘણાં વર્ષથી તરવાનો મહાવરો છૂટી ગયો હતો અને ગુરુને લઈને એક હાથે તરવાનું હતું, એટલે એ બે મુનિઓ પણ હવે ધીમે ધીમે શક્તિ ગુમાવી રહ્યા હતા.
ત્રણેના જીવનમરણ વચ્ચે હવે પાંચ-દસ પળનું જ અતર જણાતું હતું, ત્યાં તો કિનારેથી છૂટેલી પહેલી હોડી સમયસર પહોંચી ગઈ અને ત્રણેને હોડી પર ખેંચી લેવામાં આવ્યા.
For Private and Personal Use Only
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२६
सितम्बर २०१२
અન્ય મુનિઓમાં બે-ત્રણ જણ સિવાય બીજા થોડું ઘણું તરવાનું જાકાતા હતા, તેથી એ બધા સાથે તરતા રહી ન જાણનારને વારાફરતી. ટેકો આપતા હતા. અચાનક એક સૂકું થડ તણાતું આવ્યું. એથી લાગ જોઈને બે મુનિઓને એના ઉપર ચડાવી દેવામાં આવ્યા; વધારાનો ભાર એ ઝીલી શકે તેમ નહોતું. અને બાકીના એક્બીજાની ઓથે તર્યું જતા હતા. પણ હવે એય થાયા હોઈ તરતાં તરતાં ખેંચાયૅ જતા હતા. ત્યાં તો બીજી હોડીઓ તથા તારાઓ આવી પહોંચ્યાં અને એ બધાને બચાવી લેવામાં આવ્યા.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ફક્ત એક મુનિ સતી આગળ તણાથે જતા હતા, એમને બચાવવાના ઘણા પ્રયત્નો થયા પણ એ મધ્ય વહેણ તરફ એવા ખેંચાઈ રહ્યા હતા કે એમને બચાવી લેવાના પ્રયત્નો નિષ્ફળ ગયા છેલ્લાં ગળાં ખાતાં એમણે સાદ પાડીને પાછળ હોડીવાળાઓને જણાવ્યું કે ‘ગુરુદેવને કહેજો કે કૂચ જારી રાખે. એ ભવ્ય ધર્મસૂચના પ્રથમ બલિ થવા માટે હું મારી જાતને સૌભાગ્યશાળી માનં છું. અને તમારી આ ધર્મરક્ષાની યાત્રાનો વિજય વાંચ્છું છું.’
અચાનક આવેલી આ પ્રલયકારી આફતમાંથી ઊગરી જવા માટે એકત્ર થયેલા સંઘ સમેત સહુને આનંદ થયો, પણ એમાં એક મુનિના કાળધર્મે સર્જેલી વિષાદની રેખા જણાયા વિના રહી નહિ. એ મુનિવરના મૃત્યુસમયના શબ્દો સાંભળી સૂરિજીની આંખો ભીની બની; અન્ય મુનિઓ પણ આંસુ રોકી શક્યા નહિ.
પછી એ તેજ પૂંજ મૂર્તિઓએ વીરતાપૂર્વક વિધ્ધને ભેદવો શરૂ કર્યો. એમને કોઈ વાર ઊંડી ખીણોમાંથી માર્ગ કરવો પડતો. કોઈ વાર નાની-મોટી શિલાઓ માર્ગ રોકી લેતી ત્યારે વળી પાછા ફરી બીજી કેડી પકડવી પડતી, તો કોઈ વાર એ શિલાઓ પણ ટેકી જવી પડતી.
માર્ગમાં નાનાં મોટાં જંગલો પણ પાર વિનાનાં આવતાં. ક્યારેક આહાર-પાણી વિના પણ ચાલાવી લેવું પડતું, તેમજ કોઈ વાર રાત્રિ પડી જવાથી સામેના પહાડી ગામે ન પહોંચતા કોઈક ગુફામાં જ આશ્રય લેવો પડતો. એકવાર એક સંન્યાસીએ પ્રેમપૂર્વક આમંત્રણ આપી એક ગુફામાં રાતભર આશ્રય આપેલો અને ખૂબ સેવા ઉઠાવેલી.
બીજે દીવસે એ ગુફામાંથી કૂચ શરૂ કરી સૌ એકાદ કોસ પહોંચ્યા હશે, ત્યાં તો મૂશળધાર વરસાદ શરૂ થયો. સમગ્ર સૃષ્ટિ ધુમ્મસથી છવાઇ ગઈ હતી. રસ્તો સૂઝતો નહોતો. ત્યાં, અધૂરામાં પૂરું, કરાનો વરસાદ શરૂ થયો. મુનિઓ ઠંડીથી કંપી રહ્યા હતા. પણ તેમાંય દૃઢ મનોબળવાળા છતાં શરીરે કંઈક સુકોમળ એવા એક મુનિને હાડોહાડ શરદી લાગી ગઈ. એકદમ જોરથી એમના શરીરમાં જ્વર ભરાવા લાગ્યો. જ્વરનું જોર એટલું વધ્યું કે ચાલતાં ચાલતાં એ ગબડી પડ્યા, ધ્રુજારી પરાકાષ્ટાએ પહોંચી હતી. ગરમીનું કોઈ સાધન નહોતું અને ઉપરથી બરફ-કરાનો વરસાદ તો સતત ચાલુ જ હતો.
પવને પણ પ્રચંડ પ્રલયનું રૂપ ધારણ કર્યું હતું. સાથી મુનિઓ એની પાસે દોડી આવે એ પહેલાં જ એમને ગુરુને બધા સાથે આ ભયંકર તોફાનમાંથી બચાવા ભાગી છૂટવાની અને સંન્યાસી મિત્રની ગુફામાં આશ્રય લેવાની વિનંતી કરતા કહ્યું: ‘ગુરુદેવ! જરા આકાશ ભણી તો જુઓ. તોફાન શમવાનાં કોઈ ચિહ્ન કળાતાં નથી. ઉપરથી કુદરતનું તાંડવનૃત્ય વધવાનાં ધારા દેખાય છે; તો કૃપા કરી મારે ખાતર કોઈનું જીવન હોડમાં ન મૂકો. હું તો હવે મૃત્યુના મુખમાં જઈ રહ્યો છું, એથી મને બચાવવાનો પ્રયત્ન કરવાનો હવે કોઈ અર્થ નથી. તો જે ધર્મ-સંકલ્પની સિદ્ધિ અર્થે આપણે જીવન હોડમાં મૂક્યું છે, એ સિદ્ધિની પ્રાપ્તિ અર્થે પ્રથમ આપ સહુના દેહની રક્ષા કરો!'
મુનિએ તો પોતાની કાયાની માયા વિસારીને આવી ઉદાર સલાહ આપી; પણ સાથેના મુનિઓને ગળે એ કેમ ઊતરે? એટલે બે યુવાન સાધુઓ એ બીમાર મુનિને ઉપાડીને ચાલવા લાગ્યા, પણ એ મુનિનું હાડ ગળી રહ્યું હતું, નાડી તૂટી રહી હતી, શ્વાસોશ્વાસ પણ બંધ થવાની તૈયારીમાં હતો, જીવનની હવે કોઈ આશા જ નહોતી રહી, અને ઉપરથી કુદરતનું ભયંકર તાંડવનૃત્ય વધી રહ્યું હતું. એથી રડતી આંખે એ મુનિની ચિંતા તજીને જલદી ગુફામાં આશ્રય લેવાનો આદેશ આપ્યા સિવાય ગુરુનો છૂટકો નહોતો. નહિ તો બીજાઓનું જીવન પણ હોડમાં મૂકાવાનો ભય હતો. સૂરિજીને આ શિષ્ય પ્રત્યે અપાર સ્નેહ રક્ષા હોવા છતાં દિલને ોર કરવા સિવાય બીજો ઉપાય નહોત
(વધુ આવતા અંક)
For Private and Personal Use Only
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
વિ.સં.૨૦૬૮-હિ. માદ્રપદ્ર
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२७
સમાધિ-શતક (ભાગ ૧થી ૪)
અનુપ્રેક્ષાકાર- આચાર્ય યશોવિજયસૂરિ
(પ્રકાશક-આચાર્ય શ્રી કારસૂરિ આરાધના ભવન, પ્રકાશન વર્ષ વિ. સં. ૨૦૬૮)
આચાર્ય દેવનંદીએ (સત્તા સમય અંદાજિત ૫મી સદી) સંસ્કૃત ભાષામાં ૧૦૭ શ્લોક પ્રમાણ સમાધિતંત્રની રચના કરી, અને એના આધારે પૂજ્ય મહોપાધ્યાયજી ભગવંતે એ સમાધિતંત્રના આધારે સમાધિ-શતકની રચના કરી. દોધક શતકે ઉદ્ધર્યું, તંત્ર સમાધિ વિચાર
ધરો એહ બુધ કંઠમેં ભાવ રતન કો હાર (૧૦૨)
પૂજ્ય આનંદઘનજી મહારાજના મિલન પછી આ કૃતિ કાગળ પર ઉતરી હોય એવી સંભાવના છે. પૂજ્ય મહોપાધ્યાયજી મહારાજની આ રચના સાધકને આત્માનુભૂતિ સુધી લઇ જાય છે. સમાધિ-પ્રાપ્તિના ઉપાયો અને ભીતરના માર્ગે ચાલવાનું સરળ અને સુગમ કરી દેતા કેટલાય આયામો આ કૃતિનું વજ્રનાર પાસું છે. સરળ શબ્દો, અર્થ ગાંભીર્ય, અને ભાવ સભરતા એ મહોપાધ્યાયજી ભગવંતની વિશેષતા છે. પ્રારંભમાં જ પૂજ્ય મહોપાધ્યાયજી ભગવંત સ્વયં પોતે કહે છે. ‘વલ આતમબોધ કો, કરશું સરસ પ્રબંધ' માત્ર આતમ બોધ માટે આત્માનુભૂતિ માટે જ આ રચના છે. નિશ્ચય અને વ્યવહાર ઉભયના પાલનની વાત માટે પૂજ્ય મહોપાધ્યાયજી ભગવંત બહુ સ્પષ્ટ જણાવે છે :
'દોનુંકું જ્ઞાની ભજે એકતિ તે અંધ’
For Private and Personal Use Only
હીરેન દોશી
જ્ઞાની પુરૂષ જ્ઞાન અને ક્રિયાને બેઉને સેવે છે. જ્ઞાન અને ક્રિયામાંથી એકને સેવે અને એકને ન સેવે તે અજ્ઞાની છે. સાધક પુરૂષની ભાવદશાને જણાવતાં પૂજ્ય મહોપાધ્યાયજી ભગવંત કહે છે :
રનમેં લ૨તે સુભટ જ્યું, ગિને ન બાનપ્રહાર
પ્રભુરંજન કે હેતુ સ્યું, જ્ઞાની અસુખ પ્રચાર (૯૧)
યુદ્ધમાં લડતો સુભટ જેમ બાણોના પ્રહા૨ને ગણતો નથી. તેમ પ્રભુને પ્રસન્ન કરવા માટે જ્ઞાની સાધક દુ:ખોને ગણતો નથી. આ વાતને જણાવતાં પૂજ્ય સાહેબજી કહે છે. પ્રભુની પ્રીતિના રંગથી જ જ્યારે બધું રંગાયેલું છે. ત્યારે દુઃખ દુઃખરૂપે રહ્યું જ ક્યાં? અહીં તો છે. આનંદ જ આનંદ.....
સાધકની મનોદશા બદલી નાખતાં કેટકેટલાય વિવિધ આયામો આ પુસ્તકના પાને પાને આપેલા છે.
આત્માનુભૂતિમાંથી નિપજેલી રચનાઓ પારસમણિ જેવી હોય છે. જે પોતે તો મૂલ્યવાન હોય છે. પણ જેને સ્પર્શે તેને પણ મૂલ્યવાન કરી આપે છે. આ સમાધિશતકની રચના અનુભૂતિના આધારે થઇ છે. તો એના સ્વાધ્યાય અને અનુપ્રેક્ષાને પણ અનુભૂતિની કુખ મળી છે. આ આખો ગ્રંથ આત્માનુભૂતિના ઉપાયરૂપે લખાયો છે. આત્માનુભૂતિના માર્ગને આ વિભાવના દીપ્તિમંત કરે છે. સમાધિ શતકની કડીઓ ઉપર અત્યાર સુધી આવું રસાળ અને મધુર કોઇ અનુપ્રેક્ષણ પ્રાપ્ત ન હતું. પૂજ્ય સાહેબજીએ પુણ્યકાર્ય કરી સકલશ્રી સંઘને ઉપકૃત કર્યો છે. સાધના અને ભક્તિમાર્ગનો સમન્વય આ સ્વાધ્યાયમાં છે. સમાધિશતકની અનુપ્રેક્ષા સભર વિવેચનાએ સ્વાધ્યાય-રસિકોને આનંદિત કર્યા છે. આ કોઇ અનુવાદ કે પંક્તિઓનું વિવેચન નથી. આ તો અનુભૂતિ અને અનુપ્રેક્ષામાંથી નીતરી આવેલું અમૃત છે. પૂજ્ય સાહેબજી વર્ષોથી આ સાધના અને ભકિતની ધારામાં રહ્યા છે. પૂજ્ય મહોપાધ્યાયજી ભગવંતે પ્રારંભમાં કહ્યું છે તેમ ‘કેવલ આતમબોધ કો કશું સરસ પ્રબંધ' ની જેમ આત્માનુભૂતિ માટે આ સ્વાધ્યાય આપણને આત્માનુભૂતિ સંપન્ન વ્યક્તિ પાસેથી સંપ્રાપ્ત થયો છે. દરેક કડીની પૃષ્ઠભૂમાં એક લય બાંધતા સાહેબજી દરેક ગાથાના પ્રત્યેક ચરણને અનુભૂતિ અને અનુપ્રેક્ષાના સ્તરે ખોલે છે. જેથી સાધનાના સૂત્રોને સાધક સારી રીતે ઝીલી શકે, આપણા માટે પૂજ્ય સાહેબજી બે લાઇન વચ્ચેની વાત કરે છે. આખો ગ્રંથ આત્માનુભૂતિની પ્રાપ્તિના પ્રયાસ રૂપે આલેખાયેલ છે.
આ સમગ્ર ગ્રંથનો સ્વાધ્યાય આત્માને અપૂર્વ આનંદ તો આપે છે. સાથે સાથે ચિત્ત સમાધિના રાજમાર્ગ પર પહોંચાડીને આત્માનુભૂતિના અજવાસની કેડીએ દોરી જાય છે. વર્તમાન સમયમાં જ્યારે આત્મસાધનાનો માર્ગ દુરૂહ અને તિમિરાચ્છન્ન થતો જાય છે. ત્યારે આવી સુંદર વિવેચના ખુદને ખોજનારા આત્માનુભૂતિના પિપાસુ સાધકો માટે સંતૃપ્તિનું અમોઘ સાધન બની રહેશે.
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૮
सितम्बर २०१२
આચાર્યશ્રી કૈલાસસાગરસૂરિ જ્ઞાનમંદિર
જુલાઈ-ઓગસ્ટ-૨૦૧૨ નો સંક્ષિપ્ત કાર્ય અહેવાલ જ્ઞાનમંદિરના વિવિધ વિભાગોના કાર્યોમાંથી જુલાઈ-ઓગસ્ટ માસમાં થયેલાં મુખ્ય-મુખ્ય કાર્યોની ઝલક નીચે પ્રમાણે છે ૦૧, કલાસ શ્રુતસાગર ગ્રંથ સૂચિ ભાગ ૧૩ તથા ૧૪ માટે હસ્તપ્રત વિભાગમાં કાર્યરત પંડિત મિત્રો દ્વારા ૪૨૭૭ કૃતિઓનું
લિંકીગ કાર્ય કરવામાં આવ્યું. ૧૩મા ભાગનું લિફીંગ કાર્ય પૂર્ણ થયું તથા ૧૪મા ભાગનું કાર્ય ચાલુ છે. ૦૨. હસ્તપ્રત વિભાગ હેઠળ ફોર્મ ભરવાં, કયૂટર ઉપર પ્રાથમિક માહિતી ભરવી, ગ્રંથ ઉપર નામ-નંબર લખવા, રેપર
તૈયાર કરવાં, તાડપત્રોની સફાઈ-પૉલિશ, ફ્યુમિગ્રેશન તથા સ્કેનીંગ કાર્ય માટે હસ્તપ્રત ઈશ્ય-રીસીવ પ્રક્રિયા આદિ
રાબેતા મુજબ કાર્યો થયાં. 0૩. લાયબ્રેરી વિભાગમાં જુદા જુદા ૩૯ દાતાઓ. તરફથી ૯૭૯ પુસ્તકો ભેટ સ્વરૂપે પ્રાપ્ત થયાં. ૦૪, લાયબ્રેરી વિભાગમાં ૧૬૭ પ્રકાશનોની સંપૂર્ણ માહિતી સુધારવામાં આવી તથા વિવિધ પ્રકાશનો સાથે ૪૦૦ પેટાંકની
સંપૂર્ણ માહિતીઓ ભરવામાં આવી તથા તેની સાથે યોગ્ય કૃતિ લિંક કરવામાં આવી. ૦પ, મેગેઝિન વિભાગમાં ૬૯૮ પેટાંકની સંપૂર્ણ માહિતી ભરવામાં આવી તથા તેની સાથે યોગ્ય કૃતિ લિંક કરવામાં આવી. ૦૬. ૨૦ વાચકોને હસ્તપ્રત તથા પ્રકાશનોના પ૭૬૨ પાનાની પ્રીન્ટ કૉપીઓ ઉપલબ્ધ કરાવવામાં આવી. આ સિવાય
વાચકોને કુલ ૧૧૨૫ પુસ્તકો ઈશ્ય થયાં તથા ૬૬૮ પુસ્તકો જમા લેવામાં આવ્યાં. વાચક સેવા અંતર્ગત નીચે પ્રમાણે માહિતીઓ પૂ. સાધુ-સાધ્વીજી ભગવંતોને આપવામાં આવી. ૧. ૫.પૂ. મુ. શ્રી ધર્મરત્ન મ.સા. ને પંચકલ્યાણક, પંચાશક તથા બારહ ભાવના સંબંધિત પ્રકાશિત તથા હસ્તપ્રતમાં
રહેલી કૃતિની માહિતી. ૨. ૫. પૂ. મુ. શ્રી મેહુલ પ્રભુ મ.સા. ને ઓસવાલ જાતી વિષયક માહિતી. ૩. મુનિરાજ શ્રી ભક્તિવલ્લભવિ. મ. સા. ને વિધિ-વિધાનના ગ્રંથો તથા અપ્રકાશિત કૃતિઓની માહિતી, પૂ. રાજપ્રેમવિ. મ. સા.ને આગમ તથા વ્યાકરણ સંબંધિત માહિતી, ડૉ. રતનબેન છાજેડને ઋષભદાસ રચિત
અપ્રકાશિત કૃતિની માહિતી તથા કલ્યાણભૂષણ વિ. મ. સા. ને પ્રશ્નોત્તર સંબંધી માહિતીઓ મોકલવામાં આવી. ૪. શ્રી બાબુલાલજી સામેલજીને વિવિધ મહાત્માઓ માટે આગમ સંબંધિત કૃતિઓ, કલ્પસૂત્ર, તત્ત્વાર્થચિંતામણિ આદિ
સંબંધિત હસ્તપ્રત તથા પ્રકાશિત કૃતિઓની માહિતી. ૦૭. લોઢા ધામ, મુંબઈ તથા શ્રી સંભવનાથ આરાધના કેન્દ્ર સંચાલિત વૈયાવચ્ચ અને વાત્સલ્યધામ, જ્ઞાનભંડાર, તારંગા
તળેટીને ભેટમાં આપવા માટે ૮૦૦ પુસ્તકો ચેક કરી તેમનું લીસ્ટ તૈયાર કરવામાં આવ્યું. ૦૮, સમ્રાટ સંગ્રહાલયની ૩૪૦૮ યાત્રાળુઓ દ્વારા મુલાકાત લેવામાં આવી. ૦૯. હસ્તપ્રત સ્કેનીંગ પ્રોજેક્ટ હેઠળ સચિત્ર હસ્તપ્રતોના ૧૯૧૨ પૃષ્ઠો તથા સામાન્ય હસ્તપ્રતોના ૧૩૩૮૧૮ પૃષ્ઠોનું સ્કેન
કરવામાં આવ્યું. આ સિવાય ૧૫૦ ગ્રંથોની પીડીએફ પ્રોગ્રામમાં લિંક કરવામાં આવી. ૧૦. શહેર શાખા ગ્રંથાલય (સીટી સેન્ટર લાઈબ્રેરી)માં સાધુ-સાધ્વી ભગવંતો તથા વિદ્વાનો, જિજ્ઞાસુઓને પુસ્તકોની આપ
લેનું કામ થાય છે તથા તેમને જરૂરી માહિતીઓ પણ પૂરી પાડવામાં આવે છે. ૧૧. શ્રુત સરિતા-બુક સ્ટૉલ દ્વારા જૈન ધાર્મિક સાહિત્ય, જીવન ઘડતર અંગેનું ઉત્તમ સાહિત્ય તેમ જ જૈન ઉપકરણોનું
નિયમિત વેચાણ કરવામાં આવે છે.
જ્ઞાનમંદિરની મુલાકાતે આવેલ સાધુ-સાધ્વીજી ભગવંતો, વિદ્વાનો, સ્કૉલરો દ્વારા આપેલા અભિપ્રાયોમાંથી એક વિશિષ્ઠ અભિપ્રાય નીચે પ્રકારો છે.
"A very wonderfully managed, impressive and sophisticated manuscript Library-The best in all in India! The staff is very friendly, helpful and efficient and welcoming to all interested in Jain literature and Sanskrit/Prakrit languages in general. Thanks you so much for guidance and assistance."
Dr. Adheesh a. Sathaye Department of Asian studies University of British Columbia,
Canada
For Private and Personal Use Only
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वि.सं.२०६८-द्वि. भाद्रपद
ज्योतिर्विद आचार्य श्री अरुणोदयसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब
का नौवाँ मासक्षमण संपूर्ण
परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब के शिष्य परम पूज्य ज्योतिर्विद आचार्य श्री अरुणोदयसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब का नौवाँ मासक्षमण का पारणा दिनांक १९/०८/१२ को सम्पूर्ण हुआ। इस मंगलमय अवसर पर कोबा श्रीसंघ की ओर से विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के साथ पारणा महोत्सव का आयोजन किया गया था।
प्रातः ७ बजे मन्दिरजी में प्रभुदर्शन व भक्ति कार्यक्रम के पश्चात् परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज आदि ठाणा की निश्रा में भव्य शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा में गजराज, अश्वराज, बैण्ड, पताके के साथ हजारों नर-नारी सम्मिलित थे। जिनशासन, पूज्य राष्ट्रसन्त एवं तपस्वी के जयकारों से वायुमण्डल गूंजायमान हो रहा था। सम्पूर्ण वातावरण धर्ममय बना हुआ था।
शोभायात्रा के पश्चात् धर्मसभा का आयोजन किया गया | परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज ने तप का महत्त्व बतलाते हुए कहा कि भगवान महावीरस्वामी ने स्वयं कठोर तपश्चर्या की थी। चौबीस तीर्थकरों में जितनी कठोर तपश्चर्या भगवान महावीरस्वामी ने की उतनी कठोर तपश्चर्या और किसी भी तीर्थकर को नहीं करनी पड़ी। क्योंकि जिसप्रकार के कर्मों का बन्धन भगवान महावीरस्वामी को था वैसे कर्मों के बन्धन अन्य तीर्थंकरों को नहीं थे। भगवान महावीरस्वामी ने स्वयं कठोर तप करके हमें यह उपदेश दिया है कि मोक्ष प्राप्ति में तपश्चर्या की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। तप का भेद बताते हुए पूज्य आचार्य भगवन्त ने कहा कि तप मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। बाह्य तप एवं अभ्यन्तर तप । उपवास आदि बाह्यतप के द्वारा कर्मों का छेदन किया जाता है तथा नये पुण्यकर्मो का बन्ध किया जाता है। तप करने से हमारी आत्मा निर्मल एवं शुद्ध होती है। मन में वैराग्य भाव उत्पन्न होता है। शुद्ध भावपूर्वक की गई तप की अग्नि अनेक जन्मों के संचित कर्मों को जला देती है| आहार के प्रति विरक्ति का भाव उत्पन्न करने के लिए उपवास का तप किया जाता है। पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि आत्मा जब दूसरे भव में गमन करती तब वह वहाँ जाकर सर्वप्रथम आहार ग्रहण करती है और उस आहार के द्वारा शरीर का निर्माण करती है। इसलिये ज्ञानियों ने कहा है कि हमें सबसे पहले आहार के प्रति विरक्ति का भाव उत्पन्न करना होगा और वह भाव उपवास करने से ही उत्पन्न होता है। हमें सदैव आहार के प्रति विरक्ति का भाव ही धारण करना चाहिए। यदि हम आहार के प्रति आसक्त बने रहेंगे तो यह जन्मजन्मान्तर से चला आ रहा जन्म-मरण का सिलसिला कभी रुक नहीं पाएगा। आप सभी उपवास तप की आराधना करें यही मंगल कामना
ज्योतिर्विद आचार्य श्री अरुणोदयसागरसूरीश्वरजी महाराज के साधुजीवन एवं तपाराधना की अनुमोदना करते हुए पूज्य राष्ट्रसन्त ने कहा कि ये बाल्यावस्था से ही धार्मिक प्रवृत्तियों से जुड़े रहे हैं। जब साधु जीवन ग्रहण नहीं किया था, तभी से उपवास आदि करते आ रहे हैं। इन्होंने ज्योतिष विद्या में अच्छा ज्ञान प्राप्त किया है। इन्होंने अनेक जिनालयों की भूमिपूजन व प्रतिमाओं के अंजनशलाकाविधि आदि की तिथियों का निर्धारण किया है, जो सर्वोत्तम माना गया है। ये जिनशासन की सेवा में सदैव जाग्रत रहते हैं। इनका शिष्य परिवार भी दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
इस मंगलमय अवसर पर अहमदाबाद के शेठ श्रीमान सोहनलालजी चौधरी परिवार की ओर से सुन्दर नौकारसी एवं प्रभावना की व्यवस्था की गई थी।
For Private and Personal Use Only
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सितम्बर २०१२ रविवारीय सुमधुर प्रवचन शृंखला में श्रोता मोक्ष मार्ग के
पथ पर अग्रसर
परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब ने चातुर्मास अवधि में आयोजित रविवारीय सुमधुर प्रवचन शृंखला में परमात्मा महावीर प्रभु की वाणी का विवेचन करते हुए निम्न विषयों पर हृदयस्पर्शी प्रवचन देकर उपस्थित श्रोताओं को मोक्षमार्ग के पथ पर अग्रसर कराया. संगीतकार संकेतभाई शाह ने गरुभक्तिमय सुमधुर गीत-संगीत के द्वारा संपूर्ण वातावरण को भक्तिमय बना दिया तो शिविर के लाभार्थियों द्वारा प्रवचन के पश्चात गुरुभक्त अतिथियों के लिये साधर्मिक भक्ति की सुंदर व्यवस्था की गई थी. कोबा ट्रस्ट के ट्रस्टियों द्वारा उपस्थित श्रोताओं का स्वागत एवं शिविर के लाभार्थियों का सम्मान किया गया. श्री मुकेशभाई एन. शाह ने प्रत्येक शिविर में विषय से संबंधित स्वरचित काव्य का पाठ करते हुए पूज्य आचार्य भगवन्त से आशीर्वचन रूप प्रवचन देने का निवेदन किया.
परम पूज्य आचार्यश्री ने प्रवचन श्रेणी की छठी शृंखला में दिनांक ५/८/१२ को 'कर्म शत्रु पर विजय पाने का उपाय' विषय पर अनन्त उपकारी, अनन्त ज्ञानी परमात्मा महावीर की वाणी का उल्लेख करते हुए कहा कि परमात्मा महावीर प्रभु ने अपने प्रवचन में शुद्ध भावना एवं साधना के द्वारा कर्म शत्रु पर विजय पाने का मार्ग बताया है. इस शिविर का लाभ शेठ श्री प्रेमलभाई एवं श्रीमती सुजाताबेन कापडिया परिवार, फर्म-सुजाता इन्टरप्राइजेज ने लिया.
प्रवचन श्रेणी की सातवीं शृंखला में दिनांक १२/८/१२ को 'अनादिकालीन जीवनयात्रा का इतिहास' विषय पर अनन्त उपकारी, अनन्त ज्ञानी परमात्मा महावीर की वाणी का उल्लेख करते हुए पूज्यश्री ने कहा कि परमात्मा महावीर प्रभु ने अनादिकालीन जीवनयात्रा को रोकने का मार्ग बताते हुए कहा है कि आप विषय कषायों का त्याग करें आपका अनादिकालीन जीवन यात्रा स्वतः रुक जाएगा. इस शिविर का लाभ शेठ श्री चीमनलाल पोपटलाल राणा परिवार, अहमदाबाद हस्ते श्री बाबुभाई, श्री हेमन्तभाई, श्री गौतमभाई, श्री विक्रमभाई, श्री उमेशभाई आदि संपूर्ण परिवार ने लिया.
प्रवचन श्रेणी की आठवीं शृंखला में दिनांक १९/८/१२ को 'धर्म क्रियाओं का अनूठा रहस्य' विषय पर अनन्त उपकारी, अनन्त ज्ञानी परमात्मा महावीर की वाणी का उल्लेख करते हुए पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि परमात्मा महावीर प्रभु ने अपने प्रवचन में धर्म क्रियाओं का अनूठा रहस्य बताकर मोक्ष प्राप्ति का सुंदर मार्ग बताया है. इस शिविर का लाभ श्रीमती सुमतीबेन हर्षवदनभाई शाह, स्व. हर्षवदनभाई नवीनचंद शाह परिवार, सुप्रीम ऑफशोर कन्स्ट्रक्शन्स एण्ड टेक्निकल सर्विसेस लि. शांताक्रूज, मुंबई/अहमदाबाद ने लिया.
प्रवचन श्रेणी की नौवीं शंखला में दिनांक २६/८/१२ को संसार की समस्याओं का आध्यात्मिक समाधान' विषय पर परमात्मा महावीर की वाणी का उल्लेख करते हुए पूज्य आचार्य भगवन्त ने कहा कि अनन्त उपकारी, अनन्त ज्ञानी परमात्मा महावीर प्रभु ने अपने प्रवचन में कहा है कि सामायिक, प्रतिक्रमण आदि के द्वारा संसार की समस्याओं का आध्यात्मिक समाधान किया जा सकता है. इस शिविर का लाभ संघवी श्री मिश्रीमल नथमलजी परिवार (नैनावा निवासी) फर्म - रत्नमणि मेटल्स, अहमदाबाद ने लिया. प्रवचन श्रेण की दसवीं शंखला में दिनांक २/९/१२ को 'परिवार को प्रेम का मन्दिर बनाएँ विषय पर
की वाणी का उल्लेख करते हए पूज्य आचार्य भगवन्त ने कहा कि अनन्त उपकारी, अनन्त ज्ञानी परमात्मा महापोर प्रभु ने अपने प्रवचन में कहा है कि प्रेम, करुणा, दया, सहनशीलता के द्वारा परिवार को प्रेम का मन्दिर बनाया जा सकता है. इस शिविर का लाभ स्व.शेठ श्री जयंतिलाल केशवलाल शाह, धनारी, राजस्थान. हाल- साबरमती, अहमदाबाद. पत्नी- श्रीमती निर्मलाबेन, पुत्र- कल्पेशभाई, परेशभाई, भाविनभाई, पुत्रवधु. हेमालीडेन, शीतलबेन, भाविकाबेन, पुत्री-दामाद- पीनाबेन-संजयकुमार, प्रपौत्र- ऋषभ, केवल, प्रपौत्री- आंगी, अवधि, निर्मोही। फर्म - केशवलाल टी. शाह, अहमदाबाद ने लिया.
रविवारीय सुमधुर प्रवचन शृंखला की समाप्ति दिनांक २ सितम्बर, १२ को हुई. सभी शिविरों में हजारों जैन जैनेतर श्रोताओं ने उपस्थित होकर सुमधुर प्रवचनों का लाभ लिया.
For Private and Personal Use Only
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
વિ.સં.૨૦૬૮-દિ.
કોબા તીર્થ પર્યુષણપર્વની આરાધના માટે
પઘાણે!પઘાણે! પધારો!
જય જીનેન્દ્ર સાથે જણાવવાનું કે રાષ્ટ્રસંત મહાન શાસન પ્રભાવક આચાર્ય ભગવંત શ્રી પધસાગરસુરીશ્વરજી મહારાજા, જાપમગ્ન આચાર્ય ભગવંત શ્રી અમૃતસાગરસૂરીશ્વરજી મ.સા., પ.પૂ.જ્યોર્તિવિદ આચાર્ય શ્રી અરૂણોદયસાગરસૂરીશ્વરજી મ.સા., ગણિવર્ય શ્રી પ્રશાન્તસાગરજી મ.સા., તથા આદિ મુનિવરોના પાવન સાનિધ્યમાં શ્રી પર્યુષણ મહાપર્વની આરાધના માટે પધારવા વિનંતી છે.
'પષણ પર્વ પ્રારંભ. It.૧૨ ૧૨ થી ll.૧૯ : ડાર
# પ્ર.ભાદરવા વદ-૧૧ તા.૧૨-૯-૧૨ થી તા.૧૯-૯-૧૨ સુધી આઠેય દિવસ સવારે ૯.૦૦ કલાકે પર્યુષણ
પર્વની વ્યાખ્યાનશ્રેણી * પ્ર.ભાદરવા વદ ૧૩ તા.૧૪-૯-૧૨ ના રોજ સવારે ૯.૦૦ કલાકે વ્યાખ્યાન સમયે કલ્પસૂત્ર વહોરાવવાની
કલ્પસૂત્ર પૂજન વગેરેની બોલીઓ બોલાશે. * પ્રભાદરવા વદ ૧૪ તા.૧પ-૯-૧૨ ના રોજ કલ્પસૂત્ર વાંચન. # પ્ર.ભાદરવા વદ અમાસ તા.૧૬-૯-૧૨, સવારે ૯-૦૦ કલાકે શ્રી મહાવીર સ્વામી ભગવાનનું જન્મ વાંચન, ૧૪ સુપનની બોલી તથા પારણાના ચઢાવા બોલાશે. જન્મ વાંચન સવારે થશે. આ દિવસે ગુરૂ ભગવંતને બારસાસૂત્ર વહોરાવવાની બોલી તથા બારસાસ્ત્રના ચિત્ર દર્શનની બોલીઓ બોલાશે. આ દિવસે રાત્રે ૯.૦૦ કલાકે જિનાલયમાં પ્રભુભક્તિનો કાર્યક્રમ પણ રાખેલ છે. * દ્વિતીય ભાદરવા સુદ ૪ તા.૧૯-૯-૧૨ આચાર્ય ભગવંતને બારસાસૂત્ર અર્પણ, બારસાસ્ત્રનું વાંચન તથા
ચિત્રદર્શન. જ સાંજનું પ્રતિક્રમણ દરરોજ સાંજે ૭.૦૦ કલાકે * ચૌદસનું પ્રતિક્રમણ સાંજે ૬.૦૦ કલાકે તેમજ
સંવારી Íતિકમણ
તા.૧૯-૯-૧૨ ના રોજ બપોરે ૩.૦૦ કલાકે ભણાવાશે. * દરરોજ સવારે પ્રક્ષાલ પૂજા તથા કેશર પૂજાના ચઢાવા ૭.૦૦ કલાકે બોલાશે. * સાધ્વીજી મ. સા.ના ઉપાશ્રયમાં બહેનોનું પ્રતિક્રમણ દરરોજ સાંજે ૭.૦૦ કલાકે. * પર્યુષણ પર્વમાં એકાસણાં-બિયાસણાં-આયંબિલ દરેકે કરવાનું અવશ્ય છે. તેની વ્યવસ્થા ભોજનશાળામાં કરેલ
છે. તો લાભ લેવા વિનંતી છે. ગજ પર્યુષણના નવે દિવસ પ્રભુજીની ભવ્ય અંગરચના થશે તો દર્શનનો લાભ લેવા વિનંતી છે.
લી. શ્રી મહાવીર જૈન આરાધના કેન્દ્ર,
કોબા ટ્રસ્ટ પરિવાર
For Private and Personal Use Only
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
३२
www.kobatirth.org
।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ||
|| योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धि-कीर्ति कैलास- सुबोध - मनोहर-कल्याण- पद्मसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।।
धर्म- श्रुत-कला युक्त त्रिवेणी धाम कोबातीर्थ में
जिनभक्ति- गुरुभक्ति - श्रुतभक्ति रूपी त्रिवेणी महामहोत्सव के शुभ प्रसंग पर सादर हार्दिक आमंत्रण
शुभस्थल
शतं जीवेत शरदः
परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य भगवन्त श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी
महाराज साहब का ७८ वाँ
जन्मवर्धापन पञ्चानिका महोत्सव
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२६ सितम्बर बुधवार से 30 सितम्बर, २०१२, रविवार तक
दिनांक २६ सितम्बर से २८ सितम्बर २०१२ तक ४५ आगम पूजा
दिनांक २६ सितम्बर २०१२ के दिन पूज्य आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज को ४५ आगन ताड़पत्रीय ग्रन्थ अर्पण
-
सितम्बर २०१२
दिनांक २९ सितम्बर १२ गुरुवन्दना एवं नूतन भवन का उद्घाटन
उपरोक्त सभी कार्यक्रम श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में सम्पन्न होंगे.
दिनांक ३० सितम्बर, २०१२
* धर्मसभा
मुख्य अतिथि - शेठ श्री संवेगभाई लालभाई (प्रमुख, श्री आणंदजी कल्याणजी ट्रस्ट) विशिष्ट अतिथि शेठश्री श्रेणिकभाई लालभाई (श्री जैन संघ के पुण्यशाली अग्रणी ) पद्मश्री कुमारपालभाई देसाई (जैनधर्म के प्रखर चिंतक एवं प्रवक्ता ) गौरवमयी उपस्थिति माननीय श्री प्रफुल्लभाई पटेल (गृहमंत्री, गुजरात सरकार)
शुभ स्थल
टाउन हॉल, सेक्टर- १७, टोरेन्ट पावर सर्कल के पास विधानसभा भवन के सामने, गांधीनगर
निमंत्रक
प्रमुखश्री एवं ट्रस्टीगण
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर-३८२००७ Phone- (079) 23276204, 205, 252 Fax (079) 23276249 Website www.kobatirth.org Email kendra@kobatirth.org
For Private and Personal Use Only
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
पूर्व राष्ट्रपति महामहीम श्री नीलम संजीव रेड्डी
प. पू. गुरुदेव के आशीर्वाद लेते हुए राष्ट्रीय स्तर के विविध राजनीतिज्ञ
पूर्व राष्ट्रपति महामहीम श्री ज्ञानी झैलसिंहजी અમ્પ કલાસ
पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी
www.kobatirth.org
पूर्व प्रधानमंत्री श्री एच. डी. देवेगोडा
पूर्व राष्ट्रपति महामहीम श्री बी. डी. जत्ती
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्मसा
o no
पूर्व राष्ट्रपति महामहीम डॉ. शंकरदयालजी शर्मा
For Private and Personal Use Only
पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजीभाई देसाई
पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपई
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प. पू. गुरुदेव के आशीर्वाद लेते हुए प्रांतीय स्तर के विविध राजनीतिज्ञ नवल किशोर शर्मा (पूर्व राज्यपाल, गुजरात राज्य) / श्री अमरसिंहजी (पूर्व मुख्यमंत्री, गुजरात राज्य) श्री हितेन्द्रभाई देसाई (पूर्व मुख्यमंत्री, गुजरात राज्य)। श्री केशुभाई पटेल (पूर्व मुख्यमंत्री, गुजरात राज्य)। श्री चिमनभाई पटेल (पूर्व मुख्यमंत्री, गुजरात राज्य) श्री नरेंद्रभाई मोदी (मख्यमंत्री, गुजरात राज्य)। अंक प्रकाशन सौजन्य : संघवी श्री प्रकाशभाई मिश्रीमलजी नथमलजी परिवार (नैनावा निवासी) रत्नमणी मेटल्स एन्ड ट्युब्स लि. - अहमदाबाद भ श्री कांतिलालजी धिया (पर्व उप मुख्यमंत्री, गुजरात राज्य)। To. BOOK-POST / PRINTED MATTER For Private and Personal Use Only