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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० सितम्बर २०१२ पूज्यश्री ने आगे कहा कि हमने आज तक विभिन्न योनियों में जन्म-मरण पाकर इस संसार का भ्रमण किया है, अनेक कष्ट एवं यातनाएँ सहन की हैं और अब भी यदि इस मानव जीवन का सदुपयोग नहीं किया तो और भी अनन्तानन्त जीवन धारण कर कष्ट एवं यातनाएँ सहन करनी पड़ेंगी. जन्म-मरण के इस चक्र को रोकने के लिये हमें अपने इन्द्रियों के विषयों पर नियंत्रण प्राप्त करना होगा, विषय-वासनाओं से मन को विरक्त करना होगा. इन्द्रियों के विषयों की लालसा और कषाय संसारचक्र को बढ़ाता है. मन में जैसे विचार उठेंगे वैसा ही परिणाम मिलेगा. मन ही संसार की वृद्धि करता है और मन ही संसार से मुक्ति दिलाता है. मन में सदैव शुद्ध भावों को धारण करने से आत्मा शुद्ध और निर्मल हो जाती है. प्रायश्चित्त और पश्चात्ताप से मन को शुद्ध करें. सामायिक, प्रतिक्रमण और स्वाध्याय मन को पावन बना देते हैं. आत्मा को मानव जीवन मिलना बहुत बड़े पुण्योदय का परिणाम होता है, हमें अपने पुण्योदय से मानव जीवन ॥ है तो इस जीवन को धन्य बना लें. संसार में बार-बार जन्म और मरण जैसे भयंकर कष्ट को सहन करने की परम्परा को रोकने का प्रयत्न करें, अगला जन्म ही लेना न पड़े ऐसी भावना मन में दृढ़ करें. हमें यह संकल्प होगा कि अब तक सहा है अब और न सहेंगे, इस संसार से इसी जीवन में मुक्ति लेकर रहेंगे'. आप सभी की मनोकामना केवल मोक्ष को प्राप्त करने की हो, यही शुभकामना है. । धर्म क्रियाओं का अनूठा रहस्य - प्रवचन सारांश परम पूज्य आचार्य भगवंत ने धार्मिक क्रियाओं का अनूठा रहस्य के संबन्ध में कहा कि हम वर्षों से धार्मिक क्रियाएँ करते आ रहे हैं किन्तु हमें आज तक उन धार्मिक क्रियाओं का जो सच्चा आनन्द है वह प्राप्त नहीं हो सका है. इसका कारण क्या है? इसकी खोज हमने कभी नहीं की है. किसी भी धार्मिक क्रिया का मूल भावना होती है और भावना का आधार सम्यक श्रद्धा है. जब तक शुद्ध भावना नहीं होगी, हम किसी भी क्रिया का सच्चा आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते हैं. पूज्य राष्ट्रसंत ने नमस्कार महामंत्र का रहस्य बतलाते हुए कहा कि 'नमो' शब्द ही संसार से छुटकारा दिलाने में समर्थ है. किसी भी मंत्र में 'नमः' शब्द नाम के बाद आता है किन्तु पंच परमेष्ठी नमस्कार मंत्र में नाम के पूर्व नमो शब्द आता है, यहाँ नमो शब्द महत्त्वपूर्ण हो जाता है, और यही इसका मूल रहस्य है. नमो अरिहंताणं में अरिहंत से पूर्व नमो शब्द आता है, इसलिये यहाँ यह बतलाया गया है कि अरिहंत मोक्ष नहीं दिलाते हैं, बल्कि अरिहंत को किया गया नमस्कार ही मोक्ष दायक है. नमस्कार शब्द किसी भी धार्मिक क्रिया का प्रवेशद्वार है. शुद्ध भावना पूर्वक की गई धार्मिक क्रियाएँ हमें वांछित फल प्रदान करती हैं. पूज्यश्री ने कहा कि सामायिक, तपाराधना, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण, आलोचना, क्षमायाचना आदि क्रियाएँ पूर्ण रूपेण वैज्ञानिक क्रिया हैं. आत्मा का शुद्ध भाव सामायिक, स्वाध्याय, चिन्तन आदि से प्राप्त होता है. सामायिक से प्राप्त आध्यात्मिक शक्ति के सहारे हम अपनी भावना को निर्मल, शुद्ध बना सकते हैं. हम चाहे जितनी भी बाह्य क्रियाएँ करते रहेंगे, किन्तु कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला है. शुद्ध भाव पूर्वक किया गया 'मिच्छामि दुक्कडं' भी संसार से मुक्त करा देने में समर्थ है. आप अपने जीवन को संयमित बनाएँ, सभी जीवों के प्रति क्षमा, करुणा, दया, समता का भाव धारण करें, प्रभु महावीर की वाणी में श्रद्धा रखते हुए कोई भी धार्मिक क्रिया करें, तो अवश्य ही आप सच्चा आनन्द प्राप्त करेंगे. आप अपने मन में हमेशा शुद्ध विचार रखते हुए अपनी दैनिक क्रियाएँ करेंगे तो निश्चित ही मानव जीवन को सफल बना सकेंगे. पूज्य आचार्य भगवन्त ने कहा कि हमारी प्रत्येक क्रिया प्रतिक्रमणमय होनी चाहिए, हम जो भी क्रिया करें उसमें प्रतिक्रमण का भाव दिखना चाहिए. ऐसा नहीं कि धार्मिक क्रियाएँ तो खूब करते रहें किन्तु हमारा आचरण, व्यवहार ठीक इसके विपरीत हो. जब तक हमारा आचरण, व्यवहार आदि शुद्ध नहीं होगा तब तक हम चाहे जितनी भी धार्मिक क्रियाएँ करते रहें, कोई लाभ नहीं होने वाला है. हमारा आचरण, व्यवहार शुद्ध और सम्यक्त्व का भाव लिये होना चाहिए. अन्त में पूज्यश्री ने कहा कि विचार की शुद्धता और समता भाव आपकी धार्मिक क्रियाओं को सफल बना देंगी. आप अपने मानव जीवन का आने वाले भव को सुंदर बनाने में सदुपयोग करें, आप समाधि मरण प्राप्त करें यही मेरी भावना और मंगल कामना है. For Private and Personal Use Only
SR No.525270
Book TitleShrutsagar Ank 2012 09 020
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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