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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि.सं.२०६८-द्वि. भाद्रपद कर्म शत्रु पर विजय पाने का उपाय - प्रवचन सारांश) परम पूज्य आचार्य भगवंत ने कर्म शत्रु पर विजय पाने का उपाय के संबंध में कहा कि किसी भी क्रिया का मूल भावना है और भावना का आधार सम्यक् श्रद्धा है, जहाँ भावना है वहीं भक्ति है, जहाँ भक्ति है वहीं भावना है. निर्मल, निर्दोष भावना के द्वारा अपने कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं. अनेक महापुरुषों का उदाहरण देते हुए पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि किस प्रकार उन लोगों ने कर्म के अधीन होकर अनेक कष्टों का सहन किया. पूज्य राष्ट्रसंत ने अनेक धर्ममय भावना वाले व्यक्तियों के उदाहरण दे कर भक्ति और भावना को बहुत सुंदर ढंग से समझाया. उन्होंने कहा संसार का सुख क्षणिक सुख है, मोक्ष का सुख अनन्त सुख है. सांसारिक सुख के लिये अर्जित धन में सभी का भाग होता है किन्तु आध्यात्मिक सुख के लिये अर्जित धन स्वयं के लिये होता है, इसमें किसी का भी भाग या हिस्सा नहीं होता है, सांसारिक सुख की पूर्ति में विश्वास करते हैं, डॉक्टर, वकील, व्यापार आदि में विश्वास करके जो सुख पाते हैं, उससे अधिक सुख परमात्मा की वाणी में विश्वास करने से मिलेगा, एक बार विश्वास करके देखिये. पूज्यश्री ने कहा कि जब हमने निगोद से बाहर निकलने के बाद ज्ञानी पुरुषों की वाणी का पालन नहीं किया और यहाँ कर्म शत्रुओं के घेरे में घिरते चले गये, यही सबसे बड़ी भूल हुई. प्रभु महावीर ने कहा कि आत्मा स्वयं कर्ता और भोक्ता दोनों है. कर्म के आठ प्रकार हैं, सभी कर्म एक साथ नहीं बन्धते हैं, जिस समय जैसी भावना रहती है उस समय वैसे कर्मों का बन्धन होता है. कर्मों के बन्धन में विचारों का बहुत बड़ा योगदान है. जितनी प्रबल सम्यक् भावना होगी उसी अनुरूप कर्मों की स्थिति का बन्धन होगा, कषायों के माध्यम से कर्मों का बन्धन होता है. कषाय चार प्रकार के हैं क्रोध, लोभ, मान और माया इनका त्याग करना होगा, किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार का कष्ट न हो इसका ध्यान रखना होगा. यह सब सामायिक, स्वाध्याय, चिंतन आदि से प्राप्त हो सकता है. सामायिक से प्राप्त आध्यात्मिक शक्ति के सहारे हम अपनी भावना को निर्मल, शुद्ध बना सकते हैं. अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखें और पूर्ण संकल्प के साथ साधना करें कर्मों का नाश स्वतः होता जाएगा. सांसारिक धन दौलत कुछ भी साथ नहीं जाने वाला है, जो साथ जाने वाला है वह मात्र आपके सुकृत ही हैं. प्रभु से यदि कुछ मांगना हो तो केवल यह मांगें कि हे प्रभु! आपने जो पाया है वही मुझे चाहिए और आपने जो छोड़ा है वह सब मुझसे भी छूट जाए ऐसी शक्ति प्रदान करो, तीर्थंकर की वाणी के अतिरिक्त दूसरा कोई भी मुक्त नहीं करा सकता है. जो मुक्त हैं वही दूसरों को मुक्त करा सकते हैं. शुद्ध भावना से हम अपने कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं. एक बार हमने अपने कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त करली तो जीवन के अनादि अनन्त जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिल जाएगा. मन में सदैव शुद्ध भावना रखें आने वाला भव सुधर जाएगा. मात्र सम्यक् दर्शन आदि के सहारे अनन्त आत्मा मुक्त हो गये हैं. आप भी मुक्त हो जाएंगे. आप समाधि मरण प्राप्त करें यही मेरी भावना और मंगल कामना है. (अनादिकालीन जीवनयात्रा का इतिहास - प्रवचन सारांश) परम पूज्य राष्ट्रसंत ने अनादिकालीन जीवनयात्रा का इतिहास के सम्बन्ध में कहा कि आज का मानव संसार के अनेक इतिहास को जानता है किन्तु अपने अनादिकालीन जीवनयात्रा का इतिहास नहीं जानता है. अनन्त काल से जीव अनन्त बार इस संसार की यात्रा कर चुका है किन्तु इस यात्रा को रोकने का कोई भी उपाय नहीं करने के कारण हम संसार में बार-बार आते-जाते रहते हैं. यह मानव जीवन मिला है तो इस जीवन का पूरा-पूरा लाभ लेकर इस जीवन यात्रा को रोकने का उपाय अवश्य करें. पूज्य आचार्य भगवन्त ने कहा कि हम दिन-रात अपने आस-पास यह देख रहे हैं कि संसार में आने वाला प्रत्येक जीव कितना कष्ट सहन कर रहा है. कोई प्राणी सुखी नजर नहीं आता है. हम भी अपने पूर्व के भवों में इन सभी योनियों में उत्पन्न हये हैं, न जाने कितनी भयंकर यातनाओं को सहन किया है और बार-बार दुःख सहन करते हुए संसार में आते-जाते रहे हैं. अब इस मानव जीवन में आकर भी हमने संसार के मायाजाल में फँसकर यदि अपनी आत्मा के शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करने का उपाय नहीं किया तो यह जीवनचक्र निरन्तर चलता रहेगा और संसार में आने-जाने का सिलसिला जारी रहेगा. For Private and Personal Use Only
SR No.525270
Book TitleShrutsagar Ank 2012 09 020
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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