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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सितम्बर २०१२ ८ मस्तक में पानी भर जाता था, हर १५ दिन में अहमदाबाद डॉक्टर के पास आना पड़ता था। सभी ने आशा छोड़ दी थी। उस वक्त प. पू. आचार्यश्री का आगमन कड़ी (गुजरात) में हुआ था । उस समय महोत्सव का आयोजन था । मेरे भाई मुकेश से बात हुई, उसने मेरी बीमारी की बात आचार्यश्री को बतलाई उसी समय मेरे घर पर आचार्यश्री का आगमन हुआ । मेरी परिस्थिति को देखा और मंत्रित करके वासक्षेप मस्तक पर डाला। उसी समय अंतर हृदय से उनके उद्गार निकले और कहा कि हसुमतीबहन, सुरेन्द्रभाई आप चिन्ता न करें। उसी दिन से आरोग्य प्राप्ति होने लगी। थोड़े दिनों तक डॉक्टर के पास नहीं गये, तो डॉ. ने सोचा बालक की मृत्यु हो गई होगी। डॉक्टर के पास मिलने गए तो डॉक्टर ने प्रश्न किया, क्या बालक जिंदा है? तब माता-पिता ने कहा हमारे गुरु के आशीर्वाद से ही नया जीवन मिला है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डॉक्टर ने कहा जो काम दवा न कर सकी वो दुआ ने किया। आज जो कुछ भी हूँ, वह मेरे जीवनदाता गच्छाधिपति और मेरे जीवन के पथदर्शक आचार्यश्री हैं। जिसके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन अंधकारमय है। गुरु लेता कुछ नहीं है, देता है सबकुछ। शिष्य देता कुछ नहीं है, लेता है सबकुछ ।। गणिवर्य प्रशांतसागर मेरे गुरुदेव में सब कुछ है आपने सुना होगा कि सोने में सुगंध नहीं होता है, सोना तो सोना होता है, सोना में मूल्य है, सौंदर्य है, चमक है, आकर्षण है, शक्ति है, उसमें और भी बहुत कुछ है, लेकिन सबकुछ नहीं, क्योंकि सोने में सुगंध नहीं है, और अगर सोने में सुगंध होता तो सोने में सुहागा का मुहावरा न बनता 1 अब समुद्र को लें, समुद्र अथाह है, गहरा है, अपने गर्भ में बहुमूल्य रत्न-संपदा को छुपाये हुए है, जलराशि का अक्षय भंडार है, उसमें और भी बहुत कुछ है, मगर उसमें भी सबकुछ नहीं है, क्योंकि समुद्र का जल खारा है, मिठास नहीं है। अब हिमालय है, यह पर्वतों में राजा है एवरेस्ट की चोटी दुनिया भर में मशहूर है, उन्नत है, गगनचुम्बी है, दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भंडार है, गंगा जैसी पवित्र नदी का उद्गमस्थल है, उसमें और भी बहुत कुछ है, लेकिन उसमें भी सब कुछ नहीं है, क्योंकि हिमालय में सीढ़ियों नहीं हैं अब आकाश है, वह स्वच्छ है, असीम है, उसमें सूर्य, चाँद, नक्षत्र, तारे हैं, और भी बहुत कुछ है, लेकिन सबकुछ नहीं, क्योंकि आकाश में फूल नहीं होते, आकाश में खंभे नहीं हैं, चाँद है तो उसमें दाग है, और सूर्य है तो उसे भी ग्रहण लगता है, अब और क्या बचा जिसमें आप कहेंगे कि उसमें सबकुछ है। मैं कहता हूँ कि एक हैं. जिसमें सबकुछ है, वो हैं मेरे गुरुदेव आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी, जिनमें मैंने सबकुछ देखा है । जब मुझे माँ की याद आई, तब गुरु ने माँ बनकर प्यार किया, जब मैंने कुछ गलत किया, तो बाप की तरह डाँटा, एक अच्छे दोस्त की तरह समझाया, मैं जब किसी मुश्किल में होता हूँ, या किसी उलझन में होता हूँ, तो मुझे Backbone की तरह साथ दिया, एक Teacher की तरह हरदम मुझे सिखाया है, एक कुम्भकार की तरह अंदर से बल देकर ऊपर से थपथपाया है, एक जौहरी की तरह हम जैसे काँच के टुकड़ों को घिस घिस कर हीरा बनाया, एक गुरु की तरह मैं मोक्षमार्ग में कैसे आगे जाऊँ उसका लक्ष्य रखा, इसलिये मेरे गुरुदेव सब में बेस्ट हैं, उनमें सबकुछ है । गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागुं पांय । बलिहारी गुरुदेव की, जिसने गोविंद दियो बताय ॥ For Private and Personal Use Only ये तन विष की वेली, गुरु अमृत की खाण । शीश दीये जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ॥ मुनि भुवनपद्मसागर
SR No.525270
Book TitleShrutsagar Ank 2012 09 020
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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