SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि.सं.२०६८-द्वि. भाद्रपद सांसारिक समस्याओं का आध्यात्मिक समाधान - प्रवचन सारांश परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने संसार की समस्याओं का आध्यात्मिक समाधान विषय पर भगवान महावीर की वाणी को स्मरण करते हुए कहा कि प्रभु ने सांसारिक सभी समस्याओं के निदान हेतु खूब सुन्दर मार्गदर्शन देते हुए संसार को जड़ एवं चेतन का विज्ञान बताया है। प्रकृति की एक बहुत सुन्दर व्यवस्था है कि समस्या जहाँ से उत्पन्न होती है, समाधान भी वहीं होता है। हमारी समस्त समस्याएँ मन से ही उत्पन्न होती हैं इसलिये इन समस्याओं का समाधान भी मन से ही करना होगा। इसके लिये सामायिक, प्रतिक्रमण आदि के द्वारा अपने मन को निर्मल एवं शुद्ध करके समस्त जीवों के प्रति दया, करुणा, क्षमा आदि का भाव धारण करेंगे तो पाएंगे कि आपके पास कोई भी सांसारिक समस्या है ही नहीं। ___पूज्यश्री ने आगे कहा कि समस्याएँ हमारे अन्दर से उत्पन्न होती हैं किन्तु समाधान हम बाहर खोजते हैं, जबकि ऐसा देखा जाता है कि सभी समस्याओं का समाधान अन्ततः हम स्वयं ही करते हैं। हम सम्पूर्ण संसार का मुल्यांकन तो करते हैं किन्तु अपने स्वयं का मूल्यांकन नहीं कर पाते हैं, जबकि सम्यग्दृष्टि आत्मा सदा स्वयं का ही मूल्यांकन करते हैं और सदा स्वयं में ही लीन रहते हैं। जहाँ आध्यात्मिक भावनायुक्त दृष्टिकोण होगा वहाँ सभी समस्याओं का समाधान स्वतः होता रहेगा। सम्यग्दृष्टि आत्मा तो रहती है संसार में किन्तु वह जल में कमल के समान सदैव अलिप्त रहती है। पूज्य आचार्य भगवन्त ने वर्तमान परिस्थिति का वर्णन करते हुए कहा कि आज सर्वत्र प्रदर्शन हो रहा है, जहाँ प्रदर्शन है वहाँ स्वदर्शन का अभाव होता है। जबतक प्रदर्शन रहेगा तबतक चारों ओर समस्याएँ रहेंगी और जब स्वदर्शन होने लगेगा तब कोई भी समस्या नहीं रहेगी। इसलिए हमें स्वदर्शन, स्वमूल्यांकन करते हुए स्वयं में लीन होना होगा, तभी हम समस्याओं का समाधान कर पायेंगे। आप यह अच्छी तरह से जान लें कि मन की भूख कभी मिटने वाली नहीं है, लालसाएँ बढ़ती रहती हैं, हम सांसारिक वस्तुओं में सुख खोजते हैं, जबकि ऐसा नहीं होता है। मन को पवित्र बनाएँ, पवित्र मन में पात्रता आती है और तब मन की दरिद्रता दूर होती है। मन की दरिद्रता दूर होते ही आत्मा सुख-शांति का अनुभव करने लगती है। उसके पास कोई समस्या नहीं रह जाती है। पूज्य राष्ट्रसन्त ने भगवान महावीरस्वामी के बताए मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करते हुए कहा कि आप प्रभु के द्वारा प्रतिपादित मार्ग पर चलने लगेंगे तो आपकी सभी समस्याएँ स्वतः आप से कोसों दूर होती जाएंगी। आपको यह संकल्प लेना होगा कि अब तक सहा है, अब और न सहेंगे, इन सांसारिक समस्याओं का समाधान करके रहेंगे. आप सभी केवल अपने मन को शुद्ध एवं निर्मल बनाएँ, आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी, यही शुभकामना है. आलोचना आत्मा के आईने पर जमी हुई पाप कर्मों की धूल को पश्चाताप एवं प्रायश्चित के पावन नीर से धोकर आत्मा को उजला बनाना यही सच्ची आलोचना है। भूलों की भूल-भूलैया में भटकते, भटकते अपन कभी अपने आराध्य-उपास्य गुरुजनों के चरणों में बैठकर खुले मन एवं भरी आंखों के साथ अपने दिल के गुनाहों को यथावत् व्यक्त करें-उनसे प्रायश्चित मांगे-फिर से गुनाह-अपराध नहीं करने का दृढ़ संकल्प करें, दिये गये प्रायश्चित को पूरा करें। वैसे तो जब भी पाप लगे, दोष लगे, गल्ती हो तब तुरंत पश्चाताप भरे दिल से प्रायश्चित ले लेना चाहिए। लेकिन जिन्दगी में एकाध बार तो पूरे जीवन में किये हुए पापों की आलोचना करनी ही चाहिए। जिसे अपनी शास्त्रीय परिभाषा में 'भव आलोचना' कहते है। पापों का प्रायश्चित करने से मन हलका रहता है। ___- भद्रबाहुविजय For Private and Personal Use Only
SR No.525270
Book TitleShrutsagar Ank 2012 09 020
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy