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सितम्बर २०१२
(संपादकीय पर्वाधिराज पर्युषण जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व है। सम्पूर्ण भारत व विदेशों के सभी जैनसंघों में आठ दिन तक इस पर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है। इन आठ दिनों में जैनधर्मावलम्बी छट्ठ, अट्टम, अट्ठाई, सोलह उपवास एवं मासक्षमणादि तपश्चर्या करते हैं। जैनधर्म के गुरु चतुर्विध श्रीसंघ के समक्ष परम पवित्र अष्टाह्निका तथा कल्पसूत्र ग्रन्थ का वाचन करते हैं। इस पर्व के पाँचवें दिन भगवान महावीर के जन्म प्रसंग का विशेषरूप से वर्णन किया जाता है। कल्पसूत्र परम पवित्र ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ का वांचन पूर्व में केवल साधु भगवन्त ही करते थे। भगवान महावीर के निर्वाण के ९८० वर्ष के बाद (मतान्तर ९९३ वर्ष) आनन्दपुर (वडनगर) के महाराजा ध्रुवसेन के पुत्र की मृत्यु से लगे आघात को दूर करने के लिये इस पवित्र ग्रन्थ का वाँचन श्रीसंघ के समक्ष सर्वप्रथम किया गया था, तब से यह परम्परा आज तक निर्बाध रूप से चली आ रही है।
आत्मा को पवित्र और पूर्ण बनाने का अवसर इस पर्व में प्राप्त होता है। हमारी आत्मा सांसारिक सुखसुविधाओं में लिप्त रहती है, उससे विरक्ति दिलाने में यह पर्व सहयोगी सिद्ध होता है। हम सम्पूर्ण संसार की जानकारी रखते हैं, किन्तु अपने स्वयं की आत्मा के स्वरूप की ही जानकारी का अभाव होता है। पर्युषण पर्व में हम अपनी आत्मा के सम्बन्ध में भलीभाँति जानकारी प्राप्त करते हैं। चार गतियों एवं चौरासी लाख योनियों में भटकते हुए हम मानव जीवन को प्राप्त कर विश्व के सर्वोत्तम धर्म जैनधर्म के अनुयायी बने हैं, यह भी हमारे पूर्व जन्म के पुण्योदय का ही परिणाम है। जैनधर्म में जन्म लेने मात्र से हम मुक्त नहीं हो सकते हैं। मुक्ति प्राप्त करने हेतु जैनधर्म के मौलिक सिद्धांतों के अनुरूप अपना आचरण व व्यवहार बनाना होगा। जैनधर्म का मूल समता का भाव है। अपने जीवन में समता भाव को प्राप्त करने एवं समस्त जीवों के प्रति दया-मैत्री का भाव धारण करने के प्रयास में यह महापर्व हमें सही दिशा प्रदान करता है।
पर्वाधिराज पर्युषण में तपश्चर्या व आराधना करते हुए गुरुभगवन्तों के सदुपदेश सुनकर मन निर्मल एवं शुद्ध बन जाता है और संसार के समस्त जीवों के प्रति हृदय में क्षमा का भाव उत्पन्न हो जाता है। महापर्व की समाप्ति के दिन अर्थात् संवत्सरी के दिन शुद्ध व निर्मल मन से संसार के समस्त जीवों से अपने द्वारा जाने अनजाने समस्त अपराधों भूलों के लिये क्षमायाचना करते हैं। . महान जैनाचार्यों की गौरवशाली परम्परा में देदीप्यमान नक्षत्र समान लाखों हृदय के स्वामी, ओजस्वी प्रवचनकार, दूरदृष्टिभरा नेतृत्व, शासन-तीर्थ व श्रुत की रक्षा आदि अनेक सुगंधित गुणों के लिये आश्रयस्थान स्वरूप परम पूज्य आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब इस कलिकाल में जिन शासन के गौरव हैं, मानव समाज के लिये वरदान हैं एवम् साधुता के लिये आदर्श श्रुतोद्धार, तीर्थोद्धार, समाज उत्कर्ष, जैन एकता आदि अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों में नेतृत्व और मार्गदर्शन प्रदान कर जिनशासन के उन्नयन में प्रभावक कार्य कर रहे हैं।
हमारे सौभाग्य से ऐसे महान राष्ट्रसन्त आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब की निश्रा में महापर्व पर्युषण में तपश्चर्चा एवं आराधना करने एवं परम पूज्य राष्ट्रसन्त का ७८वाँ जन्म वर्धापन महोत्सव मनाने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है। आईए हम सभी इस पर्वराज पर्युषण एवं महान जैनाचार्य परम पूज्य राष्ट्रसन्त का जन्म वर्धापन महोत्सव मनाएँ और इन दोनों महामहोत्सवों में अपनी आत्मा की शुद्धि करें, मानव जीवन को सफल बनाएँ एवं आने वाला भव सुखद हो ऐसा प्रयास करें।
लेखक
अनुक्रम लेख १. गुरु भगवंत संदेश २. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरिजी का संक्षिप्त परिचय ३. पू. साधु भगवंतों के उद्गार ४. रविवारीय सुमधुर प्रवचन श्रेणी ६ से १० ૫. પર્યુષણ મહાપર્વ વ્યાખ્યાન ૬. ક્ષમાપના ७. पर्युषण संबंधी ग्रन्थों की सूचि ૮. ધર્મની રક્ષા કાજે ८. समाधि-शत (ग्रंथ सभीक्षा) ૧૦. જ્ઞાનમંદિર સંક્ષિપ્ત અહેવાલ ११. समाचार सार
डॉ. हेमंतकुमार ભદ્રબાહુવિજય કનુભાઈ શાહ बी. विजय जैन સ્વ. રતિલાલ મફાભાઈ શાહ હીરેન દોશી
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डॉ. हेमंतकुमार
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