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परिवार को प्रेम का मन्दिर बनाएँ
प्रवचन सारांश
परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब ने चातुर्मास अवधि में आयोजित रविवारीय प्रवचन श्रेणी की दसवीं शृंखला में 'परिवार को प्रेम का मन्दिर बनाएँ विषय पर अनन्त उपकारी, अनन्त ज्ञानी परमात्मा महावीर की गाणी का उल्लेख करते हुए कहा कि परमात्मा महावीर प्रभु ने अपने प्रवचन में मैत्री, दया, करुणा, सौहार्द्र आदि का उपदेश देकर हमें अपने जीवन को संयमित बनाने का उपदेश दिया है। हम उनके बताए मार्ग पर चलेंगे तो हमारा परिवार स्वयं प्रेम का मन्दिर बन जाएगा।
दशमी प्रवचन शिविर
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पूज्यश्री ने परिवार को प्रेम का मन्दिर बनाने के लिये आवश्यक बातें बताते हुए कहा कि प्रेम और मैत्री इतना बलवान है कि इसके सहारे मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। अब यह देखना है कि जिस वस्तु के सहारे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, तो क्या उसके सहारे हम अपने परिवार को प्रेम का मन्दिर नहीं बना सकते ? अवश्य ही बना सकते हैं। जहाँ प्रेम है, वहाँ परमात्मा का वास होता है। भगवान महावीर ने भी संसार के समस्त जीवों के प्रति प्रेम करने को कहा है। आपका प्रेम पूर्ण व्यवहार सामने वाले व्यक्ति का हृदय परिवर्तन कर देता है।
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पूज्य आचार्य भगवन्त ने आगे कहा कि भगवान महावीर ने अपने गर्भावस्था में ही माता के कष्टों को देखकर अपना हलन चलन बन्द कर दिया था। उन्होंने अपने इस कार्य से संसार को यह संदेश दिया कि हमारा कोई भी कार्य ऐसा नहीं होना चाहिए जिससे हमारे माता-पिता को किसी भी प्रकार का कष्ट हो । श्रीराम ने अपने आचरण के द्वारा यह संदेश दिया कि मात-पिता की आज्ञा का पालन हमें हर कीमत पर करना चाहिए चाहे वह बन गमन के आदेश को पालन करने जैसा ही क्यों न हो पूज्यश्री ने अनेक ऐतिहासिक उदाहरणों के द्वारा यह बताया कि किस प्रकार पूर्वकाल में महापुरुषों ने अपने माता-पिता के प्रति आदर का भाव प्रदर्शित किया है। आज आवश्यकता है कि हम उनके आचरणों को अपने जीवन में उतारें।
सितम्बर २०१२
पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि आप अपने माता-पिता के प्रति आदर का भाव रखें, बड़ों के प्रति विनय का भाव एवं छोटों के प्रति वात्सल्य का भाव धारण करें, आप पाएंगे कि आप का परिवार एक मन्दिर ही है। आप अपने माता-पिता के प्रति जैसा व्यवहार करेंगे वैसा ही व्यवहार आपकी संतान आपके साथ करेगी यदि आप अपने संतान से योग्य व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं तो आपको भी अपने माता-पिता के प्रति योग्य व्यवहार करना ही होगा। आज पाश्चात्त्य संस्कृति के अनुकरण करने के कारण हमारे संस्कार विकृत हो गये हैं संयुक्त परिवार का लोप हो रहा है और एकल परिवार की वृद्धि होती जा रही है, जो क्लेश का कारण है। पति-पत्नी आपस में बातें करें तो पड़ोसी के कान में वह बात नहीं जानी चाहिए। यदि पड़ोसी के कान में बात गई तो समझ लीजिए की घर में शान्ति नहीं रहेगी। सहनशीलता, धैर्य, समता आदि के द्वारा आप अपने परिवार को शान्ति प्रदान करें और मानव जीवन सफल करें, यही मेरी मंगल कामना है।
हे प्रवचन पुरुष, परिवार हमारे तूट चूके है द्वेष भाव से उब चुके है, दिल के मोती फूट चूके है
विषय: परिवार को प्रेम का मंदिर बनाये
कैसे पाऊं घर में मंदिर, सारी दूनिया को ढूँढ चूके है प्रवचन पथ पर तेरा प्रेम और तेरी बानी लूट चूके है
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कैसे पाएँ घर में चैन, एक दूजे से रूठ चूके है गुरुदर, हम कैसे बताए, हम अपने से ही लूट चूके है घर से बेघर हो चुके है, मंदिर की राहे ढूँढ चूके है