Book Title: Shrutsagar Ank 040
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राणातिपात मृषावाद अदत्तादान संयम अभिलाषा हीरेन जयंतीलाल महेता (राग - हरिगीत छंद) डगले अने पगले सतत हिंसा मने करवी पडे ते धन्य छ जेने अहिंसापूर्ण जीवन सांपडे क्यारे थशे करुणाझरणथी आर्द्र मारुं आंगणुं आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बर्नु! ।।१।। क्यारेक भय क्यारेक लालच चित्तने एवा नडे व्यवहारमा व्यापारमा जूटुं तरत कहेवू पडे E. छे सत्यमहाव्रतधर श्रमण- जीवनघर रळियामj आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनें! ||२|| जे मालिके आप्या वगरनुं तणखलुं पण ले नहि वंदन हजारो वार हो ते श्रमणने पळपळ महीं हुं तो अदत्तादान माटे गाम परगामे भमुं आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनें! ||३|| जे इन्द्रियोने जीवननी क्षण एक पण सोंपाय ना मुज आयऱ्या आयुं वीत्युं ते इन्द्रियोना साथमा लागे हवे श्री स्थूलभद्रतणुं स्मरण सोहामणुं आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनें! ।।४।। नवविध परिग्रह जिंदगीभर हुं जमा करतो रह्यो धन लालसामां सर्वभक्षी मरणने भूली गयो मूर्छारहित संतोषमा सुख छे खरेखर जीवनआ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनें! ।।५।। अबजो वरसनी साधनानो क्षय करे जे क्षणमहीं जे नरकनो अनुभव करावे स्व परने अहि ने अहीं ते क्रोधथी बनी मुक्त समतायुक्त हुं क्यारे बचें आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनें! ।।६।। मैथुन परिग्रह For Private and Personal Use Only

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