Book Title: Shrutsagar Ank 040
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० मई - २०१४ कहेतुं छे. व्यतिरेकमां उत्कर्ष होवो जोईए अर्थात् अपकर्ष नहि एम कोई शंका करे तो ते योग्य नथी, केमके "हनुमदा...सितीकृतः५.... इत्यादिमां अपकर्षमां पण 'व्यतिरेक अलंकार जोवाय छे. आ वात अमे अलंकारचूडामणिनी वृत्तिमा चर्ची छे. आम जे अलंकारचूडामणिनी वृत्तिनो अने एमां आलेखायेली बाबतनो जेम प्रतिमाशतकनी स्वोपज्ञ वृत्तिमा उल्लेख छ तेम यशोविजयगणिनी अन्य कोई कृतिमा छे? जो होय तो ते ते उल्लेख एकत्रित करवा घटे. प्रतिमाशतकना नवमा श्लोकने अंगे जेम अलंकारनो उल्लेख छ तेम एना बीजा पण केटलाक श्लोक माटे एनी स्वोपज्ञ वृत्तिमा उल्लेख छे. एना आधारे वकील मुलचंद नथुभाईए प्रतिमाशतकना अने एना उपरनी भावप्रभसूरिकृत लघुवृत्तिना भाषांतरमां के जे भीमशी माणेके वि. सं. १९५९ मां मूळ सहित प्रकाशित कर्यु छे तेमां नोंध लीधी छे. आ बाबत हुं नीचे मुजब रजू करूं छु - श्लोकांक | स्वोपज्ञ वृत्ति भाषांतर अलंकार (पत्रांक)। (पृष्ठांक) उत्प्रेक्षा अने उपमा स्वरूपोत्प्रेक्षा १६-१७ रूपकगर्भ अतिशयोक्ति अने असंबंधमां संबंधरूप अतिशयोक्ति काव्यलिंगथी उद्भवती अतिशयोक्ति उपमा व्यतिरेक गर्भित आक्षेप विनोक्ति, रूपक अने काव्यलिंग अने ए त्रणथी उदभवतो संकर ११ १. आनो अर्थ ए छे के हनुमान वगेरेए दूतनो मार्ग यश वडे श्वेत बनाव्यो छे. ज्यारे में (नळे) तो ए कार्य दुश्मनोना हास्य वडे कर्यु छे एटले के हुं दुश्मनोनो हांसीपात्र बन्यो छु. For Private and Personal Use Only

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