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श्रुतसागर ४०
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महाराज ने गुणपर्यायवद् द्रव्यम् लक्षण बताया है. द्रव्य गुण और पर्याय युक्त है, इसका विवेचन जैनदर्शन में विस्तारपूर्वक मिलता है. सामान्य जनों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पूज्यश्री ने मात्र गुजराती विवेचन को २ भागों में प्रकाशित कराकर बड़ा ही उपकार किया है.
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गुजराती रासों में और विशेषरूप से जैन विद्वानों द्वारा रचित रासों में द्रव्यगुणपर्याय रास का स्थान सर्वोपरि है. इस रास में वर्णित विषयों को समझना सर्वसामान्य के लिए दुर्गम कार्य जैसा रहा है. सर्व सामान्य के लिए यह रास सुलभ हो सके, इस हेतु से जैन तत्त्वज्ञान के मर्मज्ञ विद्वान पूज्य पंन्यास श्री यशोविजयजी ने संस्कृत एवं गुजराती में विवेचना लिखी है. विवेचनकार ने बड़ी ही सूक्ष्मतापूर्वक इस विषय को निरूपित किया है कि सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के पश्चात् परद्रव्य गुण पर्याय का कर्तृत्व भोक्तृत्व भाव समाप्त होता है और शुद्ध स्वात्मद्रव्य गुण पर्याय का कर्तृत्व भोक्तृत्व परिणाम प्रतिष्ठित होता है. पूज्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज की मूल भावना को संरक्षित करते हुए पूज्य पंन्यासश्रीजी ने इस कृति की सविस्तार विवेचना करके विद्वानों एवं जन सामान्य के लिए सुलभ कर दिया है.
प्रस्तुत प्रकाशन अब तक के सारे प्रकाशनों से काफी ज्यादा विस्तृत आकृति वाले इस प्रकाशन में मूल संदर्भों की गहराई तक जाकर विश्लेषण किया गया है. आत्मार्थियों हेतु प्रत्येक गाथा का अलग से आध्यात्मिक उपनय प्रस्तुत किया गया है, जिसे अलग से दो भागों में प्रकाशित किया गया है. सामान्यतः संस्कृत, प्राकृत की मूल कृतियों का गुजराती, हिन्दी आदि देशी भाषाओं में अनुवाद, विवेचन किया जाता है, किन्तु प्रस्तुत विवेचन एक दुर्लभतम घटना के रूप में परिलक्षित होता है. मारुगुर्जर मूल व टबार्थ का संस्कृत पद्यानुवाद और संस्कृत टीकानुवाद द्वारा विवेचन की दुनिया में एक नया प्रयोग स्थापित किया गया है.
द्रव्यानुयोग सबसे जटिल विषय माना जाता है. विश्व के गहनतम रहस्यों को इस माध्यम से ही जाना जा सकता है. इस विषय को समझने के लिए अनेक दर्शनों में विस्तृत विवेचन उपलब्ध हैं. उन्हीं जटिलतम विषयों को समझाने हेतु द्रव्यगुणपर्याय रास की रचना की गई. इस कृति का भी कुछ अंश इतना जटिल था कि प्रायः इसके पूर्व कोई उस अंश के रहस्य को योग्यरूप से समझा नहीं पाया था, उन अंशों को भी पूज्य पंन्यासश्रीजी ने विस्तृत रूप से समझाया है. पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है, आवरण भी कृति के
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