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पुस्तक समीक्षा
डॉ. हेमन्त कुमार • पुस्तक नाम : द्रव्य गुण पर्यायनो रास * कर्ता :
महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज * संपादक व विवेचक : पंन्यास श्री यशोविजयजी महाराज * भाषा:
संस्कृत, मारुगुर्जर एवं गुजराती * प्रकाशक :
श्री श्रेयस्कर अंधेरी गुजराती जैन संघ, मुंबई * प्रकाशन वर्ष : वि. सं. २०६९, आवृत्ति : प्रथम, भाग : ७ • कुल पृष्ठ : ४१४+४६२+४६१+९०५+३३०+४२६+ ५०८=३५०६ * मूल्य:
५०००/- (सेट की कीमत) महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज द्वारा रचित द्रव्य गुण पर्याय रास का विद्वद्वर्य पंन्यास श्री यशोविजयजी ने संस्कृत भाषाबद्ध पद्यानुवाद एवं गद्य में बृहत् विवेचन लिखकर जहाँ एक ओर प्रबुद्धजनों को द्रव्यानुयोग को समझने में मार्ग प्रशस्त किया है, वहीं दूसरी ओर गुजराती भाषा में विस्तृत विवेचन लिखकर सामान्य जनों को भी संतोष प्रदान करने का भरपूर प्रयास किया है.
मूल कृति एवं टबार्थ के पाठ को शुद्ध संपादित करने हेतु विद्वान संपादक पूज्यश्रीने ३६ हस्तप्रतों एवं अनेक प्रकाशित ग्रंथों का आधार लिया है. किसी कृति के पाठ का संशोधन इतने हस्तप्रतों और प्रकाशित पुस्तकों के आधार पर करना अपने आप में एक बहुत ही श्रम, समय एवं धैर्य का कार्य है फिर भी पंन्यासश्री ने इस कार्य को बहुत ही सुन्दर रूप से प्रस्तुत किया है. पाठान्तरों को पादटिप्पण में देकर संशोधकों का मार्ग प्रशस्त किया है. अनेक प्रकार के परिशिष्टों के साथ अन्य कई महत्त्वपूर्ण सूचनाओं का संकलन कर प्रकाशन को बहुत ही उपयोगी बना दिया है.
३८४ गाथा एवं १७ ढाल युक्त यह कृति ७ भागों में प्रकाशित की गई है, यही द्योतक है कि इसकी विवेचना कितनी विस्तृत एवं ज्ञानोपयोगी है. द्रव्य, गुण और प्रर्याय इन तीनों की सूक्ष्मरुप से विवेचना जैन दर्शन में ही मिलती है. जैनेतर भारतीय दर्शनों में पर्याय जैसे किसी शब्द का प्रयोग नहीं मिलता है. वहाँ केवल द्रव्य, गुण एव क्रिया इन्हीं शब्दों की व्याख्या मिलती है. तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वातिजी
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