Book Title: Shrutsagar Ank 040
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१६
10 lle
Velle
लोभ
102
कलह
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिनधर्मतरुना मूल जेवा विनयगुणने जे हणे
जे भलभला ऊंचे चडेलाने य तरणा सम गणे ते दुष्ट मान सुभटनी सामे बळ बने मुज वामणुं आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनुं ! ।।७।।
श्री मल्लिनाथ जिनेन्द्रने जेणे बनाव्या स्त्री अने संक्लेशनी जालिम अगनमां जे धखावे जगतने ते दंभ छोडी सरळताने पामवा हुं थनगनुं
आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनुं ! ||८||
जेनुं महासाम्राज्य एकेन्द्रिय सुधी विलसी रह्युं जेने बनी परवश जगत आ दुःखमां कणसी रह्यं जे पापनो छे बाप ते धन लोभ में पोष्यो घणुं आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनुं ! ।।९।।
मई २०१४
·
तन धन स्वजन जीवन उपर में खूब राख्यो राग पण ते रागथी करवुं पड्युं मारे घणा भवमां भ्रमण मारे हवे करवुं हृदयमां स्थान शासनरागनुं
आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनुं ! ||१०||
For Private and Personal Use Only
में द्वेष राख्यो दुःख उपर तो सुख भने छोडी गयुं सुख दुःख पर समभाव राख्यो, तो हृदयने सुख थयुं समजाय छे मुजने हवे, छे द्वेष कारण दुःखनुं आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनुं ! ||११|| जे स्वजन तन धन उपरनी ममता तजी समता धरे बस, बारमो होय चन्द्रमा तेने कलह साथे खरे जिनवचनथी मघमघ थजो मुज आत्मना अणुए अणु आ पापमय संसार छोडी श्रमण हुं क्यारे बनुं ! ||१२||

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36