Book Title: Shrutsagar 2019 04 Volume 05 Issue 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR April-2019 संपादकीय रामप्रकाश झा श्रुतसागर के प्रस्तुत अंक में 'गुरुवाणी; शीर्षक के अन्तर्गत योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के द्वारा रचित “नवपद गीत" प्रस्तुत किया जा रहा है। इस कृति में नवपद की महिमा का वर्णन किया गया है। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से क्रमबद्ध श्रेणी के अंतर्गत संकलित किया गया है, जिसके अन्तर्गत जीवनोपयोगी प्रसंगों का विवेचन किया गया है। “ज्ञानसागरना तीरे तीरे” नामक तृतीय लेख में डॉ.कुमारपाल देसाई के द्वारा आचार्यदेव श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. के जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व का परिचय प्रस्तुत किया गया है। इस लेख को आगामी अंकों में भी शृंखलाबद्ध रूप से प्रकाशित किया जाएगा। अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित राजरत्नगणिकृत दो अप्रकाशित कृतियाँ “चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय तथा आर्य महागिरि सज्झाय” प्रकाशित की जा रही है। प्रथम कृति में करकंडु आदि चार प्रत्येकबुद्ध के जीवनवृत्तान्त का सुन्दर वर्णन किया गया है तथा द्वितीय ऐतिहासिक कृति में आर्य महागिरि की निर्दोष आहारचर्या का विशेष रूप से परिचय दिया गया है। पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत इस अंक में बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक८१,अंक-३ में प्रकाशित “गुजराती बोलीमां विवृत अने संवृत ए-ओ” नामक लेख प्रकाशित किया जा रहा है। इसके लेखक श्री चुनीलाल वर्धमान शाह ने इस लेख में सत्रहवीं सदी तथा उसके पूर्व की गुजराती बोली में हुए परिवर्तनों का वर्णन किया गया है। पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत पंन्यास श्री सम्यग्दर्शनविजयजी गणि द्वारा सम्पादित श्री दानप्रकाश सभाषान्तर' पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है, श्री कनककुशल गणि द्वारा रचित दानप्रकाश को श्री हीरालाल हंसराज ने गुजराती अनुवाद के साथ लगभग सौ वर्ष पूर्व प्रकाशित किया था। जिसका पुनः सम्पादन किया गया है। इसमें दान के आठ प्रकारों का दृष्टान्तों के साथ वर्णन किया गया है। इस अंक में “श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर का योगदान” नामक शीर्षक के अन्तर्गत यहाँ संगृहीत व संकलित सूचनाओं का उल्लेख करते हुए यहाँ की विविध प्रवृत्तियों के ऊपर प्रकाश डाला गया है। जो विद्वानों के संशोधनसम्पादन से सम्बन्धित कार्य में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे। For Private and Personal Use Only

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