Book Title: Shrutsagar 2019 04 Volume 05 Issue 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 27 April-2019 बोलीमां कहइ' कहि' किहि केह' कहे कहै, केहे ए बधानी वच्चे जे कांइ प्रयत्नभेद होय ते केवो हशे ते कहेवानुं आपणी पासे साधन नथी । पंदरमी सदीनी कवितामां गयउ^(गयो) त्रण लघुने स्थाने वपरायलो, तेमज हतउ + ए लघु-गुरू (हतो) एम बे श्रुतिओने स्थाने वपरायेलो जोवामां आवे छे। अत्यारे गुजराती बोलीमां गयों अने हतों ए बेउमां छेल्ला ऑ अर्धविवृत्त छे, ते जोतां गयउ (गयौ) अने हतंउ (हतौ) एवा उच्चारो स्वाभाविक मनाय; परंतु छंदोमानमां त्रण लघुनां उच्चारण करवा माटे गयउ उच्चारण ज बंध बेसे छे । उच्चारण विषेनी आटली माहिती आपणे मात्र छंदोबद्ध कविताने आधारे ज तारवी शकीए छीए, अने कवितामां लघु-गुरू तथा उच्चारणादिनी छूट लेवाती होय ज, एटले गद्य बोली उच्चारणमां केवी हशे तेनो निर्णय करवानां आपणी पासे कांइ निश्चयात्मक साधनो नथी । मात्र ते वखते विवृत उच्चार नहोतो एम मानवानुं साधन एटलुं छे के प्राकृत अपभ्रंशनां स्वरयुग्मो अइ-अउ मांना अ उपरना प्रयत्ननो त्यारपछी संकोच थयो अने लेखनमां कहइ नुं किहि तथा कहि अने बइठा नुं बिठा* रूप प्रचलित थयुं, जे संवृततानुं सूचन करे छे। । महाप्राण ह ने संवृत-निवृत ए ओ मळेला होय छे अने उच्चारमां इ नो सर्वथा किंवा विकल्पे लोप थाय छे, त्यारे ए संवृत-विवृत ए-ओ तेनी पूर्वना व्यंजननी साथे मळी जाय छे । पहिलुं –प्हइलुं –प्हॅलुं – पॅ’लुं - - - (सं० गृहतकः) घयलउ-घइलउ - चॅलों * मुखडुं - मुहडुं - म्हउडुं – म्हॉडुं - मॉढुं महोटुं – म्होटुं - मोटुं (३) एक ज काळना अने एक ज लेखकनां लखाणोनी जोडणीमां एक ज शब्दनां जूदां जूदां स्वरुपो जोवामां आवे छे, ते उपरथी बे अनुमान थइ शके छेः एक अनुमान ए के लेखननी शुद्धि माटे पूरती काळजी राखवामां नहि आवती होय; बीजुं ए के उच्चारण तथा प्रयत्न विषयक विकल्पो एटला बधा हशे के अमुक शब्दनुं शुद्ध उच्चारण कयुं अने तेना लेखननुं शुद्ध स्वरूप कयुं ते सामान्य प्रकारना लेखको के कविओ निश्चित करी १. मुंज कहइ मणालवइ (प्रबंधचिंतामणि - पंदरमी सदी), २. राय कहि सुत हूया गुणी (गुणमेरूकृत पंचोपाख्यान-१६मी सदी), ३. वलता नारद इम किहि (विष्णदासनं सभापर्व-१७मी सदी), ४. प्रसाद पुरी तारो कनैयो सुतो (नरसिंह महेतानी हारमाळा-पद ४४, १६मी सदी), ५. गयउ गेहिसु कीचक नीच थि..... पसरि पइसई केतकिई हतउ (शालिसूरिनुं विराट पर्व - पंदरमी सदी) * गंगानि उपकण्ठि बिठा ये (हरिदासनं आदिपर्व -सत्तरमी सदी) * जूनी गुजराती कवितमां गेहेलो-घेहेलो एवी जोडणी पण मळे छे. For Private and Personal Use Only

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