Book Title: Shrutsagar 2019 04 Volume 05 Issue 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28 श्रुतसागर अप्रैल-२०१९ शकता नहि होय, एटले छंदोमान के ढाळना मेळने माटे एक ज शब्दना मनफावता पृथक्-पृथक् उच्चारणो स्वीकारी तेने अनुरूप जोडणी राखी लीधी हशे। विक्रमनी १७मी सदीना हरिदासनी नीचेनी चार पंक्तिओ ए स्थितिनुं दर्शन करावे छेः मन्दिर मध्य ऊभा रह्या ऋषिनि करी प्रणाम; आप्यूं आसन एकला, पछि बिठा एकि ठामि. देवयानी दुःख धरती, आवि आणि ठाम्य; प्रतिज्ञा नवि रही कुलनी, चूक्या एणि ठाम्य. हरिदासर्नु लेखन कांइ खास अशुद्ध शैली- नथी, छतां ठामि नो अनुप्रास प्रणाम साथे मेळव्यो छे, ते उपरथी एम लागे छे के ठामि नो उच्चार ठाम (आंखमांना लघु प्रयत्न य कारना जेवो) करवानो तेनो इरादो हशे, अने ते माटे तेणे ह्रस्व इ वापर्यो हशे । बीजे स्थळे तेणे ठाम्य चोक्खो लख्यो छे. वस्तुतः तेणे साधित शब्दोमां जे ह्रस्व इ वापर्यो छे ते अइ नुं संकुचित रूप छे अने तेनो उच्चार ए कार जेवो संभवे छे, ते आ प्रमाणे: मन्दिर मध्य ऊभा रह्या, ऋषिने करी प्रणाम, आप्यूं आसन एकला, पछे बेठा एके ठाम. देवयानी दुःख धरती, आवे आणे ठाम्य, प्रतिज्ञा नवि रही कुळनी, चूक्या एणे ठाम्य. आ प्रमाणे इ कारनो उच्चार साधित शब्दोमां ए कार संभवे छे, छतां नवि मां ह्रस्व इ कार कांतो शुद्ध वापर्यो होय, किंवा लघु प्रयत्न यकार माटे-नव्य एवा उच्चारण माटे वापर्यो होय, जेम ठामि शब्दमां पण करवामां आव्यु छ। लेखन, उच्चारण अने प्रयत्नमां विकल्पो तेमज अराजकता ए काळे केवां हशे तेनो आ उपरथी ख्याल आवे छ। भाषाना उच्चारणनी स्थिरता माटे विक्रमनुं १७मुं शतक मंथनकाळ रूप हतुं एम जोई शकाय छे। (क्रमशः) बुद्धिप्रकाश, पुस्तक ८२, अंक १मांथी साभार For Private and Personal Use Only

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