Book Title: Shrutsagar 2019 04 Volume 05 Issue 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org मयूर-मऊर-मोर गौरकम्-गर्डरअं-गोरूं मोक्तिकं मउत्तियं-मोती 26 (सं० ननान्दापति) नणंदवइ-नणंदउइ नणंदो संवृत- विवृतनां सूचक उदाहरण | मधुर-महुर- म्हउर- म्हॉर (मॉर) गौरव - गउरव-गॉरव मुखवर्तिकं-मुहवचट्टियंम्ह॑उटिय॑म्हॉतियुं (मोतियुं) गौडीय - गउडी - गॉडिया गौरी-गउरी-गोरी चतुर्वत्मकम्-चऊवदृउं-चौटुं चौटुं-चउवचट-चॉवट चतुर्वेदी-चऊवेइ-चौवे-चॉबो चतुर्विंश - चंउवीस-चटॉवीस कहर-कयर-कइर-कॅर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नगर-नयर-नइर-नेर यत्-जत-जअं-जे जय-जइ-जॅ अइ-अउ अने अइ-अउ एवा प्रयत्नभेदने आधारे विवृत-संवृत ए-ओ नो सामान्य नियम वर्ततो होवा छतां प्रांतभेद, बोलीभेद अने तेने परिणामे उच्चारमां प्रयत्ननो भेद वर्ततो होवाने कारणे जुदा जुदा शब्दोना विवृत-संवृत उच्चारोमां पण भेद जोवामां आवे छे। विक्रमनी सत्तरमी सदी पछी विवृत उच्चार प्रचारमां आव्यो अने ते पूर्वे बहुधा संवृत उच्चार होय एम जूनां हस्तलिखित काव्योनी जोडणी उपरथी अनुमान करी शकाय छे। अनुमान एटला माटे के ए जोडणीमां एटला बधा विकल्पो जोवामां आवे छे अने कवितामां बेसाडेला प्रासो ए लखाण उपरथी एवा चित्र-विचित्र जणाय छे के ते काळमां वस्तुतः केवा उच्चारो थता हशे अने चोक्कस स्वरयुग्मोमा कया स्वर उपरना प्रयत्नथी केवो उच्चार करातो हशे ते निश्चितरूपे कहेवुं मुश्केल थइ पडे छे । अप्रैल-२०१९ सं० कथति नुं कहइ, कहि, किहि, केह, कहे, केहे एटलां रूप सत्तरमी सदी सुधीमां मळे छे । कहँ उच्चार सत्तरमी सदीमां प्रचारमां आव्यो, ते पूर्वे तेनो संवृत उच्चार हतो। कहइ नो राजस्थानीमां तथा व्रजभाषामां कहै उच्चार थयो ते साथे ज गुजरातीमां कहॅ थयो होय एम जोइ शकाय छे। आ मात्र जूनी लखाणनी भाषा उपरथी; वास्तविक For Private and Personal Use Only +हिंदीमां ए ज रीते बहिणीपति- बहनउइ-बहिनोइ-ब्हनोइ थाय छे, परन्तु गुजरातीमां पति-वइ-उइ न थतां वइनुं वी थवाथी ब्ह्रेवी रूप थयुं छे, जेमके गढपति-गढ़वइ- गढवी ( तडवी - संघवी ई0) एक शब्दना बे जूदां जूदां रूपो प्रचलित थयां होवानुं उदाहरण पण आने कही शकाय .

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