Book Title: Shrutsagar 2019 04 Volume 05 Issue 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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April-2019
प्रत्येक... ॥६॥
प्रत्येक... ॥७॥
प्रत्येक... ॥८॥
प्रत्येक...॥९॥
प्रत्येक... ॥१०॥
प्रत्येक... ॥११॥
SHRUTSAGAR
___17 मुगट प्रभावई एकदा, जीतुं चंडप्रद्योत रे। निवड बंधन करी बांधीउ, जिम रवि उदइं खद्योत रे दिन केते नृप मोकलिउ, समुहुतु निज ठामो रे। मदनमंजरी निज कन्यका, परण्याविउ अभिराम रे दुमुह राजा राज भोगवइ, एक दिनि नगर मझारि रे। इंद्रध्वज उच्छव मांडीउ, जोई नरवर नारि रे थंभ एक सिणगारिउ, बहु चित्राम विचित्रो रे। उंचउ चिहुं दिसि दीपतु, बाजइ विविध वाजित्रो रे याचक जन जय जय करइ, नाचइ नवला पात्र रे। अगर चंदन अति महिमहइ, आवइ सहू तस यात्र रे राजाइं घणुं रे प्रसंसीउ, आपइ करह केकाण२३ रे । सात दिवस उछव करी, सहु पुहुतुं निज ठाण रे केतु काल अतीक्रमइ, हय चढी नरपति जाय रे । मारग वचि मलमूत्रमां, माणस ठेलइ पाय रे थंभ देखी नृप चीतवइ, धिग धिग अथिर संसारो रे। कारिमी सोभा देहनी, पर पुदगलिई हुइ सार रे कारिमुंरूप संसारमई, मत करुं गरव लगार रे। विणसंता रे वेला नही, जोउ सनतकुमार रे वयराग एणी परिइं आवीउ, रिद्धि त्यजी तृण जेम रे। वेस दीइ सासनदेवता, व्रत लीइ दुमुह सनीम रे सतरभेद संयम धरइ, सहइ परीसह धीर रे। उग्र क्रिया तप जप करइ, दुरित-दावानल-नीर रे जाती समरण पांमीउं, अनुक्रमि केवलज्ञान रे। सुर नर सेव करइ घणी, रिषिजी लहइ निरवाण रे एह नामइं सुख संपदा, एहथी अरथ भंडार रे। तरण-तारण समरथ कह्या, जिनशाससन शिणगार रे २१. आगीयो, २२. मुहूर्त सहित, २३. कयकान प्रदेशना घोडा,
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