Book Title: Shrutsagar 2019 04 Volume 05 Issue 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
अप्रैल-२०१९ एकइं समइ ए च्यारिनइं मन..., जन्म दीक्षा वली ज्ञान साधु...। मुगति गया एकइं समइ मन..., जेह भणी च्यारिनुं मान साधु... ॥८॥ प्रत्येकबुद्ध घणा हूआ मन..., वीतरागना शिष्य साधु...। ते सवि कहिनई वंदना मन..., सहिसगमे जे दख्य साधु... ॥९॥ साधु तणा गुण गाइतां मन..., हुइ परमानंद साधु...। मनवांछित फल पांमीइ मन..., भाजइ सघलु दंद३ साधु... ॥१०॥ उत्तराध्ययननी वृत्तिमां मन..., एह तणा संबंध साधु...। ते वांची निज चित्ति धरी मन.., कीधउ सज्झाय बंध साधु... ॥११॥ नाम जपंता साधुनां मन.., पातक जाइ दूरि साधु...। राजरत्न पाठक ऊलटइ मन..., गुण गाइ आनंद पूरि साधु... ॥१२॥
॥इति च्यार प्रत्येकबुद्धि रिषि सज्झाय समाप्ता ॥छ।। उपाध्याय राजरत्नगणिकृता शिष्य-प्रशिष्यवाच्यमानाश्चिरं जयंतु ॥ इति भद्रम् ॥ श्रीश्रमण संघस्य कल्याणमस्तु ॥छ ॥श्रीः ॥
श्रीमहागिरिसूरि सज्झाय
॥१॥
॥राग-वयराडी॥ श्रीथूलिभद्रसूरि पटोधरू, दस पूरवधर धीर रे। महागिरि सुहस्ति दोई गणधरू, करम-महामल-नीर रे महागिरिसूरि मुझ मनि वस्यउ, उपशमरस भंडार रे। जिन कलपीनी तुलना करइ, जांणी शुद्ध आचार रे महा...(आंचली)॥२॥ सुहस्तिसूरि गुरुभाईनइं, सुंपी गछनु भार रे। आठमु पाट तेह भोगवइ, पालइ मुनि-परिवार रे उग्र क्रिया मुनि आदरइ, जाणी जिननु विछेद रे। उज्झित ४ भात लेइ सूझतु, ए मोटु तप-भेद रे गछ-नेष्टाइं५ वनमांहिं रहइ, महागिरिसूरि गुरुराय रे। अनुक्रमि पाडलपुरि ६ गया, विहरता दोई गुरुभाय रे
महा... ॥५॥ ४१. कोईने, ४२. हजारो, ४३. द्वंद, ४४. भूखो (?), ४५. गच्छनो त्याग करी (?), ४६. पाटलीपुत्र,
महा... ॥३॥
महा ... ॥४॥
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