Book Title: Shrutsagar 2017 01 Volume 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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जनवरी-२०१७
॥३०॥ यादव०
॥३१॥ यादव०
॥३२॥ यादव०
॥३३॥ यादव०
॥३४॥
॥३५॥
श्रुतसागर
इम विलवंती रायमइं रे, विरह-विरूपित-अंग। नेमि नेमि जपंतडी रे, पुहुती रैवत संग नेमि जिणेसर रायमइं रे, लीधो संयमभार । तप तपि केवलसिरि वरी रे, पुहुता मुगति मझार सोई जिणेसर भेटवा रे, अलजो तिहिं सुरंग। जिम भेटिइं रवि पदमिनी रे, वाधइ प्रेम प्रसंग जनमि जनमि हम ताहरी रे, होयो किंकर दास । समुद्रविजयसुत नेमिजी रे, पूरो वंछित आस
॥ ढाल॥ प्रणमुं हिवय सुपास, पूरइ जगजन-आस। वासव संथूण्यो ए, ग(गु)णिअणमां गुण्यो ए सत्तम जिन ए धाम, जीपइ सुरपति धाम। उन्नत सेहरु ए, जीतइ मंदरू ए डावइ पासइ वीर, मंदरगिरि परि धीर। मोहन मूरती ए, सोभन सूरती ए रंगमंडप चित्रसाल, कोरणि(णी) पूतलि-माल । जाणे योवती ए, सुरपति-योवती ए खेला खेलइ सार, नव नव वेष उदार। सुरवर झगमग्या ए, जीवा टगमग्या ए नाटक करय रसाल, ललि ललि नामइं भाल। श्रीभगवंतनइ ए, सुख करई संनत(तन)इ ए दिन दिन पूजा रंग, उच्छव थाय अभंग। सब जन हरखिया ए, नयने निरखिया ए सपइठ खि(क्षि)तिपति तात, पुहवी राणी मात । स्वस्तिक लंछनु ए, सोवनवन तनु ए मूरति मोहनवेलि, वाधई मंगल-रेलि। सहजइ सुंदरू ए, मानव मनहरू ए
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॥४२॥
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