Book Title: Shrutsagar 2017 01 Volume 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 26 January-2017 1 4 प्रथम शती ई.स.पू. में रचित नन्दीसूत्र में, आर्यरक्षित सूरि की वन्दना की गयी है। इन्होंने न केवल चारित्र रूपी सर्वस्व की रक्षा की थी, वल्कि रत्नों की पेटी के सदृश अनुयोग की भी रक्षा की थी । दशपुर इनके जन्म से ही नहीं महत्त्वपूर्ण योगदान से भी संबद्ध रहा है।' दशवैकालिकसूत्र, आवश्यकचूर्णि, उत्तराध्ययनसूत्र, नन्दीसूत्र और विवधतीर्थकल्प आदि में इनके आख्यान आते है।' आर्यरक्षितसूरि, सोमदेव और रूद्रसोमा के पुत्र थे । जो दशों दिशाओं के सारभूत दशपुर में रहते थे । अल्गुरक्षित इनका अनुज था। उच्चशिक्षा प्राप्त करके जब ये पाटलिपुत्र से दशपुर लौटे तब स्वयं राजा ने इनकी अगवानी की थी। माता के कहने पर ये दृष्टिवाद का अध्ययन करने आचार्य तोसलीपुत्र के पास फिर ये उज्जयिनी में वज्रस्वामी के पास आये, और वहाँ से यथासंभव ज्ञानार्जन करके वज्रस्वामी से अध्ययन करने लगे। एक बार अल्गुरक्षित की माता ने इन्हें लेने के लिए भेजा। आर्यरक्षित ने उसे भी दीक्षित कर विद्याध्ययन कराया । एक दिन उन्होंने गुरू से पूछा कि मैंने दशम पूर्व की यविकायें तो पढ़ लीं अब कितना अध्ययन और शेष है? गुरू ने उत्तर दिया, कि अभी तो तुम मेरू के सरसों और समुद्र की बूंद के बराबर ही पढ़ सके हो।' कुछ समय तक और अध्ययन करके वे दशपुर आये और वहाँ उन्होंने अपने सभी स्वजनों को दीक्षित किया। इसके पश्चात् मथुरा आदि का भ्रमण 6 8 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 वंदामि अज्जरक्खिय खवणे रक्खियचारित सव्वस्से । रयण-करंडग-भूओ, अणुओगो रक्खिओ गोहं॥ -नन्दीसूत्र (लुधियाना, १९६६) गाथा-३२ 2 विस्तृत विवरण के लिए देखिए, अभिधान राजेन्द्र कोष में 'अज्जरक्खिय' शब्द (आगे के उद्धरण वहाँ से लिए गये हैं। 3 देखिए, श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ में श्री मदनलाल जोशी का लेख, पृ. ४५२ और आगे । 4 आस्तेपुरं दशपुरं सारं दशदिशामिव । सोमदेवो द्विजस्तत्र रूद्रसोमा च तत्प्रिया ॥ - आवश्यककथा श्लोक १ । 5 चतुर्दशापि तत्रासौ विद्यास्थानान्यधीतवात्। अथागच्छद् दशपुरं राजागात् तस्य सम्मुखम् ॥ आवश्यककथा श्लोक ७७ । 6 सोम्यधाद् भ्रातरागच्छ व्रतार्थी तेजनोखिलः । स उच्चे सत्यमेतच्चेत् तत्वमादौ परिव्रज ॥ - आवश्यककथा श्लोक ११३ । 7 यविकैधूर्णितोऽप्राक्षीत्, शेषमस्य कियत् प्रभो। - स्वाम्यूचे सर्षपं मेरोर्बिन्दुमब्धेस्त्वमग्रहीः ॥ - आवश्यककथा श्लोक – ११४ । 8 इतश्च रक्षिताचार्यैर्गतैर्दशपुरं ततः। प्रव्राज्य स्वजनान् सर्वान् सौजन्यं प्रकटीकृतम् ॥ - आवश्यककथा श्लोक - १३६ । For Private and Personal Use Only

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