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SHRUTSAGAR
January-2017 संक्षिप्त इतिहास :
रामायण कालीन चन्द्रवंशी राजा रन्तिदेव की राजधानी दशपुर में थी। छठी शती ई. पू. के अवन्ति नरेश चण्डप्रद्योत का अधिकार भी दशपुर पर रहा है। मौर्य सम्राट अशोक जब अवन्ति महाजनपद का क्षत्रप था तब उसके पश्चिम प्रान्तीय शासन में दशपुर भी सम्मिलित रहा होना चाहिए। उसके पश्चात् यहाँ शुङ्ग और शक राजाओं का अधिकार रहा । प्रारम्भिक सात वाहनों ने नासिक, शूपरिक, भृगुकच्छ और प्रभास के साथ दशपुर को नष्ट-भ्रष्ट किया था। क्षहरात क्षत्रप, नहपान के शासनकाल में उसके दामाद उषवदास (ऋषभदत्त) ने गन साधारण के उपयोग की बहुत सी चीजें दशपुर लाकर अशोक की कीर्ति से प्रतिस्पर्धा की थी। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी दिग्विजय यात्रा में वर्मन् राजवंश को अपने आधीन करते उन्हें दशपुर का राज्यपाल नियुक्त किया था। विश्ववर्मन इन राज्यपालों में से एक था जो कुमार गुप्त प्रथम के शासनकाल में भी विद्यमान था। इसके पश्चात यहां वर्धन, मोरेवरी, मैत्रक और कलचुरी अदि शासकों ने शासन किया। जैनधर्म :
दशपुर में जैनधर्म का प्रचार प्राचीन काल से ही रहा है। उसकी गणना जैन तीर्थों में की गयी है और आज भी उसकी वन्दना की जाती है। छठी शती ईं.पू. 1 मेघदूत (पूर्वमेघ) श्लोक ४५ पर मल्लिनाथ की टीका। 2 आवश्यकसूत्र की वृत्ति आदि।। 3 ला, विमलचरण : हिस्टोरिकल जाग्रफी ऑफ एंश्येंट इण्डिया, पृ.२८१ 4 ला, विमलचरण : हिस्टोरिकल जाग्रफी ऑफ एंश्येंट इण्डिया, पृ.२५१ 5 इसके दो अभिलेख मिले हैं, देखिए : एपि. इंडिक जि. १२ पृ. ३१५, ३२१ जिल्द १४, पृ. ३७१ जे. ___ बी.आ.आर.एस. जिल्द २६ पृ. १२७ 6 विस्तार के लिए देखिए : विद्यालङ्कार, जयचन्द्रः इतिहास प्रवेश पृ. २५१ और आगे। 7 चम्पायां चन्द्रमुख्यां गजपुर मथुरापत्तने चोज्जयिन्यां
कोशाम्ब्यां कोशन्यायां कनकपुरवरे देवगिर्यां च काश्याम्। नासिक्ये राजगेहे, दशपुरनगरेभदिले, ताम्रलिप्त्यां श्रीमन्तीर्थंकराणां प्रतिदिवसमहं तत्र चैत्यानिवन्दे।
-- जैनतीर्थमालास्तोत्र। 8 उपर्युक्त स्तोत्र के रूप में जिसका पाठ आज भी प्रतिदिन विशेषतः श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज में किया
जाता है
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