Book Title: Shrutsagar 2017 01 Volume 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 28 January-2017 आसपास जो भी श्वेताम्बर और दिगम्बर जैन मन्दिर हैं उन मन्दिरों और मूर्तियों तथा खण्डहरों की खोज किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। सम्भव है उनमें कोई ऐसा लेख भी मिल जाय जिससे इस नगर के प्राचीन जैन इतिहास पर कुछ प्रकाश पड़ सके। सं. १६९८ (ई. १५६१) में इस नगर में साण्डेर गच्छ के ईश्वरसूरी ने ‘ललिताङ्गचरित' नामक रासो काव्य की रचना की थी। इसका महत्त्व साहित्यिक दृष्टि से ही नहीं, अपितु ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत है। 2 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस प्रकार दशपुर अर्थात् मन्दसोर में जैनधर्म का प्रचार प्रसार भगवान महावीर के समय से रहा सिद्ध होता है । वहाँ आज भी जैन समाज का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अभी वहाँ ७०० जैनों की बस्ती है । ६ उपाश्रय ४ धर्मशाला और आठ रंगसरगी विद्यमान है । 8403 1 नाहटा, अगरचंद : जैन साहित्य में दशपुर : दशपुर जनपद संस्कृति (सम्पादकः माँगीलाल मेहता; प्रकाशक प्राचार्य, बुनियादी प्रशिक्षण महाविद्यालयय, (मन्दसोर) पृ. १२०-२१। 2 'महि महति मालवदेस, धण कणय लच्छि निवेस । तई नयर मण्डव दुग्गं, अहिनवउ जाण हि सग्ग। तिहँ अतुलबल गुणवन्त, श्रीग्यास सुत जयवन्त ॥ समरथ सहस धीर, श्री पातसाह निसीर । तसु रज्जि सकल प्रधान, गुरु रूक रयण निधात । हिन्दुआ राय बजीर, श्रीपुंज मयणह धीर ॥ सिरिमाल वंश वयंश, मानिनी मानस हंस । सोनराय जीवन पुत्त, बहु पुत्त परिवार जुत्त ॥ सिरि मालिक माफरपट्टि, हय गय सुहड बहु चट्टि। दसपुरह नयर मझारि, सिरिसंघ तणई अधारि ॥ सिरि शान्तिसूरि सुपमाई, दुह दुरिय दूरि पलाई। जं किमवि अलियम सार, गुरु लहिय वर्ण विचार ॥ कवि कविउ ईश्वरसूरि, तं खमउ बहुगुण भूरि । शशि रसु विक्रम काल, ए चरिय रचिउ रसाल ॥ ध्रुव रविससि मेर, तं जयउ गच्छ संडेर ।'- प्रशस्ति For Private and Personal Use Only

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