Book Title: Shrutsagar 2017 01 Volume 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19 श्रुतसागर जनवरी-२०१७ द्वात्रिंशिका की हस्तलिखित प्रति की उपलब्धता पूज्य गच्छाधिपति गुरुदेव श्री जिनमणिप्रभसूरिजी महाराज की आज्ञा से श्री जिनहरिसागरसूरि ज्ञानभंडार, पालीताना से प्राप्त हुई है। यह कृति उपरोक्त भंडार में प्रति संख्या ९६२ पर अवस्थित है। सुंदर एवं सुदीर्घ अक्षरों में यह कृति पांच पन्नों की है। उत्तम स्थिति में संरक्षित प्रति के हर पन्ने में सात पंक्तियाँ और हर पंक्ति में इक्कीस अक्षर लिखे गये हैं। लेखन में पाठक की सुविधा हेतु रक्त वर्णीय मसि का उपयोग भी किया गया है। साथ ही उदात्त स्वरचिह्न की तरह निशानी लगाकर शब्दों का ग्रहण भी सुनियोजित किया गया है। प्रति की लेखन पुष्पिका अलिखित है फिर भी लेखन समय उन्नीसवीं शताब्दी का माना जा सकता है। हितशिक्षा द्वात्रिंशिका श्री ऋषभदेवजी स्तुतिः सवैया ३२ सर्व लघु वर्णैः युक्त सकल विमल गुण कलित ललित तन मदन महिम वन दहन दहन सम। अमित सुमति पति दलित दुरित मति, निशित विरति रति रमन दमन दम। सघन विघन घन हरण मधुर धुनि धरण धरणि तल, अमल असम शम। जयतु जगतिपति ऋषभ ऋषभगति कनक वरण दुति परम परम गम ॥१॥ ॥ इति मंगलाचरणम् ॥ दोहा आतम गुण ज्ञाता सुगुण, निर्गुण नांही प्रवीण। जो ज्ञाता सो जगत में, कबहु होत न दीन सबसै अनुभव है अधिक, अनुभव सौ नही मीत । आतम अनुभव मगनता, दूर हरै सब चींत जाके गुण अनुभव प्रगट, घट में होत अशेष । ताकै सब दरें टरै, मोह जनित संक्लेश ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ For Private and Personal Use Only

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