Book Title: Shrutsagar 2017 01 Volume 08
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 16 ॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ SHRUTSAGAR January-2017 ॥स्तुति॥ शांति जिनेसर समरो पाय, जस नामइ सब संकट जाय। वठंडली नगरी सोहाकरू, वंछिअ-पूरण वर सुरतरू कामितदायक-चिंतामणी, जगती जनमां सोभा घणी। जिनवर-संतति आपो सुख, जेणिं टालुं जग(न)म(मा)- दुख भवसागरजल-तारण-तरी, भीसण-भवभय-बंधण-हरी । जिनवर-वाणी गुणमणिखाणि, साकर सेलडी पाइ वखाणि कमलमुखी चालइ गजगति, श्रुतदेवी प्रणमुं भगवति । जेणिं संघनइ कीधी सिद्धि, मेरुविजयनइ आयो बुद्धि ॥ इति शांतिजिनस्तुति ॥ त्रिशलामाता-उरसरहंस, सिद्धारथनृप वाधो वंस। वर्धमान जिन प्रणमुं हेवि, सुरपति नरपति सारइ सेव गुणमणि-मंजुलरत्नाकरी, रोग सोग भय आपदहरी। भविअण सिद्धि करो जिनवरा, मंगलकमला-कमलाकरा ॥२॥ तीर्थंकरमुखपंकजभवा, वाणी वारु साकर-लवा। जगजननइं मति-सुख आपति(ती), हरखइं हईई राखइ यती जिनवरपदपंकजमधुकरी, श्रावक भगति करइ अति खरी। अंबादेवी गुणहनिधान, भविअण जननइ सुख करउ प्रधान ॥ इति वीरजिनस्तुति ॥ OVER ॥१॥ ॥३॥ ॥४॥ ये रात्रौ सर्वदाहारं वजयंति सुमेधसः। तेषां पक्षोपवासस्य फलं मासेन जायते ॥१०॥ जो रात्रि का आहार का बुद्धिपूर्वक सदा त्याग करता है, उसे एक मास में ही एक पक्ष के उपवास का फल प्राप्त होता है. For Private and Personal Use Only

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