Book Title: Shrutsagar 2015 07 08 Volume 01 02 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 SHRUTSAGAR July-Aug-2015 * इस लिपि के जानकार प्राचीन नागरी लिपि को आसानी से सीख सकते हैं। * आज भी इस लिपि में निबद्ध हस्तप्रों की संख्या लगभग एकलाख से अधिक है, जो भारतीय ग्रन्थागारों के गौरव में अभिवृद्धि करती है। शारदा लिपि की वर्णमाला : शिलाखण्ड, ताम्रपत्र, लोहपत, ताडपत्र एवं हस्तनिर्मित कश्मीरी कागजों आदि पर निबद्ध प्राप्य साक्ष्यों में प्रयुक्त इस लिपि के स्वर एवं व्यंजन वर्गों की संरचना तथा लेखन विधान निम्नवत है स्वर वर्ण लेखन प्रक्रिया अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ अउ जाता ल ल ए ऐ ओ औ अं अः TE TENNउमः विदित हो कि शारदा लिपिबद्ध पाण्डुलिपियों में दीर्घ 'ई'कार के दो प्रयोग प्राप्त होते हैं जो उपरोक्त तालिका में प्रदर्शित किये गये हैं। 'अनुस्वार' चिह्न भी दो तरह से प्रयुक्त होता है, एक उस अक्षर के ऊपर लगाकर नागरी लिपिवत् तथा दूसरा उस अक्षर के पीछे लगाकर ब्राह्मी व ग्रंथ लिपिवत्। "विसर्ग' चिह्न अन्य लिपियों की तरह ही अक्षर के पीछे लगाने की परम्परा मिलती है। यह विसर्ग चिह्न कभी-कभी पूर्णविराम चिह्न का भ्रम भी उत्पन्न करता है। अतः शारदा लिपिबद्ध हस्तप्रतों के पठन-पाठन या लिप्यन्तरण करते समय इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। For Private and Personal Use Only

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