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पुस्तक समीक्षा
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डॉ. हेमन्त कुमार
जिनालय निर्माण मार्गदर्शिका
श्री दिनेशभाई महासुखलाल, श्री फेनीलभाई झवेरी जिनशासन आराधना ट्रस्ट, मुंबई.
विक्रम संवत् २०७०
५००/- भाषा: गुजराती/हिन्दी
मंदिरों, प्रतिमाओं एवं तीर्थों की पवित्र भूमि भारत में अनेक जैन और जैनेतर मंदिर हैं. उनमें जैनमंदिरों का शिल्प, स्थापत्य और उनकी कलाकृति आदि अपूर्व और अनोखी है. मंदिर और तीर्थ भारतीय संस्कृति के प्रचारक एवं संदेशवाहक हैं. आदिकाल से संस्कृति की परम्परा को अविच्छिन्नरूप से मानव को अवगत कराते मंदिर हमारी आस्था के केन्द्र हैं. मंदिर, प्रतिमाएँ एवं तीर्थ हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं जो हमारे अतीत का परिचय देते हुए हमारी सांस्कृतिक प्राचीनता को सिद्ध करते हैं.
जिनमंदिर, जिनप्रतिमा और उनकी पूजा का विधान आत्मोन्नतिकारक एवं आत्मविकास के अद्वितीय साधन हैं. जिनमंदिर आध्यात्मिक शुद्धि का अद्भुत केन्द्ररूप पवित्र स्थल है. प्राचीन जैनमंदिरों के शिल्प स्थापत्य, कलाकृति के साथ अनुपम महिमा का सुन्दर वर्णन अनेक शास्त्रों में किया गया है.
जिसकी इतनी अधिक महिमा हो, जो हमारे जीवन को एक ऊर्जा प्रदायक हो एवं जहाँ की भूमि हृदय में अलौकिक धर्मोल्लास जगाने की क्षमताधारक हो उसके निर्माण में यदि सावधानी नहीं रखी गई तो इसका विपरीत असर होता हैं. इसलिए जिनालय, जिनप्रतिमा आदि के निर्माण में पूरी सावधानी रखना अति आवश्यक है.
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प्रस्तुत पुस्तक “जिनालय निर्माण मार्गदर्शिका " जिन मंदिर एवं प्रतिमा निर्माण करने-करवाने वालों के लिए बहुत ही उपयोगी ग्रंथ है. इस पुस्तक में जिनालय निर्माण करने -करवाने से होने वाले लाभ, पुण्य आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है. इस ग्रंथ में यह बताया गया है कि मंदिर संबंधी कार्यों के माध्यम से परमात्मा के प्रति अनुरागप्रेम सहज हो जाता है, जिनशासन के साथ विशिष्ट कोटि का ऋणानुबंध होता है जिससे भवान्तर में भी भवोभव जिनशासन की प्राप्ति सहज होती है. जिनशासन के इस क्षेत्र में की गई सेवा भक्ति दीर्घकालीन एवं चिरंजीव होती है.