Book Title: Shrutsagar 2015 07 08 Volume 01 02 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 31 July-Aug-2015 इस ग्रंथ में जिनमंदिर निर्माण करने के पूर्व किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है, उसका विस्तृत विवरण दिया गया है. इतना ही नहीं मंदिर निर्माण से संबंधित छोटी से छोटी बातों के संदर्भ में संबंधित विषय का सूक्ष्मता पूर्वक उल्लेख किया गया है. जैसे मंदिर निर्माण से पूर्व पूरा प्लान तैयार करना, एस्टीमेट निकालना, शिल्पी से नक्शे तैयार करवाना, खातमुहूर्त के लिए उत्तम समय निर्धारण, आवश्यक सामग्री की व्यवस्था, कारीगरों के साथ पूर्व चर्चा आदि का व्यावहारिक विवरण वर्णित है. किस कार्य के बाद कौनसा कार्य करना, कौन-कौन से कार्य हेतु पूर्व में कैसी तैयारी करनी आदि का खूब स्पष्ट विवरण दिया गया है. किस क्षेत्र में किस प्रकार के सीमेंट, पत्थर, ईंट आदि का प्रयोग करना उपयोगी होगा इस विषय में भी स्पष्टता पूर्वक विवरण दिया गया है. प्रस्तुत प्रकाशन भारतभर में ही नहीं बल्कि संपूर्ण दुनिया में बनने वाले जिनमंदिरों के निर्माण में बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा. जिनशासन आराधना ट्रस्ट एवं उसके मार्गदर्शकों ने प्रस्तुत ग्रंथ को गुजराती एवं हिन्दी भाषा में प्रकाशित करवाकर गुजरात एवं गुजरात के बाहर हो रहे जिनालय निर्माण में आने वाली कठिनाईयों के लिए मार्ग प्रशस्त किया है. जैसा कि पुस्तक में यह वर्णन है कि यह ग्रंथ शीघ्र ही अंग्रेजी भाषा में भी उपलब्ध होने वाला है, तो यह ग्रंथ संपूर्ण विश्व में हो रहे जिनमंदिर के निर्माण में मार्गदर्शक की भूमिका अदा करेगा. पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है. आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है. विस्तृत विषयानुक्रमणिका, कार्यों एवं उपयोगी वस्तुओं का विवरण, आवश्यक चित्र आदि भी बहूपयोगी सिद्ध होंगे. यह ग्रंथ मंदिर निर्माताओं के लिए तो अत्यन्त उपयोगी है ही, साथ ही ग्रंथालयों में संग्रहणीय भी है. जिनशासन आराधना ट्रस्ट की ओर से मंदिर निर्माण संबंधी मार्गदर्शिका के रूप में मुनि श्री सौम्यरत्नविजयजी म. सा. द्वारा संकलित एवं संपादित “जैन शिल्प विधान" भी प्रकाशित किया गया है. पूज्य श्री सौम्यरत्नविजयजी ने शिल्प संबंधी अनेक शास्त्रों का तलस्पर्शी अध्ययन कर मंदिर निर्माण हेतु एक मार्गदर्शक ग्रन्थ समाज के समक्ष प्रस्तुत किया है जो मंदिर निर्माण कार्य में बहुत उपयोगी सिद्ध होगा. आचार्य श्री हेमचंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहब श्रुतसेवा का अनुपम कार्य कर रहे हैं. संघ, विद्वद्वर्ग तथा जिज्ञासु इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में है. सर्जनयात्रा जारी रहे ऐसी अपेक्षा है. पूज्य आचार्यश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन. साथ ही जिनशासन आराधना ट्रस्ट के अधिकारीगण तथा कार्यकर्तागण भी धन्यवाद के पात्र हैं. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36