________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
25
SHRUTSAGAR
July-Aug-2015 समृद्ध सभवृद्धिवार । श्रद्धा
सिद्धि भियूि
'द' के साथ 'य'वर्ण जोडकर 'द्य' लिखने के लिए पूरा 'द' लिखकर उसके नीचे आधा 'य' जोडा जाता है जो नागरी लिपि में प्रचलित 'ऋ'कार की मात्रावत दिखता है। यथा
द् + य = द्य
चिय: भट्ट विद्यालय विलय । विः । विद्योपासना विधाभन
अद्य
विद्या
विदित हो कि अन्य हलन्ताक्षरों में भी जब 'य' वर्ण जुडता है तो इसका स्वरूप उपरोक्त नागरी लिपि के ऋकार की मात्रावत् ही हो जाता है। यथाध्यान पन आदित्य भरि । रम्य तभ
masam
अभ्यास भभ
मूर्धन्य 'ए' के साथ जब 'ट' या 'ठ' वर्ण जुडते हैं तो दो प्रकार से लिखने का विधान मिलता है। एक तो 'ष' के नीचे 'ट' या 'ठ' वर्ण को यथावत लिख दिया जाता है। जबकि दूसरी प्रक्रिया के तहत मूर्धन्य 'ष' लिखकर उसके नीचे नागरी लिपि में प्रचलित दीर्घ 'ऊ'कार की मात्रा सदृश चिह्न लगाया जाता है जो 'ष्ट' एवं 'ठ' दोनों के लिए एक समान प्रयुक्त होता है। इस कारण यह एक दूसरे का श्रम भी उत्पन्न करता है। ऐसी स्थिती में हस्तप्रत पढते समय आनुपूर्वी-अनानुपूर्वी विधान का प्रयोग कर
१. ग्रंथ लिपि में भी यकार जोडकर लिखने के लिए लगभग ऐसा ही चिह्न और यही प्रक्रिया देखने को मिलती है।
For Private and Personal Use Only