Book Title: Shrutsagar 2015 07 08 Volume 01 02 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 23 July-Aug-2015 जब भी हलन्त 'र' के बाद 'थ' वर्ण आता है तो 'र्थ के लिए एक नये आकार का संयुक्त व्यंजन उभरकर आता है। यह वर्ण लगभग नागरी लिपि के दीर्घ 'ऊ'कार सदृश होता है, जो शारदा लिपि में सर्वदा 'थ' का बोध कराता है। यथा र + थ = र्थ पार्थ सार्थ यऊ । कार्यार्थम् कादऊभर भाऊ पुरुषार्थ धुरुधाऊ शारदा लिपि में अंक लेखन ||3|BFभाउ 60. ha शारदा लिपि में संयुक्ताक्षरों की स्थिति शारदा लिपिबद्ध पाण्डुलिपियों में प्रयुक्त संयुक्ताक्षरों का ज्ञान संपादनकार्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। जैसा की हम उपरोक्त प्रक्रिया में देख चुके हैं कि इस लिपि में कुछ अक्षर ऐसे हैं जो दूसरे वर्गों के साथ संयुक्त होनेपर पूर्णतः परिवर्तित हो जाते हैं। यदि उस परिवर्तित स्वरूप का ज्ञान न हो तो हस्तप्रत पढते समय या लिप्यन्तर करते समय अनेकविध अशुद्धियाँ होने की संभावना बढ़ जाती है। यहाँ हम उरोक्त संयुक्ताक्षरों के अलावा मिलनेवाले संयुक्त वर्णों की प्रक्रिया एवं उनके स्वरूप का उल्लेख करेंगे। जब हलन्त स्' के साथ थे वर्ण जुडता है तो स्थ' लिखने के लिए 'स' को पूरा लिखकर उसके नीचे शारदा लिपि में 'र्थ' के लिए प्रयुक्त नागरी लिपि के 'ऊ कार सदृश वर्ण को लिखा जाता है जिसका उच्चारण 'स्थ होता है। १. प्राचीन देवनागरी लिपि में भी स्थ, ज्ज व ज्झ के लिए नये ही परिवर्तित स्वरूप वाले संयुक्ताक्षर प्रयुक्त हुए हैं। For Private and Personal Use Only

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