Book Title: Shrutsagar 2015 07 08 Volume 01 02 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 श्रुतसागर जुलाई-अगस्त-२०१५ विदित हो कि शारदा लिपि में जब 'क' वर्ण के साथ हस्व या दीर्घ 'उ'कार की मात्रा का प्रयोग होता है तो इसका स्वरूप किंचित् परिवर्तित हो जाता है जैसा कि ऊपर दर्शाया गया है। इसी प्रकार जब 'के' के साथ हस्व या दीर्घ 'ऋ'कार की माला का प्रयोग होता है तो भी इसका स्वरूप परिवर्तित होता है। यथा कृ सह रेफसूचक चिह्न इस लिपि में रेफ के लिए ग्रंथ या नागरीवत् अलग से कोई चिह्न प्रयुक्त नहीं हुआ है। लेकिन रेफ के अनेकविध प्रयोग अलग-अलग वर्गों की प्रकृति अनुसार देखने को मिलते हैं। कुछ वर्गों को 'र' के नीचे लिखकर रेफ का प्रयोग किया जाता है तो कुछ वर्णों के साथ ऊपर की ओर रिक्त स्थान छोडकर इसका प्रयोग दर्शाया जाता है। कुछ वर्णों का तो रेफ लगने के कारण स्वरूप ही बदल जाता है और वे एक तीसरा ही नया स्वरूप ग्रहण कर लेते हैं। यहाँ रेफ के समस्त प्रयोगों को क्रमानुसार प्रदर्शित किया जा रहा है मध्यस्थ हलन्त 'र' वर्ण प्रायः अपने अग्रिम वर्ण के आरम्भ में शीर्ष पर लिखकर रेफ चिह्न के रूप में प्रयुक्त होता है। अर्थात् ऊपर 'र' लिखकर उसके नीचे दुसरा वर्ण जिस पर रेफ का प्रयोग दर्शाना हो वह लिख दिया जाता है। इसके अलावा एक प्रयोग ऐसा भी मिलता है जिसके तहत जिस वर्ण पर रेफ लगाना हो उस वर्ण को लिखकर, उसके आगे एक गोलाकार चिह्न बना दिया जाता है; जो रेफ के रूप में उच्चारित होता है। यहाँ इन दोनों ही प्रकारों को निम्नवत् दर्शाया जा रहा है र् + क = र्क निलक र् + क = के नाक % arm ananews १. ग्रंथ, प्राचीन नागरी एवं आधुनिक देवनागरी लिपियों में भी यह परिवर्तन देखने को मिलता है। २. ब्राह्मी लिपि में भी यही प्रयोग देखने को मिलता है। For Private and Personal Use Only

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