Book Title: Shrutsagar 2015 07 08 Volume 01 02 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 19 July-Aug-2015 हैं। 'ओ' व 'औ' की मालाओं में सिर्फ इतना ही अन्तर है कि 'ओ' की मात्रा के पीछे एक छोटीसी 'आ' की मात्रा लगा देने से वह 'औं' की मात्रा बन जाती है। ऋ की माला लगभग नागरीवत् ही है। यहाँ 'क' वर्ण के साथ सभी मात्राओं का प्रयोग निम्नवत् है क | का | कि की | कु कू कृ क| काकि की कु कुक कृ के | कै | को कौ कं । कः का के केक का केक का विदित हो कि 'ङ, ज, ट तथा ण' के साथ जब 'आ' की मात्रा लगती है तो इसके आकार में किंचित् परिवर्तन हो जाता है, जो निम्नवत् है - - - - - र रस | ह्रस्व 'उ'कार एवं दीर्घ 'ऊ'कार की मात्राओं के विविध प्रयोग 'उ' एवं 'ऊ' की मात्राओं के ब्राह्मी, ग्रंथ, नागरी आदि लगभग सभी लिपियों में एकाधिक वैकल्पिक प्रयोग देखने को मिलते हैं। शारदा लिपि भी इस नियम से अछूती नहीं रही। यहाँ हस्व 'उ'कार मात्रा के लगभग तीन प्रयोग व दीर्घ 'ऊ'कार की माला के दो प्रयोग प्रदर्शित किये जा रहे हैं, जो व्यंजन वर्गों के नीचे की ओर लगाने ' का विधान है। यथा कु । कू । छु । डू क.कुछ ,कक, कु ऊ. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36