Book Title: Shrutsagar 2015 07 08 Volume 01 02 03
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 श्रुतसागर जुलाई-अगस्त-२०१५ अनुनासिक चिह्न लेखन प्रक्रिया । यह चिह्न नागरी लिपि में प्रयुक्त चन्द्रबिन्दु जैसा ही होता है, जो वर्ण की शिरोरेखा पल लगाया जाता है। कहीं-कहीं यह उलटा भी लिखा हुआ मिलता है। दोनों ही प्रकार निम्नवत् हैं - । पँ ॐ चैं उग, य य,ये मात्रा लेखन प्रक्रिया इस लिपि में प्रयुक्त मालाओं के लेखन हेतु निम्रोक्त चिह्नों का प्रयोग हुआ है उ ऊ ऋ 4.७. J | अनुस्वार विसर्ग औ mecamera - इनमें से 'आ' स्वर की माला के तीन प्रकार मिलते हैं। यह माला व्यंजन की शिरोरेखा के अन्त में कभी एक छोटी सी बिन्दी, कभी छोटा दण्ड और कभी त्रिकोणाकार के रूप में प्रयुक्त होती है। विदित हो कि स्वतन्त्र 'आ' लिखते समय हस्व 'अ'के नीचे एक छोटा सा गोलाकार चिह्न लगाकर लिखने का विधान है जो ह्रस्व 'उ'कार की मात्रा जैसा दिखता है। ह्रस्व 'इ' एवं दीर्घ 'ई' की मालाएँ देवनागरीवत् ही प्रयुक्त हुई हैं। ह्रस्व 'उ' एवं दीर्घ 'ऊ की माताओं के अनेकविध प्रयोग देखने को मिलते हैं, जिनका उल्लेख हम आगे करेंगे। “ए' व 'ऐ की मात्राएँ शिरोरेखा पर क्रमशः एक व दो पडीपाई के रूप में लगती. For Private and Personal Use Only

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