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July-Aug-2015 हैं। 'ओ' व 'औ' की मालाओं में सिर्फ इतना ही अन्तर है कि 'ओ' की मात्रा के पीछे एक छोटीसी 'आ' की मात्रा लगा देने से वह 'औं' की मात्रा बन जाती है। ऋ की माला लगभग नागरीवत् ही है।
यहाँ 'क' वर्ण के साथ सभी मात्राओं का प्रयोग निम्नवत् है
क | का | कि की | कु कू कृ क| काकि की कु कुक कृ के | कै | को कौ कं । कः का के केक का केक का
विदित हो कि 'ङ, ज, ट तथा ण' के साथ जब 'आ' की मात्रा लगती है तो इसके आकार में किंचित् परिवर्तन हो जाता है, जो निम्नवत् है
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र रस |
ह्रस्व 'उ'कार एवं दीर्घ 'ऊ'कार की मात्राओं के विविध प्रयोग
'उ' एवं 'ऊ' की मात्राओं के ब्राह्मी, ग्रंथ, नागरी आदि लगभग सभी लिपियों में एकाधिक वैकल्पिक प्रयोग देखने को मिलते हैं। शारदा लिपि भी इस नियम से अछूती नहीं रही। यहाँ हस्व 'उ'कार मात्रा के लगभग तीन प्रयोग व दीर्घ 'ऊ'कार की माला के दो प्रयोग प्रदर्शित किये जा रहे हैं, जो व्यंजन वर्गों के नीचे की ओर लगाने ' का विधान है। यथा
कु । कू । छु । डू
क.कुछ
,कक, कु ऊ.
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