Book Title: Shrutsagar 2015 03 Volume 01 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 श्रुतसागर मार्च-२०१५ अंतिम - तपगछपति रे श्रीविशालसोमसूरिसरु रे, सुविहित मुनिजनराय । जयवंता चिर रे हरखई रे, कहि राजरतन उवझाय मंगल करु रे ॥५२॥ ३. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, कडी - १३' आदि - सुरतरु मुज अंगणि फलिउ रे, तूठउ अमृत जलधार मेरे साहिब । मनह मनोरथ सवि फल्या रे, दीठउ तुज दीदार मेरे साहिब ॥१॥ अंतिम - संवत सोलपंचा[इ रे, ईडरि रहिया चुमास मेरे साहिब । राजरत्न पाठक वीनवइ रे, प्रभु पूरउ मननी आस मेरे साहिब ॥१३॥ ४. ज्ञानपंचमी स्तुति, कडी - ०४' आदि - श्रीनेमिसर समुद्रविजयसुत, त्रिभोवन जन हितकारीजी अंतिम - चुविह संघ मनोरथ पूरवइ, राजरतन सुखदाताजी ५. कंसारीमंडन पार्श्वजिन स्तुति, कडी - ०४' आदि - मदमदनगंजन भीडिभंजन पार्श्व जिन जयकार कंसारीमंडन दुरित खंडन नमुंवारोवार अंतिम - गच्छाधिराज विशालसोमसूरि धरइ जेहनुं ध्यान । अतिघणइ ऊलटि राजरत्नह वाचक करइ गुणगान् ॥४॥ ६.विशालसोमसूरि भास, कडी - ०७ आदि - गच्छनायक गुणन(नि)धि गायु, मनवंछित सवि फल पायु । एह सुरति की बलि जायु लाला रे विशालजी गुरु वंदु ॥१॥ अंतिम - चिर प्रतपु एह गुरुराय, सोवनवरणी जस काय वाचक राजरतन गुणगाय लाला रे विशालजी गुरु वंदु ॥७॥ ७. विशालसोमसूरि स्तुति, कडी - ०२१ आदि - मांनइ महाछत्रपति मोहन गयंदगति, चिदानंद एक चित्ति धरइ। अंतिम - तपगच्छ कु राय भ[र]दो मेरे भाय(ग्य), राजरत्न कहि आनंद भरे ॥२॥ शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवनमा वि. सं. १६९५मां ईडर चातुर्मासना उल्लेखनी साथे १. प्रत नं. ४०७३४, २. प्रत नं. ४८९३५, ३. प्रत नं. ८१३७१, ४. प्रत नं. ४४४८४, ५. प्रत नं. ४४४८४ For Private and Personal Use Only

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