Book Title: Shrutsagar 2015 03 Volume 01 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 12 MARCH 2015 मळतो न होवानी वात करी छे. साथे साथे आ जिनालयमां दरडा गौत्रीय ओशवाल संघवी मंडलिक अने तेमना स्वजनो द्वारा भरावेल प्रतिमाओ विशेष प्रमाणमां प्राप्त थती होय आ जिनालयना बंधावनार मंडलिक होवानी संभावना व्यक्त करी छे. ज्यारे प्रस्तुत कृति चौमुख जिनालयना कर्ता तरीके साह जसूनो उल्लेख करे छे. आ बाबते विशेष प्रमाण मळे तो वधु जाणवा मळी शके. आबूतीर्थना जिनालयोनुं वर्णन कर्या बाद अचलगढना जिनालयोनो उल्लेख कर्यो छे. कविए आबु - अचलगढनी स्पर्शना कर्या बाद आ कृतिनी रचना करी होवानो संभव छे. एवं कृतिनी तेवीसमी अने चोवीसमी कडीमां मळता उल्लेखोथी जाणी काय छे. छेल्ली कडीमां कृतिनी रचना संवत अने विशालसोमसूरिजीना सान्निध्यनी ध करी कवि कृतिने पूर्ण करे छे. कर्ता परिचय ईडरमां पोसीना पार्श्वनाथ भगवाननी सहायथी वि. सं. १६९६मां रचेला विजयाशेठ - विजयाशेठाणी रासनी अंतिम कडीओमां जणाव्या अनुसार राजरत्न वाचक आचार्य श्री लक्ष्मीसागरसूरि - विशालसोमसूरिजीनी परंपराना छे. जैन गुर्जर कवि भाग ३मां जणाव्या अनुसार उपाध्यायश्रीना नामे विजयशेठ - विजयाशेठाणी रास अने नर्मदासुंदरीना रासनो उल्लेख मळे छे. गुजराती साहित्य कोश (मध्यकाळ) १ना पेज नं. ३५२ उपर ७०९ कडीनी 'राजसिंहकुमार रास (र. सं. १७०५, पोष - १०, रविवार) ' कृतिनो उल्लेख प्राप्त थाय छे. भाग Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए सिवाय ज्ञानमंदिरमां संगृहीत माहिती अनुसार राजरत्न वाचकना नामे नीचे मुजबनी कृतिओ प्राप्त थाय छे. आ अंकमां प्रकाशित अर्बुदगिरिचैत्यपरिपाटी सिवायनी बीज कृतिओ प्रायः अप्रकाशित छे. अत्रे नोंधेल कृतिओ सिवाय राजरत्न उपाध्यायनो उल्लेख करती अन्य रचनाओ पण प्राप्त थाय छे. परंतु, ए कृतिमां कर्ता विषयक विशेष स्पष्टता न होवाथी ए कृतिओने अत्रे नोंधी नथी. जेनी वाचकोए नोंध लेवी. १ १. अर्बुदगिरि चैत्यपरिपाटी, कडी - २४ २. गिरनारमंडन नेमिजिन स्तवन, कडी - ५२' आदि- श्रीजिनवदन निवासिनी, श्रुतदेवी धरी ध्यान । मिनाथ गुण वर्ण, कविजन मांगी मान ॥ १॥ १. प्रत नं. ४८९३५, २. प्रत नं. ८४४४० For Private and Personal Use Only

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