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MARCH-2015 समय में ही अपनी अपेक्षित सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है. यहाँ आने वाले वाचक यह शीघ्रतापूर्वक जान सकते हैं कि पलिका का वास्तविक स्वरूप क्या है? उस पत्रिका में कितने पृष्ठ हैं? उसके कौन से पृष्ठ पर किस लेखक की कौनसी रचना प्रकाशित की गई है? अपेक्षित लेख किस मैगजीन के किस अंक में प्रकाशित किया गया है? यह अंक किस वर्ष का है? यह अंक किस बाइन्ड में है? उस बाइन्ड में कितने और कौन-कौन से अंक हैं? कौन सा मैगजीन किस विषय से सम्बन्धित है? उस मैगजीन के उस अंक के सम्पादक, सहसम्पादक आदि कौन हैं? उस मैगजीन का प्रकाशक कौन है? वह मैगजीन कहाँ से प्राप्त हुई है? भेंट या खरीद से, किस तरह प्राप्त हुई है? ये सारी सूचनाएँ आसानी से जानी जा सकती हैं. उसकी अवस्था, श्रेष्ठ/मध्यम/जीर्ण में से कौन सी है? उस पत्रिका का वाचक स्तर क्या है? इसका भी तुरन्त ख्याल आ जाता है. इससे वाचक एवं कर्मचारी दोनों का समय बचता है और वाचक को अपेक्षित सूचनाएँ शीघ्रता से प्राप्त होती है. पत्र/पत्रिका/सामायिक/ Magazine __वैसी मुद्रित सामग्री जो एक निश्चित नाम, एक निश्चित अवधि, एक निश्चित प्रकाशक, एक या अधिक निश्चित संपादक, एक निश्चित पृष्ठ संख्या, एक निश्चित प्रतियाँ, एक निश्चित पंजीकरण संख्या (यदि पंजीकृत हो), एक या अधिक निश्चित भाषा, एक या अधिक निश्चित विषय आदि के साथ साप्ताहिक, पाक्षिक आदि निश्चित अवधि में हमारे समक्ष आती रहती है, उसे पत्र/पत्रिका/सामायिक/Magazine कहा जाता है. पत्र-पत्रिकाएँ दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक, वार्षिक आदि अपनी निश्चित अवधि वाली होती हैं मैगजीन अंक
उपरोक्त सूचनाओं के साथ मुद्रित हुई उस पत्रिका की प्रत्येक नवीन सामग्री को उसका अंक कहा जाता है. मैगजीन अंक कॉपी
उपरोक्त सूचनाओं के साथ मुद्रित हुई प्रतियों को अंक कॉपी कहा जाता है. संस्था में प्रत्येक अंक की एकाधिक प्रतियाँ हो सकती हैं. मैगजीन अंक बाइन्ड
उपरोक्त सूचनाओं के साथ मुद्रित प्रतियों को लाइब्रेरी में सुरक्षित रखने हेतु
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