Book Title: Shrutsagar 2015 03 Volume 01 10
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Catalog link: https://jainqq.org/explore/525298/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2 श्रुतसागर | श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY) March 2015, Volume : 01, Issue 10, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/EDITOR: Hirenbbai Kishorbhai Doshi वि. सं. १८९१मां लखायेल २६६८x१९ साईझमां गोळ (स्क्रोल)ना स्वरूपनी सचित्र दर्शनचोवीशीमां मळतुं उत्तुंग जिनालयनुं सुंदर चित्रण आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमद www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमश्क आशरे १५० वर्षथी वधु प्राचीन पीतळना डाबडामां स्थापेल नवपदजी (गट्टाजी)मां अरिहंत परमात्मानी वलयमां चारे बाजुं अने अलंकारो उपर बसरा मोती, माणेक अने नीलम जेवा मूल्यवान रत्नखचित स्वर्णकाम युक्त आकर्षक चित्रण. PALPOTEO1988031 For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र) श्रुतसागर श्रुतसागर SHRUTSAGAR (Monthly) वर्ष-१, अंक-10, कुल अंक-10, मार्च-२०१५ * Year-1, Issue-10, Total Issue-10, March-2015 वार्षिक सदस्यता शुल्क-रू. १५०/-* Yearly Subscription - Rs.150/ अंक शुल्क - रू. १५/- * Issue per Copy Rs. 15/ आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. *संपादक हिरेन किशोरभाई दोशी एवं ज्ञानमंदिर परिवार १५ मार्च, २०१५, वि. सं. २०७१, फागुन वद-९ कममा माफ श्री महाका प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (०७९) २३२७६२०४, २०५, २५२ फेक्स : (०७९) २३२७६२४९ Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रम १ संपादकीय २ गुरुवाणी 3 Beyond Doubt ४ अर्बुदगिरितीर्थ चैत्यपरिपाटी ५ अढार नातरानी कथा ६ आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में पत्र-पत्रिकाओं की सूचना संकलन पद्धति एवं उसका लाभ ७ पुस्तक समीक्षा हिरेन के. दोशी आचार्य बुद्धिसागरसूरिजी Acharya Padmasagarsuri हिरेन के. दोशी कोमलबेन कमलेशभाई शाह १८ डॉ. हेमंत कुमार डॉ. हेमंत कुमार प्राप्तिस्थान : आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर परिवार डाईनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपादकीय हिरेन के. दोशी श्रुतसागरनो दशमो अंक तमारा हाथमा छे. पूज्यपाद योगनिष्ठ आचार्यदेवश्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. नी अध्यात्मशैलीमा आलेखायेल कर्मयोग कर्णिका पुस्तकमांथी 'जैनो परोपकारी मनुष्यो' वाचकोना स्वाध्याय माटे प्रकाशित कर्यो छे. तेमज पूज्यपाद गुरुदेवश्रीनी कविप्रतिभाने सुपेरे अभिव्यक्त करती गझल समी रचना “मळीने भिन्न ना थाशो" आ अंकमां प्रकाशित करी छे. मिलनना माहाम्यने पूज्यश्रीए कंईक आ रीते उजागर कर्यु छे. वपुथी मेळ ना साचा, नथी ए मेळ हस्तोथी हृदयना शुद्ध संबंधे, मळीने भिन्न ना थाशो. ६ आवी सुंदर शब्दावलीओ उरने झंकृत करी दे छे. असमाधिनी क्षणोमां आवा मीठा बोल जीवनने अने मनने समता आपी जता होय छे. अप्रकाशित कृतिना प्रकाशन रूपे आ अंकमां वाचक राजरत्न कृत अर्बुदगिरितीर्थ चैत्यपरिपाटी तेमज अढारनातरानी कथा प्रकाशित करी छे. तो साथे साथे कोबा ज्ञानमंदिरनी वाचकसेवानी व्यवस्थामां रूपांतरण करावी आपतो एक लेख अले प्रकाशित कर्यो छे. खास करीने आ लेख सामायिक, पत्रिका आदिने ध्यानमा लईने लखायो छे. वीतेला वर्षोमां अदबपूर्वक साहित्यनी सेवा बजावनार पत्र-पत्रिकाओए प्रकाशित करेली विगतोने केवा केवा प्रकारनी तारवणी द्वारा प्राप्त करी वाचको सुधी पहोंचाडी शकाय छे एनी एक आछेरी झलक आ लेखना माध्यमे तमारा सुधी पहोंचती करी छे. ___आजे एवा केटलीय अल्पप्रसिद्ध के अप्रसिद्ध पत्रिकाओ छे जेणे जैन साहित्यजगतने पुष्ट कर्यु छे. एवी तमाम पत्रिकाओमाथी योग्य विगतोने आवा प्रकारनी योजनाना माध्यमे वाचक अने संपादकोना अभ्यासार्थे एकत्रित करी शकाय छे. आ योजनानी पृष्ठभूने दर्शावतो लेख आ अंकमां प्रकाशित कर्यो छे. दर अंकनी जेम आ अंकमा पुस्तक समीक्षामा “आख्यानक मणिकोश"ना प्रकाशन संबंधी समीक्षा प्रकाशित करी छे. For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी आचार्य बुद्धिसागरसूरिजी जैन परोपकारी मनुष्यो धर्मार्थकांक्षी मनुष्योए निष्कामवृत्तिथी उपकारप्रवृत्ति आचरवी जोईए. सं. १९४७नी सालमां विजापुरमा एक मनुष्यने क्षेत्रमा सर्प करड्यो तेनुं विष तेने सर्व शरीरमां व्यापी गयु. तेने उंचकीने गाममां लाववामां आव्यो पण उतर्यु नहि; एवामां दैववशात् त्यां एक फकीर आव्यो. तेणे तुरत मंत्रथी सर्पनुं विष उतार्यु अने पश्चात् तुरत ते तेना मार्ग प्रति गमन करवा लाग्यो. जे मनुष्यने सर्प करड्यो हतो तेना कुटुंबीओए पेला फकीरने मागे ते आपवाने घणी आजीजी करी अने तेनी पाछळ दोडी तेने उभो राखी पगे लागी बे हाथ जोडी घणु कडुं. त्यारे पेला फकीरे कह्यु के-में तमारा कुटुंबी मनुष्य पर उपकार कर्यो छे तेथी हुं तमारूं कंई पण लेवानो नथी. विशेष शु? तमारा घरनुं जल पण ग्रहीश नहि. मारी निष्कामवृत्तिना बळे सर्पनो मंत्र भणतां सर्प तुरत उतरी जाय छे अने मने वास्तविक जे फल थवानु होय छे ते थाय छे माटे मने हवे तमे कंइ पण कहेता नहि. धन्य छे एवा फकीरने आ दृष्टांत उपरथी अवबोधवानुं ए मळे छे के निष्कामवृत्तिथी उपकार करवो. ओघदृष्टि आदि अष्टदृष्टिए उपकारनुं स्वरूप अवबोधी उपकार करवो जोइए. १. द्रव्योपकार २. भावोपकार ३. निश्चयोपकार, ४. दर्शनोपकार ५. ज्ञानोपकार ६. चारित्रोपकार, ७. विद्योपकार ८.आजीविकोपकार ९. औषधोपकार, १०. अन्नोपकार ११. जलोपकार १२. धर्मोपकार, १३. रक्षकोपकार-आदि अनेक प्रकारना उपकारो छे.. १. रजोगुणोपकार, २. तमोगुणोपकार अने ३. सत्त्वगुणोपकार एम त्रण प्रकारना उपकारनुं सम्यक्त्वस्वरूप अवबोधq. एकेन्द्रियथी ते पंचेन्द्रियपर्यन्त जीवो रजोगुणोपकार, तमोगुणोपकार करी शके छे. जे जे काले क्षेत्रे जे जे उपकारनी आवश्यकता होय छे तेनी ते वखते मुख्यता For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 5 मार्च - २०१५ गणाय छे अने अन्योपकारोनी गौणता गणाय छे. विषयभेदे उपकारना असंख्य भेदो पडे छे. निष्कामवृत्तिए परोपकार करवानी भावना धारण करीने उपकारोमां स्वाधिकारे प्रवृत्ति करवी जोईए. संवत १९५७नी सालमां हिन्दुस्तानमां महादुष्काळ पड्यो त्यारे अनेक परोपकारी मनुष्यो निष्कामवृत्तिथी मनुष्योनी उपर परोपकारवृत्ति आचरी हती. अमदावादमां कवि-नाटककंपनी काढनारर जैन शा डाह्याभाई धोळशाजी हता. तेमना पिताजी धोळशाजी पाक्का जैन हता. तेमना हृदयमां प्रतिदिन परोपकारनी भावना वध्या करती हती. तेओ दररोज व्याख्यानमां जता हता. तेओ व्याख्यान श्रवण करी उपाश्रय बहार नीकळता के तेमनी पाछळ अनेक दुःखी लोको पडतां अने तेमनी आगळ पोताना दुःखनी वात कहेत.. धोळशाजी शेठ सर्व लोकोनी वात सांभळता अने यथा योग्य सर्वने दान आपता हता. तेओनी प्रामाणिकता अने परोपकारवृत्तिथी अमदावादना मोटा धनवंत शेठीयाओ पासेथी जेटला रूपिया जोइए तेटला मागी लावता. दरेक श्रेष्ठी तेमने माग्या प्रमाणे आपता अने ते लावेला रूपिया तेओ गरीब जैनो तथा जैनेतर गरीब लोकोने व्हेंची देता. उपाश्रये साधुओना पोते जाते खबर- अंतर लेता. साध्वीओनी भक्ति करतां. कोइना उपर उपकार करवा चूकता नहि. अमदावादना नगरशेठ मणिभाई प्रेमाभाइए छप्पनना दुष्काल प्रसंगे परोपकार करवामां बाकी राखी नथी. तेओ गरीब लोको पासे गाडी लइ जता अने तेओने जाते तपासता अने पशुओ तथा मनुष्यो उपर उपकार करतां करतां तेमना उपर रोगे हुमलो कर्यो तेथी एवा भला परोपकारी नगरशेठनुं मृत्यु थयुं. अमदावादना जैन झवेरी शेठ लल्लुभाई रायजीए परोपकार करवामां लक्ष्मीनो सारी रीते भोग आप्यो छे. अमदावाद जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक बोर्डींग बनाववामां तेणे आगेवानी भर्यो भाग लीधो छे. लालशंकर उमियाशंकरे स्थापेला अनाथाश्रमने तेणे सारी सहाय करी छे. ओशवाळ जैनना नामे कोई पण मनुष्य तेमनी पासे खानगी मदद लेवा जतो तो तेने तेमनी चढती अवस्थामां सारी रीते खानगीमां मदद आपता हता. शेठ लल्लुभाई रायजीए हजारो रूपिया गुप्त रीते गरीब लोकोने आप्या छे. उत्तम वर्णना लोकोने गुप्त रीते घणी सहाय करी छे. तेमनी चडतीना प्रसंगे तेमना घर नीचे मनुष्योनी ठठ जाती हती. सर्वने तेओ मदद आपी विदाय करता हता. तेमना For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR MARCH-2015 घेर अमो वहोरवा जता त्यारे घर नीचे जाणे दवाखानाना दर्दीओ भराया होय तेवी रीते अनेक दुःखी मनुष्यो बेठेला देखावामां आवता हता. तेमणे परोपकारनां जे कार्यो करेला छे. तेनो जात अनुभव छे. शेठ लल्लुभाइ रायजी हाल पण परोपकारनां कार्यो कर्या करे छे. ___अमदावादना नगरशेठ प्रेमाभाई हेमाभाइए घणां परोपकारनां कार्यो काँ हतां. शेठ लालभाई दलपतभाईनी माताजी गंगाबेन अनेक परोपकारनां कार्यो अद्यपर्यन्त करे छे अने भविष्यमां करशे. शेठ मनसुखभाई भगुभाइए परोपकारनां कार्यो कर्यां छे. तेमणे अमदावादनी पांजरापोळ सुधारीने पशुओनां दुःख दूर करवा धनादिकनी सहाय करी हती. सुरतमां रावबहादुर हीराचंद मोतीचंद, शेठ धर्मचंद उदयचंद, नगीनदास कपूरचंद, नेमचंद मेळापचंद अने नगीनदास झवेरचंदे मनुष्यो अने पशुओ उपर उपकार करवा सारो आत्मभोग आप्यो छे. पाटणमां सं. १९५६ ना दुष्कालना प्रसंगमां एक गृहस्थ शेठे गुप्त नामथी दुकान उघाडी हती अने ते द्वारा तेणे अनेक मनुष्योने नाम लखीने रूपिया आप्या हता तथा दाणा आप्या हता. पश्चात् तेणे दुकान बंध करी ते वात पाटणमां जाहेर छे. पाटणमां दुकान उघाडीने निष्कामवृत्तिथी गरीबोने गुप्तपणे मदद करनार गृहस्थनी जेटली प्रशंसा करीए तेटली ओछी छे. __ शेठ वीरचंद दीपचंद अने प्रेमचंद रायचंदे परोपकारप्रवृत्तिमां सारी रीते भाग लीधो हतो. मनुष्यो अने पशुपंखीओ उपर उपकार करनार आ विश्वमा अनेक मनुष्यो विद्यमान छे. ___ आ विश्वमा हजी परोपकारी मनुष्यो विद्यमान छे तेथी सूर्य अने चंद्र नियमित गति करे छे अने समुद्र पोतानी मर्यादाने मूकतो नथी. आ विश्वमां लोकोत्तर दृष्टिए भावोपकार करनारा अनेक आचार्यो उपाध्यायो अने साधुओ विद्यमान छे तेथी विश्वमां शांति सुखनी झांखी जणाय छे. आवी रीते आ विश्वशाळामां परोपकारनुस्वरूप अवबोधीने हे मनुष्य तुं परोपकार कर, परोपकारनी भावनावाळाए आ विश्वमा उपकारकर्म करवामां स्वाधिकारे प्रवृत्त थ, जोइए. For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०१५ મળીને ભિન્ન ના થાશો - છે જ આચાર્ય બુદ્ધિસાગરસૂરિજી મળ્યા તો હો મળી જાણો, હજારો સંકટો સહીને, વિચારીને વિચારો એ, મળીને ભિન્ન ના થાશો. ૧ પડે જો દૃષ્ટિમાં ભેદો, પડે આચારમાં ભેદો, કરી ઝટ ચિત્તને મોટું, મળીને ભિન્ન ના થાશો. વિચારો બહુ કરશે પૂર્વે, મળ્યા પહેલાં ઘણી વેળા, તજીને સ્વાર્થ સંબંધો, મળીને ભિન્ન ના થાશો. પડે જો ચિત્તમાં આંટી, મળ્યા પણ નહિ મળે સારું, ભલે આગળ ચઢો ભાવે મળીને ભિન્ન ના થાશો. મળ્યા જે અજ્ઞતા યોગે, મળ્યા જે મોહના યોગે, મળ્યા તે નહિ મળ્યા જાણો, મળીને ભિન્ન ના થાશો. ૫ વપુથી મેળ ના સાચા, નથી એ મેળ હસ્તોથી, હૃદયના શુદ્ધ સંબંધ, મળીને ભિન્ન ના થાશો. વપુમાં શસ્ત્ર ભોંકાતાં, વપનો નાશ પણ થાતાં. સહજ એ ધર્મ સંબંધે, મળીને ભિન્ન ના થાશો. નયોની બહુ અપેક્ષાએ, મળાતું સુવિચારોથી, મળાતું નય અપેક્ષાએ, મળીને ભિન્ન ના થાશો. મળ્યા પૂર્વે સહુ સાથે, મળો છો સર્વની સાથે, વિચારી સ્યાદ્વાદે એ, મળીને ભિન્ન ના થાશો. નથી ખાલી મળ્યા પણ કંઈ, હજુ મળશો સહુ સાથે, અનુભવ જ્ઞેય જ્ઞાન એ, મળીને ભિન્ન ના થાશો. મળી વ્યાપક બન્યા સૌથી, ગ્રહણ નો ત્યાગવાનું શું? અહો એ જ્ઞાનને જોયે, મળીને ભિન્ન ના થાશો. ૧૧ અનુભવ જ્ઞાનીના ઘટમાં, મળ્યાના ભેદ સૌ જાણે, બુધ્યબ્ધિ સન્ત લોકો એ, મળ્યા મળતા મળી રહેશે. ૧૨ For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Beyond Doubt Acharya Padmasagarsuri Then he began to wonder in amazement if the magnificent personality could be Lord Vishnu, the orientator (Palan Karta) of the Universe. But then Lord Vishnu was dark-complexioned, with Goddess Sri Lakshmi by his side, with Shankha', Chakra', gadha3, and Padma* in his four hands, and also had Garuda as his vehicle; his abode is the hood of Seshanaga in contrast to the personality of one before him. Then he thought if the person could be Lord Shiva, He had to condemn even the third possibility, as Shiva had three eyes, accompanied with Goddess Parvati and rode on the Nandi and Lord Mahavira did not seem to have any of these features of Lord Shiva. 5 Indrabhuti also had to drive away the thought of the Lord of Lords being Kamadeva, the God of Love, for he had Rati, the Goddess of Love along with him. He could not identify Him as Lord Indra, for Indra had a thousand eyes and had his wife Goddess Shachi with him. He rode on the heavenly elephant, airavta and carried with him the Vajra wherever he went. 6 But the personality infront of his eyes was extremely simple, unaccompanied but still magnificent and His face glittered like diamonds and precious jewels. He also could not think of the person being a Vidyadhara' or Kuber the God of Wealth or King Nala, for of all these Gods the kings were either bedecked with ornaments or were possessors of infinite treasure and riches. But the person seated on the throne seemed to be a renunciated soul, having renounced all worldly pleasures and seemed to be a great YogiR. Though on His holy body there was not a single ornament, He seemed to be most attractive and handsome. Having tried to trace the 1. conch, 2. wheel, 3. mace, 4. lotus, 5. bull, 6. a weapon, 7. human beings processing super natural powers, 8. a person practicing sadhana, For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०१५ person's identity and got failed, Indrabhuti began to compare him and identify him with the elements of Nature. Indrabhuti observed: क्षारो वारिनिधिः कलकंकलुषश्चन्द्रो रविस्तापकृत्, पर्जन्यश्चपलाश्रयोध्रपटलादृश्यः सुवर्णाचलः। शून्य व्योम रसाद्विजिह्वविधृता स्वर्धामधेनुः पशुः, काष्ठ कल्पतरूदृषत्सुरमणिस्तत्केन साम्यं सताम्? ।। One cannot compare him either with the sea, the Moon, the Sun, the clouds, the sky or the earth. Each one though famous and deep, pleasant, bright, charged, clear and mounted respectively, have some defect or the other. The sea is salty, the moon is blemished; the sun is too hot and torturous; the clouds are empty at times; the sky is invisible and the earth by all means needs a support. Whereas the one before his eyes is devoid of all defects and shortcomings. But His personality seems to be as deep as the sea, as pleasant as the moon, as bright as the sun, as charged as the thundering clouds and is also not a vaccum like the sky and does not need any support as the Earth needs one. He is also unlike Kamadhenu, Kalpavraksha or Indramani' for Kamadhenu is an animal, Kalpavraksha belongs to the plant kingdom and Indramani is altogether a non-living entity. Indrabhuti tried very hard to find someone or something in this world with which he could compare the solemn person before him. He found none among the heavenly beings and the elements of Nature. He seemed to be beyond all elements. Indrabhuti then turned to the surroundings of Lord Mahavira and was astonished at what he observed to be the effects of the deep resoluted power of the speech of the Lord. । सारंगी सिंहशावं स्पृशति सुतधिया नन्दिनी व्याघ्रपोतम् मार्जारी हंसबाल प्रणयपरवशात् कोकिकान्ता भुजंगम्। 1. divine gem For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 10 MARCH-2015 वैराण्याजन्मजातान्यपि गलितमदा जन्तवो न्ये त्यजन्ति श्रुत्वा साम्यैकरूढ प्रशमित कलुष योगिनं क्षीणमोहम् ।। One who is equanimous and impartial to all creatures and one who has conquered all passions and sense-pleasures, only His speech can be so powerful and effective on hearing which even staunch enemies abandon their enmity and become friends. Whenever the great Tirthankars sermoned (preached), the deer and the lions' cubs, the cow and the tiger's young one, the wild cats and the swans lived together in one place, as if they all belonged to one and the same family. The peacock and the snake too live happily in one place without any fear, and this is all due to the powerful speech and equanimous personality of the Supreme Lord. It has rightly been said: अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः ॥ i.e. wherever Ahimsa i.e.non-violence, has been installed, the creatures living there, abandon enmity and fear and live together. The whole atmosphere and surroundings undergo a complete transformation. The place becomes holy and hence the animals which are enemies by birth become friendly. A very interesting incident took place which is worth illustrating in this context. (Continue...) For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बुदगिरितीर्थचैत्यपरिपाटी हिरेन के. दोशी मध्यकालीन जैन साहित्यनो खजानो एनी कृति संख्या अने एना विषयोना कारणे वैविध्यपूर्ण रह्यो छे. एक अंदाज अनुसार मध्यकालीन साहित्यनी प्रकाशित कृतिओनी संख्या करता अप्रकाशित अने अनुपलब्ध साहित्यनी संख्या वधी जाय छे. संपादको माटे आ वात प्रोत्साहक कही शकाय एम छे. कृतिनी संख्यानी साथे कृति गत विषयोमां पण प्रचुर मात्रामा विविधता जोवा मळे छे. कवि द्वारा करातुं विषय वर्णन अने एना तमाम पासाओने समावी लेती मुग्ध रचनाओ मानवमनमां कवि अने कृतिनी अनोखी छाप उपसावी जाय छे. आवी ज एक लघुकृति अत्रे वाचकोना स्वाध्याय हेतु प्रकाशित करी छे. कृति परिचय वि. सं. १६९७मां कविए आबुतीर्थनी यात्राना वर्णन स्वरूपे कुल २४ कडीमां आबु तीर्थनी विगतोने आबू चैत्यपरिपाटीमां आलेखी छे. कृतिनी विगतो आबु तीर्थनी द्रष्टिए सामान्य छे. पण आजनी स्थिति अनुसार एनुं मूल्यांकन करता एमांथी घj जाणवा मळी शके छे. कविए प्रथमनी छ कडीओमा अर्बुदगिरिनी आबोहवा अने एना प्राकृतिक सौंदर्यने आवरी लेतुं सुंदर वर्णन आप्यु छे. देलवाडानी पवित्र भूमि, जिनालयोनुं आह्लादक वातावरण, अनुपम प्रशमभर जिनबिंबोए कविमानस उपर उपसावेलु प्रतिबिंब कृतिना शब्दोमां जोवा मळे छे. विमलवसहीना वर्णननी वात आठमी कडीथी प्रारंभीने तेरमी कडी सुधी विस्तरे छे. कृतिनी अग्यारमी गाथामां कवि विक्रम संवत् १०८८मां विमल मंत्रीए करावेला विमलवसहीना निर्माणनो उल्लेख करी वसहीमा बिराजमान पाषाण अने धातुना जिनबिंबोने वंदना करी त्यांथी लुणिगवसहीना नेमिनाथ भगवानना दर्शन कर्यानो उल्लेख करे छे. भीमाशाहे बंधावेल पित्तलहर मंदिरने कवि अहीं भीमप्रासाद तरीके संबोधे छे. ___ आगळनी सोळमी कडीमां कविए चौमुखजी मंदिरना नामे प्रसिद्ध खरतरवसही अने एना निर्माणकर्ता तरीके साह जसूनुं नाम नोंच्यु छे. मुनि श्री जयंतविजयजीए तीर्थराज आबु नामना पोताना पुस्तकमां खरतरवसहीना बंधावनार बाबते स्पष्ट उल्लेख For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 12 MARCH 2015 मळतो न होवानी वात करी छे. साथे साथे आ जिनालयमां दरडा गौत्रीय ओशवाल संघवी मंडलिक अने तेमना स्वजनो द्वारा भरावेल प्रतिमाओ विशेष प्रमाणमां प्राप्त थती होय आ जिनालयना बंधावनार मंडलिक होवानी संभावना व्यक्त करी छे. ज्यारे प्रस्तुत कृति चौमुख जिनालयना कर्ता तरीके साह जसूनो उल्लेख करे छे. आ बाबते विशेष प्रमाण मळे तो वधु जाणवा मळी शके. आबूतीर्थना जिनालयोनुं वर्णन कर्या बाद अचलगढना जिनालयोनो उल्लेख कर्यो छे. कविए आबु - अचलगढनी स्पर्शना कर्या बाद आ कृतिनी रचना करी होवानो संभव छे. एवं कृतिनी तेवीसमी अने चोवीसमी कडीमां मळता उल्लेखोथी जाणी काय छे. छेल्ली कडीमां कृतिनी रचना संवत अने विशालसोमसूरिजीना सान्निध्यनी ध करी कवि कृतिने पूर्ण करे छे. कर्ता परिचय ईडरमां पोसीना पार्श्वनाथ भगवाननी सहायथी वि. सं. १६९६मां रचेला विजयाशेठ - विजयाशेठाणी रासनी अंतिम कडीओमां जणाव्या अनुसार राजरत्न वाचक आचार्य श्री लक्ष्मीसागरसूरि - विशालसोमसूरिजीनी परंपराना छे. जैन गुर्जर कवि भाग ३मां जणाव्या अनुसार उपाध्यायश्रीना नामे विजयशेठ - विजयाशेठाणी रास अने नर्मदासुंदरीना रासनो उल्लेख मळे छे. गुजराती साहित्य कोश (मध्यकाळ) १ना पेज नं. ३५२ उपर ७०९ कडीनी 'राजसिंहकुमार रास (र. सं. १७०५, पोष - १०, रविवार) ' कृतिनो उल्लेख प्राप्त थाय छे. भाग Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए सिवाय ज्ञानमंदिरमां संगृहीत माहिती अनुसार राजरत्न वाचकना नामे नीचे मुजबनी कृतिओ प्राप्त थाय छे. आ अंकमां प्रकाशित अर्बुदगिरिचैत्यपरिपाटी सिवायनी बीज कृतिओ प्रायः अप्रकाशित छे. अत्रे नोंधेल कृतिओ सिवाय राजरत्न उपाध्यायनो उल्लेख करती अन्य रचनाओ पण प्राप्त थाय छे. परंतु, ए कृतिमां कर्ता विषयक विशेष स्पष्टता न होवाथी ए कृतिओने अत्रे नोंधी नथी. जेनी वाचकोए नोंध लेवी. १ १. अर्बुदगिरि चैत्यपरिपाटी, कडी - २४ २. गिरनारमंडन नेमिजिन स्तवन, कडी - ५२' आदि- श्रीजिनवदन निवासिनी, श्रुतदेवी धरी ध्यान । मिनाथ गुण वर्ण, कविजन मांगी मान ॥ १॥ १. प्रत नं. ४८९३५, २. प्रत नं. ८४४४० For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 श्रुतसागर मार्च-२०१५ अंतिम - तपगछपति रे श्रीविशालसोमसूरिसरु रे, सुविहित मुनिजनराय । जयवंता चिर रे हरखई रे, कहि राजरतन उवझाय मंगल करु रे ॥५२॥ ३. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, कडी - १३' आदि - सुरतरु मुज अंगणि फलिउ रे, तूठउ अमृत जलधार मेरे साहिब । मनह मनोरथ सवि फल्या रे, दीठउ तुज दीदार मेरे साहिब ॥१॥ अंतिम - संवत सोलपंचा[इ रे, ईडरि रहिया चुमास मेरे साहिब । राजरत्न पाठक वीनवइ रे, प्रभु पूरउ मननी आस मेरे साहिब ॥१३॥ ४. ज्ञानपंचमी स्तुति, कडी - ०४' आदि - श्रीनेमिसर समुद्रविजयसुत, त्रिभोवन जन हितकारीजी अंतिम - चुविह संघ मनोरथ पूरवइ, राजरतन सुखदाताजी ५. कंसारीमंडन पार्श्वजिन स्तुति, कडी - ०४' आदि - मदमदनगंजन भीडिभंजन पार्श्व जिन जयकार कंसारीमंडन दुरित खंडन नमुंवारोवार अंतिम - गच्छाधिराज विशालसोमसूरि धरइ जेहनुं ध्यान । अतिघणइ ऊलटि राजरत्नह वाचक करइ गुणगान् ॥४॥ ६.विशालसोमसूरि भास, कडी - ०७ आदि - गच्छनायक गुणन(नि)धि गायु, मनवंछित सवि फल पायु । एह सुरति की बलि जायु लाला रे विशालजी गुरु वंदु ॥१॥ अंतिम - चिर प्रतपु एह गुरुराय, सोवनवरणी जस काय वाचक राजरतन गुणगाय लाला रे विशालजी गुरु वंदु ॥७॥ ७. विशालसोमसूरि स्तुति, कडी - ०२१ आदि - मांनइ महाछत्रपति मोहन गयंदगति, चिदानंद एक चित्ति धरइ। अंतिम - तपगच्छ कु राय भ[र]दो मेरे भाय(ग्य), राजरत्न कहि आनंद भरे ॥२॥ शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवनमा वि. सं. १६९५मां ईडर चातुर्मासना उल्लेखनी साथे १. प्रत नं. ४०७३४, २. प्रत नं. ४८९३५, ३. प्रत नं. ८१३७१, ४. प्रत नं. ४४४८४, ५. प्रत नं. ४४४८४ For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 14 MARCH 2015 वि. सं. १६९६ अने वि. सं. १७०५ना रचनावर्षने जणावती बे रचनाओना संदर्भे तेओ सत्तरमी सदीना उत्तरार्धथी अढारमी सदीना पूर्वार्धमां विद्यमान हता एवं अनुमान करी शकाय छे. कर्ता संबंधी अन्य विशेष माहितीओ प्राप्त थई शकी नथी. प्रत परिचय प्रस्तुत प्रत आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरमां ४८९३५ नंबर उपर संग्रहीत छे. प्रत कुल बे पत्रोनी छे. प्रत परिमाण २७x९१.५० छे. प्रतमां १३ लाईनमां ३५ जेटला अक्षरोनुं आलेखन थयुं छे. प्रतना अधिक उपयोगना कारणे किनारीओनो साधारण भाग खवाई गयो छे. तो शाहीना कारणे चोंटी गयेला पत्रो खोलता केटलांक अक्षरोने हानि थई छे. अक्षरो सुंदर छे. प्रत अने कृति संबंधी विशेष विगतो कैलासश्रुतसागर ग्रंथसूचि भाग १२मां प्रकाशित थई गयेल छे. प्रतमां प्रथम श्री अर्बुदगिरि चैत्यपरिपाटी अने त्यारबाद ज्ञानपंचमी स्तुतिनुं आलेखन थयुं छे. अर्बुदगिरितीर्थ चैत्यपरिपाटी HD|| ॥ राग केदारउ ॥ ॥ साधु वचन श्रवणे सुणी रे हां - ए ढाल ॥ ॥ नर्मदासुंदरीना रासनुं ॥ अरबुदगिरि रलीयांमणउ रे हां, बारजोयण विस्तार मेरे मनि वसिउ । गिरिवरनी पाजइं चढिउरे हां, आणी हरख अपार मेरे मनि वसिउ ॥ १ ॥ भाव सहित करउं जात्र मूंकी कलिमलउ, एह तीरथ सिरदार धरणी सिरितिलउ | आंकणी ॥ वंजाल वन गाह रे हां, चढतु वि (व)समी पाज मेरे मनि वसिउ । वसिष्टदेव मठि आवीउ रे हां, रामचंद गुरुराज मेरे मनि वसिउ ॥२॥ For Private and Personal Use Only करजोडी ऊभउ रहिउ रे हां, आगलि पाहाल परमार मेरे मनि वसिउ । करमदी करणी केवडी रे हां, फणस जंबीर अनार मेरे मनि वसिउ ॥ ३ ॥ - भाव सहित करउं जात्र... भाव सहित करउं जात्र... Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर ____मार्च-२०१५ गोमुखी गंगा तिहां वहइरे हां, नाहइं मिथ्यामती(ति) लोक मेरे मनि वसिउ। तिहांथी आघउ चालीउरे हां, ऊतरिउ मन भंग थोक मेरे मनि वसिउ ॥४॥ भाव सहित करउं जात्र... नालेरासरे पेखीउरे हां, कौतक जोयां वडी वार मेरे मनि वसिउ। औषधी तिहां उगी घणीरे हां, जाइ जूही कणी(णि)आर मेरे मनि वसिउ॥५॥ भाव सहित करउं जात्र... अंब कदंब अर्जुन घणारे हां, व(ब)कुल चंपक बहु वृंद मेरे मनि वसिउ। दमणउ मरूउ मोगरुरे हां, वउलसरी मचकुंद मेरे मनि वसिउ॥६॥ भाव सहित करउं जात्र... आगलि दीठी अर्बुदा रे हां, वालीनाह अहिठाण मेरे मनि वसिउ। अनुक्रमिं देलवाडइ आवीउरे हां, मोटा देउल मंडाण मेरे मनि वसिउ॥७॥ भाव सहित करउं जात्र... भोगल उल्लंघी(घि) मांहि गयउरे हां, दीठउ विमलप्रासाद मेरे मनि वसिउ। उत्तंग तोरण अभिनवउरे हां, सुरगिरिसिउं करइ वाद मेरे मनि वसिउ॥८॥ भाव सहित करउं जात्र... भमतीइं देहरी घणीरे हां, भद्रप्र(प्रा)साद अतिचंग मेरे मनि वसिउ। कोरणीइं मन हरखीउ रे हां, जोतां नव नव रंग मेरे मनि वसिउ ॥९॥ भाव सहित करउं जात्र... त्रिणि प्रदक्षिण साचवी रे हां, भेटिउ रिषभजिणंद मेरे मनि वसिउ। आरति चिंता सवि टली रे हां, पामिउ अधिक आनंद मेरे मनि वसिउ॥१०॥ भाव सहित करउं जात्र... संवत दसअठ्यासीइरे हां, मंत्री विमल सुजांण मेरे मनि वसिउ। तेणइ ए तीरथ थापीउरे हां, जाणे उदयु भांण मेरे मनि वसिउ॥११॥ भाव सहित करउं जात्र... For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 16 MARCH-2015 पीतलनां पाषाणनां रे हां, बिंब तणु नही पार मेरे मनि वसिउ। ते सवि भावइं भेटता रे हां, वारइ विघन विकार मेरे मनि वसिउ ॥१२॥ भाव सहित करउं जात्र... विमल मंत्री ऊभउ रहिउरे हां, अश्व ऊपरि छत्रधार मेरे मनि वसिउ । वैमानिक दस सुरपती रे हां, गज चढ्या करइं जुहार मेरे मनि वसिउ॥१३॥ भाव सहित करउँ जात्र... विमलवसही वांदी वलिउरे हां, आगलि आविउ जांम मेरे मनि वसिउ। लूंणगवसही मांहि गयुरे हां, दीठा नेमि जिन सांमि मेरे मनि वसिउ ॥१४॥ भाव सहित करउं जात्र... ते दीठइ मनमोहीउ रे हां, हूउ कृतारथ आज मेरे मनि वसिउ। भीमप्रसाद जव निरखीउ रे हां, सीधा सघलां काज मेरे मनि वसिउ॥१५॥ भाव सहित करउं जात्र... चुमुख साह जसू तणु रे हां, से, धरी उहल्लास मेरे मनि वसिउ । हुंबड वसहीइं जिन घणारे हां, दीठा जिमणइ पासि मेरे मनि वसिउ॥१६॥ भाव सहित करउं जात्र... रसीउ वालिंभ(म) नारिसिउरे हां, ऊभउ आनंद पूरि मेरे मनि वसिउ । अचलगढ भणी चालीउ रे हां, पाप पडल सवि चूरि मेरे मनि वसिउ ॥१७॥ भाव सहित करउं जात्र... सांति जिणेसर सोलमुरे हां, भेटिउ कुम(मा)र विहारि मेरे मनि वसिउ। भांड वसही भइंसा जिहांरे हां, सरसां धीर हिउधार मेरे मनि वसिउ ॥१८॥ भाव सहित करउं जात्र... अचलेश्वर देउल तिहां रे हां, जोयु पीतलमय सांड मेरे मनि वसिउ। सरोवर वापी मठ भलारे हां, मोटी तीरथ मांडि मेरे मनि वसिउ ॥१९॥ भाव सहित करउं जात्र... For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर मार्च - २०१५ 17 चुमुख दीठ हवइ मन ठरिउ रे हां, पीतल प्रतिमा बार मेरे मनि वसिउ । भावसहित प्रभु पूजीया रे हां, मरूदेवी मात मल्हार मेरे मनि वसिउ ॥२०॥ भाव सहित करउं जात्र... श्रीकुंथुनाथ जुहारीया रे हां, पासइ पौषधसाल मेरे मनि वसिउ । पीतल बिंब सोहामणां रे हां, वांदुं थई ऊजमाल मेरे मनि वसिउ ॥ २१ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाहनां-मोटां जिन तणां रे हां, भुहिहरां देउल ठांम मेरे मनि वसिउ । रिषभादिक जे जिनवरू रे हां, तेहनि (ने) करुं प्रणाम मेरे मनि वसिउ ॥ २२॥ भाव सहित करउं जात्र... यात्र करी सहू आवीउं रे हां, उच्छव रंग मनोहार मेरे मनि वसिउ । अष्ट महासिद्धि संपदा रे हां, सेवकजन जयकार मेरे मनि वसिउ ॥ २३॥ + भाव सहित करडं जात्र... संवत सोलसत्ताणु रे हां, भेटिउ अरबुदगिरिराय मेरे मनि वसिउ । श्रीविशालसोमसूरि सानधिई रे हां, कहिइ राजरतन उवझाय मेरे मनि वसिउ ॥२४॥ भाव सहित करउं जात्र... * ॥ इति अरबुदगिरि चैत्य परिपाटी स्तवनं संपूर्ण ॥ मुनि माणिक्यरत्न लिखितं प्रतांते प्राप्त पुष्पिका - लिखिता स्थंभतीर्थे श्री. मोहणदे पठनार्थं भद्रंभवतात् लेखक पाठकयोः For Private and Personal Use Only भाव सहित करडं जात्र... Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अढार नातरानीकथा कोमलबेन कमलेशभाई शाह नातलं एटले सगपण, संबंध... सगपणना प्रकाराने वर्णवतुं आ लघु कथानक एटले अढार नातरानी कथा... कथाना माध्यमथी बोध पामी शकाय एवी संभावनाओ प्रबळ होवाथी प्रायः करीने अन्य दर्शनोनी अपेक्षाए सौथी वधु प्रचुर कथा साहित्य आपणी जैन परंपरामां प्राप्त थाय छे. आगम साहित्य पैकी एक “ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र” मां पूर्वकाळे साडा त्रण करोड कथाओ प्राप्त थती हती. प्रभव चोरना प्रतिबोधथी उंचकाती आ कथा वैराग्यना परिणाम अने कर्मसत्तानी व्यवस्थानु सचोट उदाहरण छे. अढार प्रकारे सगपणने आवरी लेती कथा खरेखर वैराग्यभावने प्रबळ करी आपे छे. जूनी गुजरातीमां लखायेली छे. एनो अर्थ पण सुगम छे. केटलीक जग्याए अर्थ मेळववो कठिन जणाय छे, पण एवा स्थानो ओछां छे. मूळ कृतिमां ह्रस्व/दीर्घना सुधारा करी लेवामां आव्या छे. ए सिवाय पाठने वधु स्पष्ट करवा ()मां अर्थसूचक अक्षरो आप्या छे. विक्रम संवत् १८७१ना प्रथम भादरवा वदि १४ना दिवसे रत्नसागर मुनिए आ प्रतनुं आलेखन कर्यु छे. स्थळ के गुरुपरंपरानो उल्लेख न होवाथी रत्नसागरजी विशे वधु माहिती आपी शकाई नथी. आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरमा क्रमांक नं. ३८४७५मां आ प्रत सचवायेली छे. आ प्रतमां कुल ३ पाना छे. आ प्रतनी लिपी देवनागरी छे. अने भाषा जूनी गुजराती छे. आ प्रतनी लंबाई २३ से. मी. अने पहोळाई १२ से.मी. छे. एक पेजमा १४ लाइनो छे. अने दरेक लाईनमा ३९ जेटलां अक्षरो आवेला छे. अक्षरो मोटा अने सुवाच्य, सुडोळ छे. - विशेष पाठने लाल रंगथी अंकित करेल छे. पाणीना अने दीमकना कारणे प्रतनो केटलोक भाग खराब थयो छे. खास करीने एक साईडना हांसियाना भागने विशेष नुकशान थयुं छे. आ प्रतनी विशेष विगतो कैलासश्रुतसागर ग्रंथसूचि भाग ९मां प्रकाशित छे. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 19 मार्च-२०१५ अढार नातरानी कथा इहां वली जंबुस्वामी प्रभवा चोरने बुजववा भणी अढार नातरानी कथा कहे छे. आ जंबू नामाधि(द्वी)पने वी(वि)षे भरत नांमा क्षेत्रने विषे मिथु(थि)ला नांमा नगरीने विषे कुबेरसेना नामें वेस्या रहे छे. ते मा(म)हा रुप पात्र छे. एकदा समयनें विर्षे घणा पुरुष संघाते सुख भोगविलास करतां उदरने विषे गर्भ रह्यो ते गर्भ पुरण थये पुरण मासे तिणें बेटो बेटी युगल जाओ ते वेस्या मनमां विचारे जे ए बाळकने खिणखिण जोवू खिण-खिण धोवु अने धवराव, ते कुण करे. इम चिंतवी करी ने दस में दी(द)हाडे बीहूं बालकने हाथ नामांकित कुबरदत्त कुबेरदत्ता ए बे नामनी मुद्रा बे करावी ते वींटी बे जणाने हाथमां घाती ते वींटी घालीने पोतानी पेइ (पेटी) हती इमांहि पटोले वींटी मक्यां मिथला नगरी अने सोरीपुर नगर ते विचें (वच्चे) जमना नदि(दी) वहे छे. ते नदीमांहि प्रवाह्यां. तें पेटी वायराने जोगें करी घणो वायसवाय वाते थके सोरीपूर नामा नगर तेहने कांठे आवी ते सोरीपूर नांमा नगर ने विषे घणा विव्यहारीया वसे छे. ते एकदा समयनें विषं बे विवहारीया नदीने कांठे आव्या. ते वीवहारीये ते नदीमां वेगलाथी पेटी आवती दीठी. आवती देखी करीने बेजणा मांहो-मांहे वीचार करवा लागा जे ए पेटी माहे जे हसें ते आपणे बे जणा अरघो-अरध वेची लेवु. एहवो वीचार कर्यो करीने नदी मांहेथी पेटि(टी) काढीने पोताना घरने विषे लेई चाल्या. ते पेटी बे जणा आगल बेसी करीने पेटी उघाडी उघाडी(ड)तां थका मांहेथी बे बालक दीठा. ते मनमांहे विचार करवा लागा जे ए बालक कुण हशे? कुंण जाति हशे? एम विचारी करीने जेने पुत्त नोतो तेणे बेटो लीधो जेने पुती नोती तेणे पुत्री लीधी. एम बे जणा जुजुया लइ गया तेना हाथमां वींटी छे. ते जोईने नाम दीघां. ___ अनुक्रमे बालकवस्ता मेली करी अने जोबनावस्ता पाम्यां मा(म)हा भण्यागण्या पुरुषनी ७२ कळा अने स्त्रीनी ६४ कळा ते भण्या छे. अनुक्रमे बे व्यवहारीया विचारे जे ए बालकने कीहां परणावीइ तेए बे माहो-माहे सगाई करीने परणाव्या ते बे जणा माहो-माहे सुख कइ प्रकारना सुख भोग विलास करे छे. ' एम करता थकां गोख ने विषे बेठां थका सारे पासें सोगठे रमतां एकना हाथनी मुद्रडी देखी नाम वाच्या तीहां वाचतां थकां भाइ-बेहननो संबंध जाण्यो ते किम बीहूं रुपे बीहुं सरीखा बीहूं नाम एक तेणे करी भाई-बहेननो संबंध जाण्यो तिवारे बिहुना For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 MARCH-2015 SHRUTSAGAR मन मांहि उचाट हुओ ति वारे कुबेरदत्ता चीतवे जे में घणो अपराध कीधो. भाईने वर्यो, भाइनें भोगव्यो, ते सवी कर्मनी वात छे एम विचारी करीने संसार असार जाणी करी कुबेरदत्ताइ दीक्षा लीधी. साधुना आचार पाले छे. मोक्षनी जेने वांछा छे. एहवी जे कुबेरदत्ता साधवी वीचरे छे. तद्यथा कुबेरदत्त मनमां विचारे जे आ नगरीमां मुजथी रेवाए नहीं ते कीम घरोघर एम केहवाए जे बेन वरी, बेन भोगवी, ए वात सरव नगरीमा प्रगट थई एहवो() चीत(वी)ने कुबेरदत्त वेपारनें अर्थे तीहाथी चाली नीकल्यो. चालई [थ] को पोतानी जे जन्मभोम ते मिथुला नामां नगरी तेहमां कइ जे वेस्याउ रहे छे. तेह .........पोतानी माता तेहना घरनें विर्षे अजाणतो थको घरे रह्यो. ते वेस्याथी दिन-दिन प्रति केइ नवनवा सुख भोगवे ते भोगवतां थकां तेहनि(ने) पुत्र थयो. एतलें ते पुत्रनें तो बाहरली ओसरीने विर्षे पालणामां सुवाड्यो छे. अनें कुबेरदत्त वेस्या ए बे घरमां भोग-विलास करे छे. तं जहा अने इहां कुबेरदत्ता साधवी महासती छे. तेहने संजम पालतां कहीजे छठ, अठम इत्यादि तप करतां चारील पालतां क्षमा आणतां अवधिज्ञान ऊपनो, जानें करी महासतीइ जोयु जे कुबेरदत्त माहरो बंधव माहरो जे भरतार ते किहां छे. इम जोतां थकां पोतानी माता मिथुला नांमा नगरीने विषे तेहने घरे अजाणतो भरतार पणे रह्यो छे. धिगपडो एजीव प्रते जे जीव मोहे करीने काज-अकाज कांइ न जाणे अने जीवे अनंतिवार धन आउखा भोग सुखने विषे कहीइं तृपति न पाम्यो. ___ एहवो जे साधवीजी मन मांहे विचार करे विचार करीने महासती चीतवे. तिहां जई बांधवने बूझवू एम वीचारीने पछे महासती पोतानी गुरुणीनी आज्ञा मांगे कहो हे गुरुणीजी तुमारी आज्ञा होइ तो मिथुला नगरीइं माहरो बंधव कुबेरदत्त तेहनें प्रतिबोधवा जाउं? ति वारे गुरुणीइं आज्ञा दीधी जाओ सुखें, लाभालाभनुं काम छे. . __इम आज्ञा दीधा पछी महासतीइं तिहांथी विहार कीघो, विहार करतां मथुरा नगरीइ आवी घणा उपाश्रय जोती विचरति जिहां कुबेरदत्ता वेस्यानो घर पूछति तिहां पोहति तिहां वेस्याइं आवती माहासती ने बोलावी भले तुमो आव्यो. सुखे तुम्हे इहां रहो आ जे माहरी चीत्रसाली छे. तेहने विषे चोमासु रहो पण पुण्यनी वार्ता कहेशो मां अमारा घर टाली एहवा वचन वेस्याइ साधवी प्रते कह्या हवे एकवार बालक पालणे सूतो रोवा लागो ति वारे माहासति कहे बंधव जागो पछे बालकनें बोलावती रोतो राखी महासती बालक प्रति इम कहे तारे माहरे छ नांतरानो सगपण छे. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०१५ ते कहे छे १. आपण बीहुने एक माता छे ते भणी तुं माहरे भाई २. भरतारनो बेटो हुइ ते भणी तुं माहेरे बेटो हुई. ३. माहरो भरतार तेहनो तुं भाइ ते भणी ते मारे देउर हुइं. ४. माहरा भाइनो बेटो हुइ तेह भणी तु माहरे भत्रीजो. ५. माहरी मातानो भरतार तेहनो तुं भाई तेह भणी तुं माहरो पीतराीओ. ६. शोकना बेटानो बेटो तुं ते भणी तुं माहरे पोतो. एछ नातरा बालक प्रति माहासतीइ कह्यां, हवे छ नातरा भाई प्रते(ति) महासती कहे ते किहा १. आपण बिहुं ने वेस्या माता हुइं ते भणी तुं माहरे भाई. २. माहरी मातानो भरतार तुं ते भणी तुं माहरे पिता हुओ. ३. पीतरीयानो तुं बाप तेह भणी माहरे वडाओ हुओ. ४. तु मुनें परण्यो तेह भणी तु माहरे भरतार हुओ. ५. सोकनो बेटो तेह भणी तुं माहरे बेटो हुओ. ६. देउरनो बाप ते भणी तु माहरे ससरो हुओ. एछ नातरा भाई प्रति कहा हवे छ नातरा माता प्रति महासती कहे छे. ते कीहा १. मुने ते जणी तेह भणी तुं माहरे माता हुइ. २. पीतरीयानी माता तेह भणी माहरे वडी आइ हुंइ. ३. मारा भाईनी कलत्र तुं ते भणी माहरे भोजाइ हुइ. ४. सोकनां बेटानी कलत्र तेह भणी माहरे वहु हुइ. ५. माहरा भरतारनी माता तेह भणी माहरी सासु हुइ. ६. माहरा भरतारनी कलन तेह भणी तूं माहरे सोक हुइ. एछ नातरा माहासतीइ माता प्रते कह्या. जमले नातरा अढार महासतीइ कह्या । वेस्या सांभली करी कोपी करी महासतीने कहे तमे एहवं असमंयस कीम बोलो For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR MARCH-2015 एहवू सांभलीने महासतीइ वेस्या ने कहे अमे कुडु न बोलुं, युगतुं वचन बोलुं इम कहीने महासतीइं कुबेरदत्तने अनें वेस्याने सघलो संबंध कह्यो. एहवा वचन सांभळी बीहुने पश्चाताप हुओ. ए संसार असार जांणीने अहो एवं जीवे अनंतिवार सुख पाम्या पण जीवनें तृष्णा पूरण थई नहीं इम करतां वैराग्य ऊपनो ते इहां बीहुंजणा वैराग्य पामीने साधु पासे दीक्षा लीधी इम घणा छठ, अठम इत्यादि तप चारीत्र पालतां घणो तप तपी कर्मक्षय करी बीहुंजणा देवलोके पोहता ॥ इम जंबुकुमर प्रभवा प्रति कह्यो । एस्यो संसारमांहि कुटंबनो संबंध छे. तेह भणी तुं संसारने विषे कुटंबनो मोह किसो किजें ए संसारने विषे कोइ कोइनो नथी, सहु आप स्वारथी छे. अनें ए जीव जायो तो मरवानें काजें तेह भणी एह कुटंब ऊपरे मोह न कीजे इम जंबु प्रभवा चोर भणी अढार नातरानी कथा कही। ॥इति अढार नातरानी कथा संपूर्ण। ॥लि. मु. रत्नसागर ॥॥ सं. १८७१ प्रथम भाद्रवा वदि १४॥ अहोभाव अल्प मुलाकातनो आचार्य श्री पद्मसागरसूरीजी के चरणो में वंदन । ज्ञानमंदिर हमारे देश की संस्कृति एवं विरासत को संरक्षित करने का एक अति महत्त्वपूर्ण, प्रेरणास्पद भगीरथ प्रयास है । संस्था के प्रबंधन को मेरा प्रणाम एवं आभार डॉ. ललित के. पंवार IAS, सचिव पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में पत्र-पत्रिकाओं की सूचना संकलन पद्धति एवं उसका लाभ डॉ. हेमन्त कुमार किसी भी पुस्तकालय के दो मुख्य कार्य होते हैं. तएक पुस्तकें, हस्तप्रतें, मैगजीन एवं अन्य पाठन सामग्रियों का संकलन करना एवं दूसरा उन पाठन सामग्रियों को योग्य वाचकों को पठन, संशोधन, संपादन आदि कार्यों हेतु उपलब्ध कराना. लगभग सभी पुस्तकालयों की अपनी-अपनी व्यवस्था और कार्यप्रणाली होती है. कहीं सूचनाओं का संकलन सामान्य तो कहीं मध्यम तो कहीं विस्तृत रूप से संकलन किया जाता है. प्रायः सभी पुस्तकालयों में पुस्तकों के साथ पत्र-पत्रिकाओं का भी संकलन एवं रख-रखाव किया जाता है एवं वाचकों को योग्य सूचना उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पत्रिकाओं की सूचनाओं का संकलन किया जाता है. जब कोई किसी ग्रंथालय में जाकर वहाँ संकलित पत्र-पत्रिकाओं अथवा उनमें प्रकाशित किसी निबन्ध के सम्बन्ध में अपनी अपेक्षित पत्रिका या लेख से संबंधित किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त करना चाहता है तो, इसके लिए पुस्तकालय के कर्मचारी रजिस्टर में से उस पत्रिका का वर्षानुक्रम से अंक निकालकर वाचक को दे देते हैं. उन रजिस्टरों में अंकित पत्रिकाओं का विवरण इतना संक्षिप्त होता है कि वाचक को उसकी आवश्यक पत्रिका या अपेक्षित लेख प्राप्त करने में अधिक समय लग जाता है, कभी-कभी वाचक को निराशा भी हाथ लगती है. यदि वाचक को यह पता नहीं हो कि अपेक्षित लेख किस पत्रिका में और किस अंक में प्रकाशित हुआ है, तो शायद उसे लेख मिल भी नहीं पाएगा, जबकि वह लेख उस ग्रंथालय में संगृहीत पत्रिकाओं में होता है. इसलिए यह पद्धति अधिक प्रभावकारी सिद्ध नहीं हो पाती है. जिसके कारण एक पृष्ठ का निबन्ध प्राप्त करने हेतु वाचक एवं कर्मचारियों का कई घंटों का समय निकल जाता है. वाचकों की ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में स्वविकसित कम्प्यूटरीकृत प्रोग्राम में संगृहीत सभी नई व पुरानी पत्रिकाओं एवं उनमें प्रकाशित संशोधन परक लेखों की सूक्ष्मतम सूचनाओं को कम्प्यूटरीकृत सूचना पद्धति के अनुसार संगृहीत किया जाता है, जिससे वाचक अल्प For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR MARCH-2015 समय में ही अपनी अपेक्षित सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है. यहाँ आने वाले वाचक यह शीघ्रतापूर्वक जान सकते हैं कि पलिका का वास्तविक स्वरूप क्या है? उस पत्रिका में कितने पृष्ठ हैं? उसके कौन से पृष्ठ पर किस लेखक की कौनसी रचना प्रकाशित की गई है? अपेक्षित लेख किस मैगजीन के किस अंक में प्रकाशित किया गया है? यह अंक किस वर्ष का है? यह अंक किस बाइन्ड में है? उस बाइन्ड में कितने और कौन-कौन से अंक हैं? कौन सा मैगजीन किस विषय से सम्बन्धित है? उस मैगजीन के उस अंक के सम्पादक, सहसम्पादक आदि कौन हैं? उस मैगजीन का प्रकाशक कौन है? वह मैगजीन कहाँ से प्राप्त हुई है? भेंट या खरीद से, किस तरह प्राप्त हुई है? ये सारी सूचनाएँ आसानी से जानी जा सकती हैं. उसकी अवस्था, श्रेष्ठ/मध्यम/जीर्ण में से कौन सी है? उस पत्रिका का वाचक स्तर क्या है? इसका भी तुरन्त ख्याल आ जाता है. इससे वाचक एवं कर्मचारी दोनों का समय बचता है और वाचक को अपेक्षित सूचनाएँ शीघ्रता से प्राप्त होती है. पत्र/पत्रिका/सामायिक/ Magazine __वैसी मुद्रित सामग्री जो एक निश्चित नाम, एक निश्चित अवधि, एक निश्चित प्रकाशक, एक या अधिक निश्चित संपादक, एक निश्चित पृष्ठ संख्या, एक निश्चित प्रतियाँ, एक निश्चित पंजीकरण संख्या (यदि पंजीकृत हो), एक या अधिक निश्चित भाषा, एक या अधिक निश्चित विषय आदि के साथ साप्ताहिक, पाक्षिक आदि निश्चित अवधि में हमारे समक्ष आती रहती है, उसे पत्र/पत्रिका/सामायिक/Magazine कहा जाता है. पत्र-पत्रिकाएँ दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक, वार्षिक आदि अपनी निश्चित अवधि वाली होती हैं मैगजीन अंक उपरोक्त सूचनाओं के साथ मुद्रित हुई उस पत्रिका की प्रत्येक नवीन सामग्री को उसका अंक कहा जाता है. मैगजीन अंक कॉपी उपरोक्त सूचनाओं के साथ मुद्रित हुई प्रतियों को अंक कॉपी कहा जाता है. संस्था में प्रत्येक अंक की एकाधिक प्रतियाँ हो सकती हैं. मैगजीन अंक बाइन्ड उपरोक्त सूचनाओं के साथ मुद्रित प्रतियों को लाइब्रेरी में सुरक्षित रखने हेतु For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मार्च - २०१५ श्रुतसागर 25 आवश्यकतानुसार यथायोग्य बन्डल बनाया जाता है, जिसे अंक बाइन्ड कहा जाता है. बहुधा यह मैगजीन के वर्षानुसार होता है, या सुविधानुसार नियत संख्या में प्रतियों का धारक होता है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में वाचकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पत्रिकाओं से सम्बन्धित निम्नलिखित सूचनाओं की प्रोग्राम में प्रविष्टि की जाती है. मैगजीन नाम मैगजीन अथवा सामायिक के मुखपृष्ठ पर जो नाम छपा होता है, वह मैगजीन का नाम Magazine Name कहलाता है. जैसे श्रुतसागर पत्रिका की प्रविष्टि करने के लिए यहाँ मात्र “ श्रुतसागर” इतना ही प्रविष्ट किया जाता है. इस प्रकार की प्रविष्टि से कोई वाचक यदि श्रुतसागर पत्रिका मांगता है तो हम शीघ्र ही कम्प्यूटर में श्रुतसागर नाम से सर्च करते हैं. सर्च करने के पश्चात् श्रुतसागर पत्रिका से संबंधित सारी सूचनाएँ स्क्रीन पर आ जाती है, फिर ये सूचनाएँ वाचक को उपलब्ध कराते हैं. मैगजीन विशिष्टता संकेत मैगजीन जिस विषय से सम्बन्धित हो, उसका संकेत (Code) यहाँ प्रविष्ट किया जाता है. उसे मैगजीन विशिष्टता संकेत कहा जा सकता है. जैसे- धार्मिक, सामाजिक, ज्योतिष, शैक्षणिक, संशोधन, चिकित्सा आदि कुछ मैगजीन एकाधिक विषयों से संबंधित लेख प्रकाशित करती हैं, इसलिए उनके साथ एकाधिक विशिष्टता कोड लगाया जाता है. जैसे- “ श्रुतसागर” का विशिष्टता संकेत जैन धार्मिक एवं संशोधन है. इससे हमें यह लाभ होता है कि यदि वाचक आकर पूछे कि आपके यहाँ धार्मिक मैगजीन कौन-कौन सी हैं, सामाजिक मैगजीन कौन-कौन सी हैं, ज्योतिष से संबंधित मैगजीन कौन-कौन सी हैं, धार्मिक एवं संशोधन परक लेख किन-किन मैगजीन में प्रकाशित होते हैं, तो मैगजिन की विशिष्टता के आधार पर हम उन्हें उनकी अपेक्षित सूचनाएँ शीघ्रतापूर्वक बता देते हैं. # वॉल्युम प्रकार संकेत (Volume Type Code) सामान्यतया वर्ष क्रमांक एवं अंक क्रमांक की सूचनाएँ सभी पत्रिकाओं में पाई जाती हैं. कोई भी पत्त्रिका, चाहे वह वार्षिक, मासिक, पाक्षिक अथवा साप्ताहिक हो, उसकी वर्ष संख्या प्रायः होती ही है, पत्त्रिका का प्रकाशन जिस वर्ष से प्रारम्भ होता For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR ____MARCH-2015 है, उसकी संख्या १ दी जाती है, दूसरे वर्ष की संख्या २, तीसरे वर्ष की ३. इसके कई रूप होते हैं, जैसे- वर्ष, पुस्तक, Volume, खंड आदि. यह प्रत्येक मैगजीन का अपना खास होता है और प्रत्येक अंक पर वही नाम आता है. जैसे- “श्रुतसागर" ईस्वी सन् २०१४ वाले अंकों के लिए “वर्ष १०” है, तो यहाँ वर्ष वाला विकल्प पसन्द करते है. कुछ पत्रिकाओं में Volume के अतिरिक्त Sub Volume भी पाए जाते हैं, इसलिए हम इस सूचना को भी प्रोग्राम में प्रविष्ट करते हैं. इससे यह लाभ होता है कि कोई वाचक किसी खास मैगजीन के किसी विशेष अंक की मांग करता है, तो हम शीघ्रतापूर्वक अपेक्षित अंक निकाल कर देते हैं. भाषा नाम मैगजीन किस भाषा में प्रकाशित होती है इसका उल्लेख किया जाता है. किसी-किसी मैगजीन में एक से अधिक भाषाओं के लेख भी प्रकाशित होते हैं. अतः आवश्यकतानुसार एक से अधिक भाषा का संकलन किया जाता है. जिससे किस मैगजीन में किस भाषा में लिखित लेख आदि छपते हैं, इसका पता चलता है, जो वाचकों के लिए उपयोगी सिद्ध हो रहा है. प्रकाशन अवधि किसी मैगजीन के एक अंक से दूसरे अंक के मध्य का जो समय होता है, उसे प्रकाशन अवधि कहा जाता है. जैसे- दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक आदि. इस सूचना को भी संकलित किया जाता है, जिससे हमें यह पता चल सके कि अमुक मैगजीन की प्रकाशन अवधि क्या है. जब हमसे यह पूछा जाता है कि आपके संग्रहालय में मासिक कितनी पत्रिकाएँ आती हैं तो हम शीघ्रतापूर्वक उन्हें सूचना उपलब्ध कराते हैं. अधिकांश मैगजीन एक नियत तिथि को प्रकाशित होती है. हमारे कम्प्यूटर प्रोग्राम में सभी मैगजीन के प्रारंभिक एवं अंतिम अंकों, प्रारंभिक एवं अंतिम प्रकाशन तिथि आदि की एन्ट्री की भी सुविधा है. जिससे संशोधकों आदि के लिए किसी खास अंक को ढूँढने में यह बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहा है. वर्ष प्रकार नाम किसी भी मैगजीन की विस्तृत सूचना जानने हेतु मैगजीन के वर्ष की प्रविष्टि की जाती है. जिसमें ईस्वी संवत, विक्रम संवत, वीर संवत आदि के रूप में जिस मैगजीन में जो विकल्प मिलते हैं, उसी अनुरूप उनकी सूचना प्रविष्ट की जाती है. प्रत्येक मैगजीन में प्रारंभ वर्ष एवं अन्तिम वर्ष की सूचना प्रविष्ट की जाती है. कभी For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्च - २०१५ 27 श्रुतसागर कभी ऐसा भी देखा गया है कि एक ही अंक में वर्ष बदल जाता है. उदाहरण के लिये किसी मैगजीन का दिसम्बर-२०१४ का अंक प्रकाशित नहीं हो सका, एक महीने बाद दिसम्बर-२०१४ एवं जनवरी २०१५ दोनों ही मास का संयुक्त अंक प्रकाशित किया गया हो तो इस अंक में दोनों वर्षों की सूचना प्रविष्ट की जाएगी. प्रारम्भ वर्ष की तरह जिस वर्ष में मैगजीन की अवधि समाप्त हो रही है. वह अन्त वर्ष माना जाएगा. अन्त वर्ष के खाने में अन्त वर्ष टाईप किया जाएगा. यदि प्रारम्भ व अन्त वर्ष समान हो तो दोनों में समान वर्ष भरा जाएगा. मैगजीन का संपादक मैगजीन का संपादक या संपादकमंडल आदि के नाम को मैगजीन के साथ लिंक किया जाता है, जिससे यदि कोई वाचक यह जानना चाहे कि अमुक विद्वान द्वारा संपादित मैगजीन कौन सी है, तो शीघ्रता से पता चल सके. इसके कारण वाचकों का समय बचता है तथा उनकी अपेक्षित सूचनाएँ शीघ्रता से प्राप्त होती हैं. मैगजीन का संयुक्तांक कभी-कभी किसी विशेष कारणवश किसी मैगजीन के संयुक्तांक भी प्रकाशित किए जाते हैं. इनकी सूचना भी प्रोग्राम में प्रविष्ट की जाती है, ताकि जब किसी वाचक को किसी विशिष्ट संयुक्तांक की आवश्यकता हो तो उसे आसानी से ढूँढ़ा जा सके. इससे यह भी पता चलता है कि इन दो अंकों की अलग-अलग प्रतियाँ न होकर एक ही प्रति है. मैगजीन का विशेषांक प्रत्येक मैगजीन समय-समय पर किसी विशेष पर्व, विशिष्ट व्यक्ति या घटनाक्रम से संबंधित विशेषांक प्रकाशित करते हैं. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में इन विशेषांकों की प्रविष्टि करने हेतु प्रोग्राम में एक विशेष फिल्ड दिया गया है, जिसमें विशेषांक की सूचना प्रविष्ट की जाती है. इस कारण से वाचक द्वारा श्रुतसागर का अंक १२ मार्च २००७ का आचार्य पद प्रदान महोत्सव विशेषांक की मांग करने पर प्रोग्राम में सर्च करके शीघ्रता से उपलब्ध कराया जाता है. मैगजीन के अवतार जब किसी मैगजीन का नाम, प्रकाशक, प्रकाशन अवधि आदि वही हो किन्तु संपादक बदल जाए, या मात्र प्रकाशक बदल जाए, या मात्र प्रकाशन अवधि बदल For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR MARCH-2015 जाए, या किसी भी प्रकार का सामान्य परिवर्तन हो तो उस स्थिति में हम पूर्व में प्रविष्ट मैगजीन की सूचना में कोई परिवर्तन किए बिना उस मैगजीन के नये अवतार के रूप में प्रविष्ट करते हैं. जिससे पूर्व में जितने अंक होते हैं उनकी सूचनाएँ यथावत् रहती हैं तथा जहाँ से परिवर्तन होता है वहाँ से नई सूचनाएँ प्राप्त होने लगती हैं. इससे हमारे वाचकों को यह लाभ होता है कि किस मैगजीन का संपादक, प्रकाशक, प्रकाशन अवधि कब से बदला है तथा उसके पूर्व की कौन-कौनसी सूचनाएँ हैं यह सरलता से पता चलता है. यह अवधारणा यहाँ स्वयं विकसित की गई है. पत्र-पत्रिकाओं की भौतिक एवं रख-रखाव की प्रक्रियाएँ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में आने वाली सभी पत्रिकाओं की उसके नाम, वर्ष तथा अंकों के अनुसार प्रविष्टि करने के बाद उनका बहुधा वर्षांक अनुसार अलग-अलग बंडल बनाकर रखा जाता है. सभी पत्रिकाओं की प्रविष्टि हो जाने के बाद उसके ऊपर दो नम्बर दिए जाते हैं १. Accession No. (परिग्रहणांक) यह नम्बर यूनिक होता है, एक पत्रिका नाम में जो एक्शेशन नम्बर आ गया हो, वह नम्बर किसी दुसरी पत्रिका में नहीं आएगा. जैसे “तीर्थंकर वाणी” का परिग्रहणांक - Accession No.-०००४५ है. २. उसके बाद उस पत्रिका की बन्धन संख्या (Bind No) दिया जाता है, जो उसके बन्धन नाम (Bind Name) के साथ संलग्न रहता है, जैसे Bind nameतीर्थंकर वाणी १९९५, उसका Bind No. ०००५ है. ३. इकाई संख्या - (Unit position No.) यह नम्बर बाईंड में पत्रिका की प्रत्येक कॉपी की संख्या दर्शाता है. जैसे जुलाई १९९५ के तीर्थंकर वाणी की इकाई संख्या - Unit position No. ६ है. इसके आधार से बाईंड में से अपेक्षित अंक आसानी से मिल जाता है. इसके अतिरिक्त जिस पत्रिका का संयुक्तांक प्रकाशित हुआ हो, उसके प्रत्येक अंक को एक स्वतन्त्र सदस्य संख्या भी दी जाती है, जो उस संयुक्तांक में उसकी स्थिति स्पष्ट करता है. जैसे तीर्थकर वाणी १९९५ के अप्रैल तथा मई का अंक संयुक्तांक के रूप में प्रकाशित हुआ है, अतः उसकी सदस्य संख्या में १ तथा २ आते हैं. किसी मैगजिन की एक से अधिक कॉपी आई हो और वह महत्त्वपूर्ण संशोधनात्मक मैगजिन हो तो उसकी नियमानुसार प्रविष्टि कर उसके पूर्व प्रविष्ट मैगजिन के बाईन्ड नम्बर के आगे क, ख आदि करके रखा जाता है. इससे हमारे वाचकों का समय बचता है तथा अपेक्षित सूचनाएँ यथाशीघ्र प्राप्त होती हैं. For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर मार्च-२०१५ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा में अब तक अनुसंधान, संबोधि, कल्याण, विरतिदूत, मुक्तिदूत, बुद्धिप्रभा, बुद्धिप्रकाश, आगमोद्धारक, प्राकृत भारती, श्रमण आदि संशोधनपरक एवं दुर्लभ ३४३ मैगजीन के ३१४३४ अंक संगृहीत किए गए हैं. वर्तमान में १०८ से अधिक मैगजीन नियमित रूप से आते हैं. जिनमें से महत्त्वपूर्ण एवं दुर्लभ पत्रिकाओं को सुरक्षित किया जाता है. महत्त्वपूर्ण एवं दुर्लभ मैगजीनों को स्कैन कर पीडीएफ बनाकर मैगजीन के साथ लिंक किये गये हैं. जिससे वाचक द्वारा किसी खास मैगजीन की सूचना मांगने पर हम उस मैगजीन को भौतिक रूप से निकाले बिना ही स्क्रीन पर उस मैगजीन की सूचनाएँ दिखा देते हैं. वाचकों को उनके अपेक्षित लेख आदि हेतु आवश्यकतानुसार प्रिंट देते हैं या मेल के द्वारा उपलब्ध कराते हैं. मैगजीन-अंक पेटांक-कृति लिंक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में कम्प्यूटर के तकनीकी सहयोग से हस्तप्रत, पुस्तक, मैगजीन आदि में लिखित/प्रकाशित प्रत्येक छोटी-बड़ी कृतियों की सूक्ष्मातिसूक्ष्म सूचनाएँ संग्रह की जाती हैं. इसी क्रम में पेटांक की अवधारणा भी एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह शोधार्थियों के शोधकार्य में लक्ष्य तक पहुँचने के लिये मील का पत्थर साबित हो रही है. अध्येताओं व संशोधकों हेतु यह सुविधा उनके अध्ययन-संशोधन के कार्य को गति देती है तथा उनके श्रम व समय को बचाती है. सामान्यतया अन्य ग्रन्थालयों में पत्रिकाओं के आवरण एवं शीर्षक पृष्ठ पर लिखित नाम के आधार पर ही सूचनाएँ संकलित की जाती है. पत्रिकाओं में स्थित लेख आदि भिन्न-भिन्न कृतियों की सूचनाओं को सूचीकरण में शामिल नहीं की जाती है. जबकि ज्ञानमंदिर, कोबा में मैगजीन में स्थित सभी संशोधनपरक एवं महत्त्वपूर्ण कृतियों का परिचय अलग-अलग पेटांक के रूप में संकलित किया जाता है. जिसके कारण हम अपने वाचकों को कृति नाम, कर्ता नाम आदि के आधार पर प्रोग्राम में सर्च करके यथाशीघ्र सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं. । जैसा कि हम सभी यह जानते हैं कि किसी भी मैगजीन में एकाधिक स्वतंत्र लेख, प्राचीन कृतियाँ, कृतियों के साथ टीका, अनुवाद आदि या मात्र टीका, अनुवाद आदि पुत्र कृतियों के रूप में अलग-अलग पृष्ठों पर प्रकाशित होते हैं. उन स्वतंत्र या पुत्र कृतियों की सूचना संकलित करने हेतु उनकी पेटा कृति के रूप में एन्ट्री की जाती For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 SHRUTSAGAR MARCH-2015 है. प्रत्येक स्वतंत्र या मिश्रित कृतिसमूह के लिये एक स्वतंत्र पेटा अंक दिया जाता है. इस पेटा अंक पर से इस अवधारणा का नाम ही “पेटांक” के रूप में रूढ़ हो गया है. स्वतंत्र कृति जैसे श्रुतसागर के अंक ८-९ में कुल ९ लेख आदि प्रकाशित हैं. इनमें से संशोधनपरक लेख, लिपि संबंधी लेख, अलंकारविषयक ग्रंथों की सूची संबंधी लेख आदि को पेटांक के रूप में एन्ट्री की जाएगी, ताकि यदि कोई वाचक हमसे लिपि से संबंधित लेखों की या अलंकारविषयक ग्रंथों की सूची से संबंधित लेख की जानकारी मांगेगा तो हम शीघ्रता पूर्वक उपलब्ध करायेंगे. - इसी तरह किसी पत्रिका में यदि कोई कृति मूल एवं उनके साथ एकाधिक पुत्रपौत्रादि कृतियाँ प्रकाशित की गई हों तो ऐसे कृतिसमूह को एक ही पेटांक के रूप में दर्शाया जाता है. क्योंकि ये एक ही परिवार के सदस्य होते हैं. मिश्रित कृति की समाप्ति के पश्चात् अगले पृष्ठों पर यदि कोई स्वतंत्र कृति होती है, भले वह पूर्वोक्त मिश्रित कृति का सदस्य ही क्यों न हो तो उसे स्वतंत्र पेटांक के रूप में एन्ट्री किया जाता है. जैसे-गुरुछत्रीशी व अनुवाद की समाप्ति के बाद अलग से गुरुछत्रीशी एवं उसके कर्ता के संबंध में एक लेख लिखा गया हो तो उस लेख को स्वतंत्र पेटांक के रूप में एन्ट्री किया जाता है. इस प्रक्रिया के तहत प्रत्येक कृति या कृतिसमूह का नाम, पत्रांक, पूर्णता आदि का अलग-अलग उल्लेख किया जाता है. कहने का अर्थ यह है कि यहाँ प्रत्येक संशोधनपरक कृतियों को पेटांक के रूप में एन्ट्री करके वाचकों की सहायता की जाती है. नोट- पेटांक एवं कृति की विस्तृत विभावना हेतु इसी लेखमाला में पेटांक-कृति से संबंधित स्वतंत्र लेख देखें. उपरोक्त सूचनाओं को विस्तृतरूप से प्रोग्राम के जितने फिल्डों में संकलित किया जाता है, उतने ही फिल्ड प्रोग्राम में सर्च करने हेतु दिए गए हैं. जिसके कारण हमारे यहाँ आने वाले वाचकों के पास यदि कम सूचनाएँ भी होती हैं तो हम उन्हीं कम सूचनाओं के आधार पर विस्तृत सूचनाएँ वाचकों को उपलब्ध कराते हैं. इस प्रक्रिया से हमें यह लाभ होता है कि वाचकों का श्रम एवं समय तो बचता ही है साथ ही हमारे कर्मचारियों का भी श्रम व समय बचता है तथा वाचकों को उनकी अपेक्षित सामग्री शीघ्रतापूर्वक प्राप्त हो जाती है. आप स्वयं यहाँ आकर हमारे इस विशिष्ट एवं अद्वितीय प्रोग्राम से प्राप्त होने वाली सूचनाओं एवं संगृहीत सामग्री का लाभ प्राप्त करें, यही आप विद्वज्जनों से निवेदन है. For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पुस्तक नाम * संशोधक एवं संपादक * पुनः संपादक 'मूल कर्ता टीकाकार * संस्कृत छायाकार प्रकाशक प्रकाशन वर्ष * कुल भाग * मूल्य www.kobatirth.org पुस्तक समीक्षा : 13 : : : : : 09 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आख्यानक मणिकोश मुनिश्री पुण्यविजयजी मुनिश्री पार्श्वरत्नसागरजी आ.श्री नेमिचंद्रसूरि ४ डॉ. हेमन्तकुमार आ. श्री आम्रदेवसूरिजी मुनिश्री पार्श्वरत्नसागरजी ॐकारसूरि आराधना भवन, सुरत विक्रम संवत् २०६९ ३००/- प्रति भाग * भाषा संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश आख्यानक मणिकोश प्राकृत कथासाहित्य का अनुपम ग्रंथ है. बारहवीं शताब्दी के महान जैनाचार्य आचार्य श्री नेमिचंद्रसूरिजी द्वारा प्राकृत भाषाबद्ध ५३ गाथाओं में रचित यह कथाकोश है. आचार्य नेमिचंद्रसूरि की कृतियाँ उनके बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने का परिचय कराती हैं. आचार्यश्री न केवल सिद्धांतशास्त्रों के ज्ञाता थे, अपितु भारतीय साहित्यिक परम्परा एवं लोक संस्कृति के भी संवाहक थे. यही कारण है कि उनकी कृतियों में जहाँ एक ओर जैन सिद्धांतों की प्रतिष्ठापना धार्मिक जगत के विद्वानों को संतुष्ट करती है, वहीं दूसरी ओर काव्यतत्त्वों एवं लौकिक मूल्यों के निरूपण की प्रचुरता साहित्यिक जगत के रसिकों को अभिरंजित करती है. For Private and Personal Use Only प्राकृत भाषा में निबद्ध इस कृति को उन्हीं की परम्परा के आचार्य आम्रदेवसूरिजी ने इस ग्रंथ की गाथाओं में निर्दिष्ट दृष्टांतों के नामों का उल्लेख करते हुए विशिष्ट शैली मैं प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत एवं देशी भाषाओं में विभिन्न अलंकार, रस आदि से परिपूर्ण १२७ औपदेशिक कथाओं की रचना की है. १४००० श्लोक प्रमाण वाली यह विस्तृत वृत्ति ४१ अधिकारों में विभक्त है. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 32 SHRUTSAGAR MARCH-2015 वृत्तिकार ने संस्कृत श्लोकों और प्राकृत गाथाओं को समान वृत्त में प्रस्तुत किया है. उत्कृष्ट विविध छंदों का प्रयोग कर समस्यापूर्ति एवं प्रहेलिका जैसे लोकप्रिय काव्यलक्षणों से कथाओं को सजाया गया है, जो वृत्तिकार की विद्वत्ता को प्रदर्शित करता है. आचार्य आम्रदेवसूरि की आख्यानमणिकोशवृत्ति एक वैशिष्ट्यपूर्ण ग्रंथ है. इस वृत्ति में प्रमुख भाषा प्राकृत है. वर्तमान में प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषा एवं देश्य शब्दों का प्रयोग नहिवत होता है, वृत्तिकार ने विभिन्न स्थलों पर देश्य शब्दों का इतनी सूक्ष्मतापूर्वक प्रयोग किया है कि सामान्यजन तो क्या विद्वानों को भी शब्दकोश की सहायता लेनी पड़े. देश्य शब्दों का भंडार एवं प्राकृत-अपभ्रंश भाषा की बहुलता के कारण यह कथाकोश वाचकों को पढ़ने में कठिनाई उत्पन्न करता है. इस ग्रंथ का संपादन एवं संशोधन कार्य पूज्य आगमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजी ने किया था जो विक्रम संवत् २०१८ में प्राकृत ग्रंथ परिषद वाराणसी से प्रकाशित हुआ था. इतना रोचक और अद्भुत ग्रंथ भाषा का पूर्ण ज्ञान न होने के कारण संपादित होने के बाद भी वाचक वर्ग में अपेक्षित स्थान नहीं बना पाया है. इस अनमोल ग्रंथ में गुम्फित कथाओं एवं उपदेशों का लाभ वाचकों को सुलभ हो इस हेतु से मुनि श्री पार्श्वरत्नसागरजी ने पुनः संपादित किया है एवं प्राकृत, अपभ्रंश एवं देशी कथाओं की संस्कृत छाया को प्रकाशित करवा कर प्रबुद्धजनों को कथा के मर्म को समझने का मार्ग प्रशस्त करते हुये वाचकों को संतोष प्रदान करने का भरपूर प्रयास किया है. चार भागों में विभक्त प्रस्तुत प्रकाशन वाचकों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा. पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है. आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है. विस्तृत विषयानुक्रमणिका, कथाओं की सूचि, परिशिष्ट में दिए गए नाम आदि भी बहूपयोगी सिद्ध हो रहे हैं. यह ग्रंथ विद्वानों के लिए तो अत्यन्त उपयोगी है ही साथ ही ग्रंथालयों में संग्रहनीय भी है. मुनि श्री पार्श्वरत्नसागरजी ने पूर्व में भी पउमचरियं की संस्कृत छाया तैयार कर श्रुतसेवा का अनुपम कार्य किया है. संघ, विद्वद्वर्ग तथा जिज्ञासु इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में हैं. सर्जनयात्रा जारी रहे ऐसी अपेक्षा है. पूज्य मुनिश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन. For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Seyane B ●PORNCROWON ON ON DO www.kobatirth.org Toupor 16/000 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ( आशरे १५० वर्षथी वधु प्राचीन ह्रींकार वलयबद्ध स्वर्ण-रजतकाम युक्त नवपदजी (गट्टाजी)नुं आकर्षक चित्रण. १४ Br Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir TITLE CODE: GUJ MUL 00578. SHRUTSAGAR (MONTHLY). POSTAL AT. GANDHINAGAR. ON 15TH OF EVERY MONTH. PRICE: RS.15/-DATE OF PUBLICATION MARCH 2015 आणायकेदारजमाधुवचनवाणसणारहाण्डालनर्मदासंदरीतारामबावर बुदगिरिग्लायामागारदा बारडोयणविस्तारमारमतिवासिगिरिवरताजा विदिचारहावाणीहरपञ्चधार समारननियमिनातावसहितकरजाबाम्बकाका लिमलव शहतारखसिरदारधरणासिरितिल माकणीदमजालिदतगादबार हो चढविममायाजाम वसिष्टदेव मवियावाचारही रामचंदगुसराङ। पामारण करतोफामसमदिरेहायमालिगाहालएरमा मेणकरमदा करणादीनारया फणस बार अातार शतप गोमुखागंगाति व्हीवरहानाहामध्यामवालोक मेय तिहाघाच्याघचालागरोज anमनत्तगाधाकधामण्नालरासापेमारदाकोतकडोयाककोवार माअपधातिवांगावणारहो जाादाकाणायाराथामा छबकदंबचानघ मारहावलचेयकाबाटदामदमागममामासाहीवलसरामचंछदा दम यागलिदावा दारहवालानाधादिणमानुक्रमिदलवामा ध्यानाबाबहारमायादवलममाण मस्तगलग्नबानाहिसायचारही दानव विक्रमनी सत्तरमी सदीमां लखायेल अर्बुदगिरितीर्थ चैत्यपरिपाटीनी हस्तप्रतनुं प्रथम पत्र. स्थूलाक्षरी आ पत्रनी सौथी उपरनी पंक्तिनी मात्राओने कांईक कलात्मक करवामां आवी छे. तेमज पत्रनी वच्चे मध्यफुल्लिका रूपे जग्या राखवामां आवी छे. बन्ने बाजु बब्बेना जोडामा पार्श्वरेखाओ करवामां आवी छे. प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205, 252, फेक्स (079) 23276249 Website : www.kobatirth.org email : gyanmandir@kobatirth.org BOOK POSPRINTEDATTER PRINTED, PUBLISHED AND OWNED BY: SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, PRINTED AT : NAVPRABHAT PRINTING PRESS. 9-PUNAJI INDUSTRIAL ESTATE, DHOBHIGHAT, DUDHESHWAR, AHMEDABAD-380004 PUBLISHED FROM: SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, NEW KOBA, TA, & DIST. GANDHINAGAR, PIN : 382007, GUJARAT EDITOR : HIRENBHAI KISHORBHAI DOSHI For Private and Personal Use Only